Saturday, July 28, 2018

आयुष्य


परछाई थी
साए में छुपी रही
वो तो स्त्री थी

बोली नहीं वो
चुप के छोड़ दिया
वो जवानी थी

गुडिया गुड्डा
अपनी रह चले
वो बच्चे मेरे

बढ़ते रहे
बदलते हमेश
सपने मेरे


रिंकी

Sunday, July 22, 2018

मॉब लीचिंग कानूनी व्यवस्था पर बढ़ते हुई असंतोष को दर्शाता है


भीड़ का आक्रोशित हो कर किसी की हत्या कर देना सुर्खियों में है I प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने मॉब लीचिंग जैसी सारी धटनाओ के लिए  सोशल मीडिया को बिना किसी मतभेद जिम्मेदार ठहराया है, तर्क यहाँ  है की व्हाटसएप, फेसबुक,ट्विटर में भेजे जा रहे मेसेज से लोग भड़क जाते है और जानवर बन किसी की भी हत्या कर देते है I किसी भी नतीजे से पहले यहाँ  देखना होगा की क्या सिर्फ सोशल मीडिया के कारण ही देश भर में दो महीने में २० लोगों को  भीड़ ने पीट-पीट कर मार दिया हैI सोशल मीडिया  खुला मंच है जहां लोग अपने विचार रखते है और वहां चीजो को तोड़-मोड़ कर भी पेश किया जाता है, लेकिन जो लोग सोशल मीडिया पर भडकाऊ मेसेज भेजते है वो लोग डरपोक या छिपकर रहने वाले लोग है उनका मकसद होता है, देश का ध्यान मुख्य मुद्दों से हटाकर किसी ऐसे बहस की तरफ कर दो जिसका कोई समाधान न हो, जैसे कश्मीर, हिन्दू-मुस्लिम, कांग्रेस –बीजेपी आदि की बाते और जो इन मेसेज को बिना समझे फॉरवर्ड करते है वो है भारत देश की डरपोक भोली-भाली जनता,हमारे देश में अधिकतर लोगों को सोशल मीडिया का  इस्तेमाल किस तरह से करना है  इसका बुनियादी शिष्टाचार नहीं पता है हम फ़ोन पर भी इतनी जोर से बात करते है  की बिना फ़ोन भी सामने वाले सुन ले

मॉब लीचिंग में, लोगों ने भीड़ बन बच्चा चोरी के सन्देश पर हत्या की है, महिलाओं को डायन बता हत्या की है, प्रेमी युगल की हत्या कर दी है, और तो और बिहार में  भीड़ ने हत्या कर भाग रहे अपराधी की जम के पिटाई की I
 चोरी के मामले को अपने साथ में लेना भीड़ की आदत है, चोरी के आरोपी को बांध कर पीटना तो आम बात है I

 देश में आज भी लोग सामुदिक पंचायत या समुदाय के  निर्णय को कानून से जायदा महत्व देता है, प्रेम-प्रसंग में की गई हत्या को सामाजिक स्वीकृति प्राप्त है I जब बात जात और धर्म से बाहर प्रेम और विवाह की हो  तो मान –मर्यादा, कानून और संविधान से बड़ा हो जाता है और हत्या करना बड़ी बात नहीं रह जाती है

देश की कानून व्यवस्था ठीक ट्रैफिक की तरह है जिसे कोई मानने को तैयार नहीं  पुलिस का  समाज में दो पहचान है एक जो भ्रष्ट और डर दिखाती है दूसरी जो सिर्फ गाँधी जी को देखकर काम करती है यानी पैसे  के लिए ही काम करती है, ये लोग ही सच्चे गाँधी भक्त है I  पुलिस के दोनों रूप से या तो जनता डरती है या नफरत करती है, उन पर भरोसा तो कतई नहीं करती और जब कानून के रखवालों पर भरोसा नहीं रहता तो,  भीड़ चीजो को अपने तरीके से निपटाती हैI भीड़ के द्वारा की गई हत्या  कानूनी व्यवस्था पर बढ़ते हुई असंतोष को दर्शाता हैI



सरकार और प्रशासन सिर्फ सोशल मीडिया पर लोगों की हत्या का ठीकरा फोड़ कर बच नहीं सकती  देश की पुलिस के काम करने के ढंग पर काम करना होगा कानून पर जनता का विश्वास वापस लाना होगा I

नहीं तो कुछ लोग अपनी स्वार्थ के लिए भीड़ बन मासूम, निर्दोष लोगों की हत्या मॉब लीचिंग के नाम पर करते रहेंगे



रिंकी राउत

मेहरम

चुप ने ऐसी बात कही खामोशी में सुन  बैठे  साथ जो न बीत सके हम वो अँधेरे चुन बैठे कितनी करूं मैं इल्तिजा साथ क्या चाँद से दिल भर कर आँखे थक गय...