Monday, January 5, 2015

PK को टैक्स फ्री करना

सिनेमा और दर्शक के बीच का सम्बन्ध सीधा सा नज़र आता है, लेन-देन जैसा दर्शक सिनेमा घर जाकर पिक्चर का टिकट खरीदें अच्छा समय बिताए और अपने-अपने घर चलते बने सिनेमा निर्माता भी एक कहानी को कुछ गाने में लपेट मनोरंजन का सामान तैयार कर दर्शकों के सामने परोसता है, हल के सालो में सिनेमा का चेहरा बदलने लगा है या फिर कहे दर्शक से आसानी से जूड जाने वाली कहानीयों को दिखाने की कोशीश की जा रही है, नए निर्माता और निर्देशक जैसे अनुराग बशु ऐसे प्रयास की तरफ सफलता से बढ़ रहे है, कुछ बड़े निर्माता भी इस प्रयास की तरफ अग्रसर होते नज़र आ रहे है

पी.के जैसी फिल्म समाज से बड़े तबके को पसंद आ रही है, साथ में आलोचना का बाज़ार भी उतना ही गरम होते जा रहा है,धार्मिक गुरु और धर्म के हित्यासी राजनेतिक पार्टी भी पुरे जोर-शोर से पी.के का विरोध कर रही है,इस विरोध से फिल्म का नुकसान कम फयदा ज्यादा होता नज़र आ रहा है देश के दो राज्यों ने फिल्म को टैक्स रहित भी कर दिया है, इन राज्यों के महामहिम का कहना है की फिल्म में धर्म से जुड़े पाखंड को खुल कर दिखाया गया है इसलिए इस फिल्म को हर किसी को देखना चाहिए, इस बात पर तर्क –वितर्क किया जा सकता है, पर यह काम तो टी.वी न्यूज़ चैनल का है, हम अपने काम से मतलब रखते है

आज के अख़बार के कोने में एक खबर छापी की पी.के फिल्म को टैक्स रहित कर राज्य की पार्टी, जनता को एक मौका दे रही है की जनता जाने, की कैसे दूसरी पार्टी जनता के भोलेपन,संवेदनाता और धर्म के नाम का फायदा उठा कर उनका वोट हासिल कर रही है, इस खबर को पढ़ने के बाद इस बात की पुष्टि होती है की जनता को कुछ भी मुफ्त में नहीं मिलता उसके पीछे राजनेतिक पार्टी का स्वार्थ या भय छिपा होता, आप कहेगे हमे क्या है हम तो फिल्म देखे और भूल जाए, ये भी अच्छी सोच है पर सवाल यहाँ यह है की फिर विरोध कौन कर रहा है?
 
हम जनता तो खुश है टैक्स फ्री से,क्या मुझ जैसे लोगो के पास समय कहा है, विरोध प्रदर्शन के लिए? इसका जवाब है और न दोनों हो सकता अगर धार्मिक या राजनेतिक नेता अपने बात को सार्थक बता कर अगुवाई करे तो जनता साथ देती है,
पी.के फिल्म में एक समुदाय पर ही हँसी का ताना-बन बुना गया है, बल्कि पाखंड तो हर बड़े धर्म मेंलिप्त है उसे भी दिखने की जरुरत थी,किसी विशेष पंथ या समुदाय को निशाना बनाना गलत है,
 इसलिए फिल्म को देश भर से आलोचना का सामना करना पड़ रहा है

 

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