यही होता है, यही होता रहेगा
ये वो तंज है
जो दर्शाता है, कैसे तुम्हारी
बुद्धि बंद है
बिना जाने नियम और रिवाज़
पालते हो
क्यों नहीं इसे तर्क से तौलते हो
अपने ही सवाल से क्यों
दौड़ते हो ?
स्वार्थ इतना गहरा है की
सब जानते हुई भी
क्यों रीती -रिवाज़ के
चक्की में अपनों को ही
धकेलते हो
कुछ देर , कुछ देर और
ये किला भी, ध्वस्त होगा
कुछ है, पागल जो
आवाज़ बन बोलते है
सुनो या अनसुना करो
शोर तो प्रचंड होगा
रीती -रिवाज़ के नाम का
ढोंग, अब ख़तम होगा
रिंकी
ये वो तंज है
जो दर्शाता है, कैसे तुम्हारी
बुद्धि बंद है
बिना जाने नियम और रिवाज़
पालते हो
क्यों नहीं इसे तर्क से तौलते हो
अपने ही सवाल से क्यों
दौड़ते हो ?
स्वार्थ इतना गहरा है की
सब जानते हुई भी
क्यों रीती -रिवाज़ के
चक्की में अपनों को ही
धकेलते हो
कुछ देर , कुछ देर और
ये किला भी, ध्वस्त होगा
कुछ है, पागल जो
आवाज़ बन बोलते है
सुनो या अनसुना करो
शोर तो प्रचंड होगा
रीती -रिवाज़ के नाम का
ढोंग, अब ख़तम होगा
रिंकी
प्रशंसनीय
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ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(२८ -१२-२०१९ ) को "परिवेश" (चर्चा अंक-३५६३) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
बहुत धन्यवाद आपके टिपणी के लिए।
Deleteबहुत बढ़िया कविता। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
ReplyDeleteiwillrocknow.com
बहुत धन्यवाद आपके टिपणी के लिए।
Deleteसार्थक सृजन।
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपके टिपणी के लिए।
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