Sunday, January 14, 2018

पतंग और डोर


पतंग
नापने आसमान का छोर
ज़मीन छोड उड़ चली
गगन की ओर
बांध अपने-आप को एक डोर

हवाओ पर सवार
मडराती, अपने-आप पर इतराती
उड़ रही चिडियों के संग
वो नीली- हरी पतंग

क्या हो अगर
टूट जाए डोर
आसमान से ज़मीन पर आ गिरे वो
मिट जाएगी हस्ती
बिखर जाएगा जीवन का हर उमंग

ये डोर है जो साँस की
खुद पर और अपनों पर विश्वास की
रिश्ते- नाते, सपने और ज़िन्दगी में विश्वास की
टूटे अगर तो पतंग और ज़िन्दगी
हो जाए खाक सी
ज़िन्दगी और पतंग हर वक़्त बंधे

डोर संग






रिंकी


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