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Sunday, January 26, 2025

कुंभ मेले की पौराणिक कथा

 

कुंभ मेले की पौराणिक कथा

कुंभ मेले की उत्पत्ति की कहानी समुद्र मंथन से जुड़ी हुई है, जो देवताओं और असुरों के बीच हुए एक पौराणिक संघर्ष का वर्णन करती है।

जब देवता और असुर मिलकर अमृत (अमरत्व का अमृत) प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन कर रहे थे, तब क्षीर सागर से 14 रत्न निकले। इन्हीं रत्नों में से एक अमृत कलश भी था। अमृत प्राप्त करने के बाद, देवताओं और असुरों के बीच इसे प्राप्त करने के लिए संघर्ष शुरू हो गया।

कहा जाता है कि भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर अमृत को असुरों से बचाने का प्रयास किया, लेकिन इस दौरान अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी के चार स्थानों - प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक - पर गिर गईं। यही कारण है कि इन स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है।

माना जाता है कि कुंभ मेले के दौरान जब ग्रह और नक्षत्र विशेष स्थिति में होते हैं, तब इन पवित्र स्थलों पर स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और जीवन के पापों का नाश होता है। इस मेले में लाखों श्रद्धालु गंगा, यमुना, क्षिप्रा और गोदावरी नदियों में पवित्र स्नान करते हैं।

कुंभ मेले के दौरान कई धार्मिक अनुष्ठान, साधु-संतों की प्रवचन सभाएं, भव्य शोभा यात्राएं और आध्यात्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। सबसे महत्वपूर्ण आयोजन "शाही स्नान" होता है, जिसमें अखाड़ों के संत और नागा साधु गाजे-बाजे के साथ पवित्र नदी में स्नान करते हैं।

कुंभ मेले की अवधि और आयोजन

  • पूर्ण कुंभ मेला: हर 12 साल में आयोजित होता है।
  • अर्ध कुंभ मेला: हर 6 साल में होता है।
  • महा कुंभ मेला: प्रयागराज में हर 144 साल में एक बार आयोजित किया जाता है।

कुंभ मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और परंपरा का प्रतीक है। यह भक्ति, आस्था, और सहिष्णुता का महोत्सव है, जिसमें विभिन्न साधु-संत, श्रद्धालु और पर्यटक एक साथ आकर भारतीय संस्कृति की विविधता और आध्यात्मिक शक्ति का अनुभव करते हैं।

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