Thursday, April 12, 2018

हम दोनों के बीच सब ठीक है


हुए कई साल देखे बिना तुझे
मेरा इंतजार अब भी नया और
उदासी से बहुत दूर है
मिलने के उम्मीद को समेटे
रोज़ शाम और रात को ताक रहा
दूरियां है तो क्या हुआ
हम दोनों के बीच सब ठीक है
बातो का सिलसिला नहीं है तो क्या
शब्द ने एक दूसरे को छुया नहीं
तो क्या
हम एक दूसरे से शिकायत
बिना बोले ही करते रहते है
अल्फाजों में हम बंधे नहीं तो क्या हुआ
हम दोनों के बीच सब ठीक है


Rinki


Monday, April 9, 2018

मैं जिसे ओढ़ता बिछाता हूँ


दुष्यंत कुमार द्वारा लिखित अतुल्य ग़ज़ल

मैं जिसे ओढ़ता बिछाता हूँ 
वो ग़ज़ल आप को सुनाता हूँ
 एक जंगल है तेरी आँखों में 
मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ 
तू किसी रेल सी गुज़रती है 
मैं किसी पुल सा थरथराता हूँ 
हर तरफ़ एतराज़ होता है 
मैं अगर रौशनी में आता हूँ 
एक बाज़ू उखड़ गया जब से 
और ज़्यादा वज़न उठाता हूँ 
मैं तुझे भूलने की कोशिश में 
आज कितने क़रीब पाता हूँ 
कौन ये फ़ासला निभाएगा 
मैं फ़रिश्ता हूँ सच बताता हूँ 

- दुष्यंत कुमार      

मेहरम

चुप ने ऐसी बात कही खामोशी में सुन  बैठे  साथ जो न बीत सके हम वो अँधेरे चुन बैठे कितनी करूं मैं इल्तिजा साथ क्या चाँद से दिल भर कर आँखे थक गय...