Saturday, July 28, 2018

आयुष्य


परछाई थी
साए में छुपी रही
वो तो स्त्री थी

बोली नहीं वो
चुप के छोड़ दिया
वो जवानी थी

गुडिया गुड्डा
अपनी रह चले
वो बच्चे मेरे

बढ़ते रहे
बदलते हमेश
सपने मेरे


रिंकी

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