Saturday, January 25, 2014

Dil ki baat

दिलगी की आरजू तो मुझे भी थी
जब आइने में अपना चेहरा देखा तो
तो जाना मुद्तो हुई अपने आप को पहचाने हुए

सपने देखने तो उनका हक़ है
जिनके महबूब उन पर लूट गए हो

चाहने या न चाहने की दहलीज़ पर
कदम रुक गए है
डर है की दुनिया की
रिवाज मेरे प्यार को न
जला के खाक कर दे

कोई क्या मारे आशिक को
यार का रूठ जाना ही
सौ मौत के बराबर

Saturday, January 18, 2014

वो लड़की

कूड़े के ढेर से बच्चे के
रोने की आवाज़ आई
जैसे वो अपने होने
पर रो रहा हो
लोग इकठा हुए,भीड़ लगी

किसी को दया आई
किसी ने माँ को कलंकनी कहा
समाज के संवेदनहीनता पर
सर झुकाए सब चुप खड़े थे

ये बच्चा मेरे गोद में होता
तो मेरे जीवन सफल होता
ये करुण से भरी आवाज़
एक निसंतान माँ की थी
ममता के वेग में
आगे आ कर  बोली
मैं इसे पालूगी
अपने जीवन का आधार बना लूगी
उसके पति ने सहमती से सर हिलाया

एक नव दम्पति ने ठीक ऐसा
ही दावा किया
उस लावरिस को पाने को अब  दो परिवार
दावेदार थे

इतने शोर में पुलिस आई
सिपाही ने बच्चे को उठाया
कहा, कितनी सुन्दर बच्ची है

पास खड़े दोनों परिवारों ने एक दूसरें
को घूर कर देखा
भीड़ छट गई
अखबरों ओर टी. वी में ख़बर आई

अब वो लड़की किसी अनाथालय
में पड़ी है
इस मतलबी,निर्मम दुनिया से
बिना किसी सवाल-जावाब किए
अपने खाली आँखों में सपने सजाए हुए
ऐसे स्वर्ग की जो कही नहीं है
बस उसकी बाते है..

Saturday, January 4, 2014

किताब मेरे दोस्त


किताबो के भीतर
मेरे सपनो की दुनिया
बसी है
पन्ना बदलते ही बचपन दिखा
पुरानें दोस्त मिले
ख़ुशी,उमंग,झूठे ओर सच्चे
बातो की कहानी मिली

स्कूल की डेस्क पर
कॉलेज के दिनों के तस्वीर
मिले

एक पुरानी किताब
के पन्नो में दबा प्यार मिला
गुलाब की पंखुडियो पर लिखा
उसका नाम मिला

सपनो को किताबो से प्रेरणा मिली
जिन्दगी का हर रूप किताबो से ढला
ये वो दोस्त है जो रूठे न कभी
अलमारी में बैठे  मुस्कुराते रहे

कहते मुझसे खोजो मुझमे
सवाल दर सवाल
जब कभी किसी नए सवाल
का जवाब मिले
लिखो उसे की बन जाए
एक नई किताब ..

Wednesday, January 1, 2014

तेज़ाब



सर झुकए सब से नज़रे छुपाए
वो चले जा रही अपनी राह
सर का अचल
चेहरा का नकाब
सब को संभले
वो चली जा रही अपने रहा

कुछ ने कहा वहीं है ये
इसी की कोई गलती होगी
कोई ऐसे ही नहीं डालेगा
तेज़ाब

लोगो की बातोँ की जलन ने
उसके अंदर के साहस को जलाया
उसे लगा एक बार फिर उस पर
किसी ने तेज़ाब सा ज़हर डाला

तेज़ाब से चेहरा जले तो एक बात
सपने,होसले,रिश्ते इज़ात तक
जल जाता है

तेज़ाब ने उसकी चमड़ी नहीं,
जिंदगी जला डाली 
जलने का निशान गहरे ,
आत्मा तक पड़ गया

घुटन,बेबसी की एक काली जिंदगी
साथ लिए वो जी रही थी
आज वो चल पड़ी
मिटाने शारीर,आत्मा पर पड़े निशान
चल पड़ी अपने सम्मान,मान,
खोई जिन्दगी के लिए मंजिल
की तलाश में

ताने दे चाहे कोई या खड़ा हो जाए
रहा में
तेज़ाब के जलन को छोड़ कर
आज निकल चली
नए असमान की तलाश में.

नए असमान की तलास में...........

अपनी खुशियां को पहचानो -दीपक कुमार

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