Friday, July 22, 2016

ख़ामोशी प्यार की

ख़ामोशी भी एक तरीका का सहमति है
मैं चुप रहकर तेरे जाने को रोक न सका

मजबूरी का रोना हम दोनो ने रोया
तुम मुझसे दूर जाने के बहाने
को समझा नहीं सके
मैं तेरे सही बातो को भी न
समझ सका

हम थे तो आमने –सामने
लेकिन ख़ामोशी की एक खाई सी
हमारे बीच पट्टी थी

एक सवाल
कभी जो कानो में शौर करता
क्या प्यार नहीं है?
और हम दोनों के दरमियाँ
फिर एक लंबी ख़ामोशी

हमेशा के लिए छा गई

रिंकी राउत

Monday, July 4, 2016

बक्से का जादू


जैसे हर जादूगर का अपना
खास जादू होता है
वैसा उसमे भी मोजूद था |

अलमारी में छिपे बक्से का जादू
जब भी बक्सा खुलता
उस पारी का जादू
हर बार मुझे मोहित कर जाता
मिठाई,बिस्कुट, दाल –मोट और बतासे की खुश्बू
उस बक्से के तिलिस्म को और बढ़ा देता
में दादी के पीछे-पीछे
मडराता फिरता


वो अपने-आप को चोदह पोते-पोतियों में
बराबर बंटती फिरती
कभी डराती,कभी चुपके से किसी को
बक्सा खोलकर मिठाई देती|


उस बक्से की जादूगरनी थी वो
आज चाची ने बक्सा खोला
आशचर्य की बात है
जादू नहीं हुआ
मरी दादी का जादू खत्म था
कोई पारी नहीं दिखी


दादी के जाने के बाद
उस बक्से का तिलिस्म हवा हो गया
बक्सा टीना सा मालूम होता है|

Sunday, July 3, 2016

अपनी पहचान ढूँढता हिंदी लेखक


लाइब्रेरी में नई किताब ढूँढ़ते-ढूँढ़ते हिंदी किताबो की गिनती भर उप्लब्धता को देखकर मन जैसे उदासी के कोहरे में डूब गया,जहां तक मेरी नज़र गई अंग्रेगी किताबो की भरमार थी, हर विषय पर कहानी, नॉवेल,सेल्फ हेल्प और  खाना बनाने तक की किताबे थी, पर हिंदी में कोई किताब ढूंढने में कामियाब नहीं हो पाई | प्रसिद्ध लेखक प्रेमचंद,

महादेवी वर्मा आदि की रचना हमेशा से लाइब्रेरी की शोभा बढ़ाती रही  है पर किसी नए हिंदी लेखक को खोज पाना अक्सर मुशकिल हो जाता है| हिंदी साहित्य के इतिहास के बारे में लिखने की मनसा नहीं है मेरी, मैं अपने अनुभव को साझा कर रही हूँ |

हिंदुस्तान में हिंदी लेखको की स्तिथि और दशा पर कोई विचार या सोच बनती नहीं दिखती है, कहने वाले कहते है आज हर कोई लेखक बन गया है, राजनेता,खिलाडी,अभिनेता और आम आदमी भी अपने अनुभव और विचार किताब के मध्यम से साझा कर रहे है,  पर यदि  ध्यान से देखा जाए तो अधिकतर  आर्टिकल, ब्लॉग और किताब अंगरेजी में होती है  रास्ट्रीयभाषा कही- किसी ओट में छिप जाती है| हिंदी में लिख रहे युवा लेखक अंग्रेजी लेखक की तरह लेखनी पर निभर्र रहकर जीविका नहीं कमा सकते |लिखना रोजगार के बाद आता है क्यूंकि हिंदी लेखक होना कोई काम नहीं माना जाता,आप हिंदी लेखक की उपमा लेकर अपनी शादी की बात भी नहीं कर सकते लोग पूछते है लिखना तो ठीक है काम क्या करते हो?

सोच कर बहुत निराशा होती है की वर्त्तमान समय मे हिंदी साहित्य को पहचान देता कोई भी  चेहरा नही है |

युवा लेखक अपना ब्लॉग लिखते है जिसे पढ़ने वालो की संख्या गिनी चुनी होती है हर वक़्त अपनी पहचान की जद्दो-जेहद में कही न कही टूटते तारे के तरह कोई लेखक कही खो जाता है हार जाता है|

पुराने हिंदी लेखक अपनी पहचान लेखक तबके में बना लेते और आसानी से अखबार,मगज़ीन या अन्य माध्यम से अपनी रचना को प्रकाशित करने में सफल हो जाते है, लेकिन  नए लेखको के लिए ब्लॉग छोड़कर कोई जगह उपलब्ध नहीं है रचना प्रकाशित करने के लिए, मैं अक्सर अकबर के एडिटोरिल पेजर को देखकर पाती  हूँ की

वहाँ उन प्रसिद्ध व्यक्ति को ही स्थान मिल पाता जो राजनेता या अखबार से जुड़े सदस्य होते  है |



आज देश में हिंदी के पाठक बहुत कम है, इसका श्रेय अंग्रेजी के गुणगान करने वाले लोगो पर जाता है, युवा वर्ग परीक्षा की किताबे पढने में व्यस्त है, जिनका रुझान साहित्य की तरफ है उन्हें अंग्रेज़ी अपनी ओर खींच ले जाती है |

मैं कही भी पाठको पर हिंदी के लेखको के दशा के लिए जिम्मेदार नहीं मानती क्यूंकि मुझे लगता है की हिंदी किताबो की कम उपलब्धता भी मांग को कम करती है | एक बड़ी अच्छी कहावत है” जो दिखता है वो बिकता है” इस कहावत के अनुसार बाज़ार में जो चीज़ अधिक देखेगी वही बेकेगी भी | हिंदी के लेखक न अक्सर देखे जाते है  न पाए जाते है, लेखकगण भी इस स्थिती को लेकर चिंतित नहीं नज़र आते है |मुझे लगता है एक प्रयास की आवशकता है जहां हिंदी के लेखको को बिना किस रूक-टोक अवसर मिल सके अपनी रचना और विचार को साझा करने का और ये शयद पेहला कदम बदलाव की और होगा |



रिंकी राउत

Sunday, June 26, 2016

तुम से मुलाकात फिर न होगी

तुम से मुलाकात फिर न होगी
जिंदगी में लोंग तो आते रहेगे
पर तेरे-मेरे आँखों में
जो छुपकर होती थी बात
अब किसी ओर के साथ न होगी

Monday, May 23, 2016

अन्नदाता की भूख

देश में चुनाव का दौर चल रहा हैl सभी राजनीतिक पार्टी अपने- अपने दाव-पेच में लगी है,सिर्फ दो तरह के ही काम किए जा रहे हैl एक विपक्ष की आलोचना और दूसरा झूठे वादे करना, आजाद भारत में चुनाव के समय यही चीज़ हर पार्टी को एक दुसरे से जोडती हैl “झूठे वादे और आलोचना” सभी राजनीतिक पार्टी के अधिकार क्षेत्र में आता है, इस अधिकार को उनसे कोई नहीं छीन सकता हैl
अब कुछ बाते किसानो की करते हैl हम सभी ने कभी स्कूल में पढ़ा होगा की भारत कृषि प्रधान देश है,उस पर निबंध भी लिखे होंगेl देश में सबसे अधिक किसान है जो देश को चलाते है अन्ना देते हैl

मुझे सब झूठ लगता है, हमारे स्कूल में हमेशा से झूठ सीखाया जाता रहा हैl हम क्यों नहीं अपने बच्चो को सच पढ़ाते है, की हमारा देश राजनीतिक पार्टी प्रधान देश हैl नेता ही देश को घोटाले और शर्मिंदगी देते हैl
मुझे बचपन में सीखाया गया थाl किसान वो होता हैl जो अनाज उगाता है, ये किताबी परिभाषा हैl समाज की परिभाषा कुछ इस तरह से है, वो जो बेरोजगार हैl किसी भी लायक नहीं है, वोही खेती करता हैl शयद आप मेरी परिभाषा से बिलकुल सहमत नहीं हो, आपके विचार बिलकुल अलग हो, आप को ये भी लग सकता है, की मैं किसानो का अपमान कर रही हूँ, तो आप अपने दिल पर हाथ रखकर बताइए आपमें से कितने अपने बच्चो को किसान बनाने का सपना देखते हैl सब को तो घर में इंजीनियर या डॉक्टर चाहिए कोई आपने घर में किसी को किसान बनाना नहीं चाहता जिसके बिना इन्सान का पूरा भविष्य दाव पर लगा हैl
देश के किसान की मनोदशा इन पंक्तियों से अभिव्यक्त करने की कोशिश कर रही हूँ

रोज़ सोचता गाँव छोड़े
शहर की तरफ खुद को मोड़े
वो देश का अन्नदाता है,
जो भूखे पेट रोज़ सो जाता हैl

“मुंदरी लाल” बुंदेलखंड का किसान आत्महत्या कर लेता हैl क्यूंकि वो बैंक का क़र्ज़ नहीं चूका पाया थाl जिस बैंक से उसने क़र्ज़ लिया था, उस बैंक के क़र्ज़ वसूलने वाले उसे उत्पीडित करते थेl वो इतना डरा की उसने आत्महत्या कर लीl   हमारे देश में माल्या नाम के एक व्यक्ति हैl जिसने देश के बैंकों से उधार लिया था, पर वो आज–काल देश से बाहर निकले हुए है सेहत सुधारने के लिए उन्हें कोई भी उत्पीडित नहीं करता उन्होंने अकेले ही देश में हंगामा मचा रखा हैl
विधर्व और आंध्रप्रदेश का किसान सूखे के कारण और क़र्ज़ न चुकाने के कारण जान दे रहा हैl रोज़ कोई न कोई किसान मर रहा सिर्फ इसलिए नहीं की बारिश नहीं हो रही या वो क़र्ज़ नहीं चूका पा रहा हैl
सबसे बड़ा कारण है की “किसान आत्महत्या” को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा हैl देश में एक भी योजना नहीं है, जो किसानो को सीधे-सीधे लाभ पहुंचाए अनुदान के नाम पर डीजल कम दरो पर मिलता है,वो भी विशेष परिस्तिथि मे,चुनाव के समय किसी भी पार्टी के घोषणापत्र में किसानो की समस्यों की बात नहीं की जाती हैl किसानो के क़र्ज़ माफ़ नहीं किये जाते, कर्जमाफी और अनुदान की सुविधा केवल पूंजीपतियों के लिए है,जो राजनीतिक पार्टी को चुनाव लड़ने के लिए फण्ड देती हैl बिडम्बना ये है की देश में ग्रामीण क्षेत्र में ही अधिक वोटिंग होती है, ये किसी पार्टी को नहीं देखे देता हैl आपने क्या कभी सोचा है, की एक किसान के आत्महत्या करने से कितना नुकसान होता हैl आर्थिक और सामाजिक स्थर अकाना मेरा बहुत मुश्किल हैl जब कोई किसान आत्महत्या करता है, तो हर किसान का होसला टूट जाता हैl एक अन्नदाता की मौत हो जाती है, साथ में उसके परिवार की भी जो मन ही मन सोच लेता है की घर का कोई बच्चा किसान नहीं बनेगाl

सवाल उठता है,क्या आप और मैं कुछ कर सकते है? हम कोशिश तो कर ही सकते है, पानी और अनाज की बर्बादी को कम कर केl बूंद –बूंद पानी को तरसते किसानो के बारे में सोच कर पानी को बर्बाद होने से बचाएl हर एक अनाज के दाने में किसी न किसी किसान की मेहनत होती हैl
हम जो दुकान से अनाज खरीद कर खाते है शायद ही समझ पाए की हमारे देश में ऐसे बहुत किसान है, जिन्हें भरपेट खाना नहीं मिलता हैl आज लाखो किसान खेती छोड़ मजदूरी करने लगा है, क्योंकि जो अनाज वो उगाते है उसे बिचोलिया कम दम में खरीद कर बाज़ार में बहुत मुनाफे में बेचता हैl
इस प्रक्रिया में किसान बड़ी मुश्किल से लागत पूंजी ही निकल पाता हैl आज देश में हर रोज़ जो मरता है वो किसान हैl देश का अन्नदाता भूखे पेट क्यों सोता है?

Rinki


बाबा नीम करौली महाराज-प्रेम, भक्ति और करुणा के प्रतीक

 बाबा नीम करौली महाराज भारत के एक महान संत थे, जिन्हें उनके भक्त “महाराज जी” कहकर पुकारते हैं। उनका वास्तविक नाम लक्ष्मी नारायण शर्मा था। वे...