हर वर्ष अन्तरराष्ट्रीय पर्यावरण
दिवस मनाया जाता है जो केवल देखावा मात्र या खाना पूर्ति के लिए होता है। जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) 2018 के अनुसार दुनिया का तापमान बहुत तेजी से बढ रहा
है। 2030 से 2052 के बीच ग्लोबल
वॉर्मिंग( भूमंडली उष्मिकरण) के कारण पृथ्वी का तापमान 1.5 डिग्री
सेल्यिस तक बढ़ सकता है। भारत के लिए चिंता की बात यहाँ है की वैश्विक जलवायु
जोखिम सूचकांक २०१८ के अनुसार भारत का नाम विश्व के उन देशो में शामिल है। जिन्हें जलवायु
परिवर्तन के कारण सबसे अधिक नुकसान पहुँच सकता है। पिछले वैश्विक जोखिम
सूचकांक २०१६ के अनुसार भारत का स्थान दस सबसे आपदा ग्रसित देशों में शामिल था।
इस रिपोर्ट के
प्रमुख संदेशों यह है कि ग्लोबल वार्मिंग के मात्र 1 डिग्री सेल्सियस तापमान के कारण हम पहले से ही मौसम में उतार-चढ़ाव,
समुद्र का बढ़ता जल-स्तर और आर्कटिक बर्फ के गायब होने जैसे
दुष्प्रभावों का सामना कर रहे हैं। यदि
विश्व का तापमान ऐसे ही बढ़ता रहा तो प्राकृतिक अपदाओ की संख्या में बढ़ाव आएगा। जलवायु परिवर्तन को आसान भाषा में समझना बहुत
जरूरी है। आम व्यक्ति के लिए ये कोई ऐसी चीज़ है जिससे उनका कोई लेना देना नहीं है। जलवायु परिवर्तन जैसे हमारे जीवन में कोई
महत्त्व नहीं रखता है,जो की बुलकुल भी सही नहीं है। विज्ञान के अनुसार
जलवायु परिवर्तन मानव के ईंधन के इस्तमाल और धरती के पर्यवरण को नुकसान पहुचने के
कारण ही हुआ है।
जलवायु परिवर्तन क्या है?
जलवायु परिवर्तन का मतलब मौसम में आने वाले
व्यापक बदलाव से है। पृथ्वी के चारो ओर
ग्रीन हाउस की एक परत होती है, इन गैसों में कार्बन
कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस
ऑक्साइड शामिल हैं। वैज्ञानिकों
का मानना है कि हम लोग उद्योगों और कृषि के जरिए जो गैसे वातावरण में छोड़ रहे हैं
(जिसे वैज्ञानिक भाषा में उत्सर्जन कहते हैं),
उससे ग्रीन हाउस गैसों की परत मोटी होती जा रही है। ये परत अधिक ऊर्जा सोख रही है और धरती का तापमान बढ़ा रही
है. इसे आमतौर पर ग्लोबल वार्मिंग या जलवायु परिवर्तन कहा जाता है। गैसों के उत्सर्जन के लिए मुख्य तौर पर कोयला, पेट्रोल और प्राकृतिक गैसों को जिम्मेदार माना जाता है।
2015 के ग्लोबल वार्मिंग पर पेरिस समझौते में यह तय किया
गया था की 1.5 डिग्री सेल्सियस
तापमान को काम करना का प्रयास किया जाए। फिलहाल, दुनिया 2015 के पेरिस
समझौते के घोषित उद्देश्य के अनुसार,2 डिग्री सेल्सियस से
अधिक वृद्धि को रोकने के लिये प्रयास कर रही है। इस लक्ष्य को पूरा करने के लिये,
2010 के मुकाबले ग्रीनहाउस गैस स्तर को 2030 तक
मात्र 20 प्रतिशत कम करना है और वर्ष 2075 तक कुल शून्य उत्सर्जन स्तर का लक्ष्य प्राप्त करना है।
जलवायु परिवर्तन पर
अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) 2018 की इस रिपोर्ट के मुताबिक उत्सर्जन
को कम करके 1.5 डिग्री सेल्सियस
के लक्ष्य को पूरी तरह से प्राप्त करना असंभव हो गया है।इस रिपोर्ट के मुताबिक,
उत्सर्जन की वर्तमान दर यदि बरकरार रही तो ग्लोबल वार्मिंग 2030
से 2052 के बीच 1.5 डिग्री
सेल्सियस को भी पार कर जाएगा।
जलवायु
परिवर्तन के परिणाम
रिपोर्ट के अनुसार यदि पृथ्वी का तापमान , 1.5 डिग्री सेल्सियस बडा तो दुनिया में
समुद्र के जल-स्तर में वृद्धि होगी समुंद किनारे बसे शहर जैसे मुंबई और कोलकता
समुंद में समा सकते है।
मौसम के चक्र में परिवर्तन, गर्मी में बढ़ोतरी
वर्षा में वृद्धि और सूखे तथा बाढ़ की आवृत्ति में वृद्धि, अधिक गर्म दिन एवं ग्रीष्म लहर, अधिक तीव्र उष्णकटिबंधीय चक्रवात, महासागर की
अम्लीयता और लवणता में वृद्धि होगी। मौसम के बदलाब के कारण मानव के जीवन पर बहुत
अधिक असर पडेगा।
तटीय राष्ट्रों और एशिया तथा अफ्रीका की कृषि अर्थव्यवस्था
सबसे ज़्यादा प्रभावित होगी। फसल की पैदावार में गिरावट, अभूतपूर्व जलवायु अस्थिरता और संवेदनशीलता 2050
तक गरीबी को बढ़ाकर कई सौ मिलियन के आँकड़े तक पहुँचा सकती है।
समुद्री जल-स्तर में प्रति दशक 1 सेमी की वृद्धि दर्ज की गई है। मॉनसून की
तीव्रता के साथ हिमखंडों का त्वरित गति से पिघलना हिमालयी क्षेत्रों में प्राकृतिक
आपदाओं का कारण बन सकता है।
गत बीस सालो से प्राकृतिक अपदाओ की संख्या बहुत बढ़ गई है,
पूरी दुनिया में महा विनाश जैसे स्तिथी बनी हुई है इन सब अपदाओ का सीधा संबंध
जलवायु परिवर्तन से है। दुनिया के कई
देशो में कृषि और उत्पादन में बदलाब देखा जा रहा है अदि पृथ्वी का तापमान 1.5
डिग्री भी बढ़ा तो गेहू और चावल जैसे मुख्य अनाज पर सबसे जायदा असर होगा।
मत्स्य व्यवसाय जो कृषि के बाद दूसरा सबसे बड़ा व्यवसाय है
खतरे में आ जाएगा। अनाज, पानी और रोज़गार पर खतरा बढ जाएगा, जिसके परिणाम स्वरुप
युद्ध जैसी स्तिथि बन सकती है।
पर्यवरण सुरक्षा और सरकार
भारतीय संविधान पर्यवरण सुरक्षा को
लेकर बहुत सचेत है, आर्टिकल 48 A के अंतर्गत
राज्य से अपेक्षा की गई है की वह पर्यवरण
के संरक्षण और सुधार तथा देश के वनों व वन्य जीवो के प्रति जिन्मेदारी निभाए।
अनुछेद 51A (G) कहता है की जंगल, तालाब,
नदिया, वनजीव सहित सभी तरह की प्राकृतिक
पर्यवरण की सुरक्षा और बढ़ावा देना हर भारतीय नागरिक की जिम्मेदारी होगी।
जलवायु
परिवर्तन को काम करने के फायदे
♦ समुद्री जल-स्तर की वृद्धि दर में कमी।
♦ खाद्य उत्पादकता, फसल
पैदावार, जल संकट, स्वास्थ्य संबंधी
खतरे और आर्थिक संवृद्धि के संदर्भ में जलवायु से जुड़े खतरों में कमी की संभावना।
♦ आर्कटिक महासागर में समुद्री बर्फ के
पिघलने की दर में कमी।
ग्लोबल वार्मिंग
को 1.5 डिग्री सेल्सियस
पर सीमित करने के अनुमानित तरीके
§
वैश्विक रूप से
कार्बन डाइऑक्साइड को कम करने के लिये अर्थव्यवस्था के कार्बन डाइऑक्साइड-गहन
क्षेत्रों में कम कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित करने वाली तकनीक, ऊर्जा दक्ष मशीनों और कार्बन डाइऑक्साइड
अवशोषकों को शामिल करना होगा।
§
जंगल और पेड़ो की
सुरक्षा से पर्यवरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा को नियंत्रण में रखा जा सकता
है।
§
यातायात के लिए
सावर्जनिक साधनों के इस्तमाल, व्यक्तिगत वाहनों के कम इस्तमाल से प्रदूषण को कम
किया जा सकता है
§
बिजली से
चलनेवाले उपकरण फ्रिज, टीवी,वास्गिंग मशीन, मोबाइल और अदि का कम इस्तमाल से भी
कार्बन उत्सर्जन को कम किया जा सकता है।
§
शाकहारी भोजन को
अपनाकर और मासाहार को कम कर भी जलवायु परिवर्तन को कम करने में मदद की जा सकती है,
क्यूंकि जानवरों को पालने के लिए अधिक पानी और खाने के आवश्कता पड़ती है, सब्जी
उगाने के लिए जल प्रबंधन के उपयोग से पानी
की खपत को कम किया जा सकता है।
§
स्थानीय बाज़ार
में मिलने वाली वस्तुओ को खरीद के भी हम जलवायु परिवर्तन को कम करने में सहयोग कर
सकते है, जैसे पाम आयल को उगाने के लिए इंडोनेशिया जैसे देशो के जंगल को कटा जा
रहा है, अदि हम स्थानीय उपलव्ध चीजो का इस्लामल करेगे तो देश की अर्थव्वस्थ में भी
योगदान देगे और बड़े उद्यगो के द्वारा पर्यवरण के नुकसान को भी कम कर सकते है।
हमारे छोटे-छोटे प्रयास, जैसे पैदल
चलना, टीवी कम देखना अदि भी जलवायु परिवर्तन की रफ़्तार को धीमा कर सकता है। याद
रखे पृथ्वी की पर्यवरण की रक्षा कर के ही हम अपने आनेवाले भविष्य की रक्षा कर सकते
है।
Rinki Raut