Sunday, May 11, 2025

देवराहा बाबा: रहस्यमय योगी की कथा, उपदेश और आराध्य

 देवराहा बाबा: रहस्यमय योगी की कथा, उपदेश और आराध्य

भारत की आध्यात्मिक भूमि ने अनेक संतों और योगियों को जन्म दिया है, परंतु देवराहा बाबा का स्थान उनमें अद्वितीय है। उन्हें लोग “अजर-अमर बाबा” कहते थे क्योंकि उनकी उम्र को लेकर कई किंवदंतियाँ प्रचलित थीं—कुछ मानते हैं वे 250 वर्षों से भी अधिक जीवित रहे। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के देवराहा गांव में हुआ और वे यमुना नदी के तट पर एक लकड़ी के चबूतरे पर तपस्या करते थे।

बाबा ने अपना पूरा जीवन संयम, ब्रह्मचर्य और ध्यान में बिताया। वे किसी आश्रम में नहीं, बल्कि खुले आकाश के नीचे रहते थे। उनका शरीर सदा नंगा रहता था, जिसे वे “प्रकृति के निकट” रहने का साधन मानते थे। उन्होंने कभी किसी को अपने खाने, सोने या व्यक्तिगत जीवन की झलक नहीं दी, जिससे उनका व्यक्तित्व और भी रहस्यमय हो गया।

उनकी आराधना – श्रीराम और श्रीकृष्ण

देवराहा बाबा के आराध्य भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण थे। वे दोनों को विष्णु के अवतार मानते हुए उनकी आराधना करते थे। वे कहते थे:
"राम में मर्यादा है और कृष्ण में लीला – दोनों मिलकर जीवन को पूर्ण बनाते हैं।"
उन्होंने वैष्णव परंपरा का पालन किया और सच्चे भक्ति मार्ग को आत्मसात किया।

उनकी भक्ति बाहरी आडंबर से रहित थी। वे घंटी-शंख या मूर्ति पूजा के बजाय ध्यान और जप को अधिक महत्व देते थे। उनका मानना था कि भगवान हृदय में वास करते हैं, और वहाँ पहुँचने का मार्ग आत्मसाक्षात्कार है।

शिक्षाएं – सादा जीवन, सेवा और शुद्ध आचरण

देवराहा बाबा की शिक्षाएं सरल लेकिन गहरी थीं। वे कहते थे:
"जिसने सेवा सीखी, उसने ईश्वर को पा लिया।"
उनका सबसे बड़ा संदेश था:
"ईश्वर को पाने के लिए पहले मन को जीतो। काम, क्रोध, लोभ, मोह को त्यागो – बस वही सच्चा साधक है।"

वे धर्म की एकता में विश्वास रखते थे। उनके पास हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई – सभी धर्मों के लोग आते थे और बाबा उन्हें एक ही बात कहते:
"धर्म रास्ता है, मंज़िल नहीं। मंज़िल है आत्मा का परमात्मा से मिलन।"

उनका आशीर्वाद और चमत्कार

कहा जाता है कि देवराहा बाबा के आशीर्वाद से कई असंभव कार्य संभव हुए। उन्होंने कभी चमत्कार का दिखावा नहीं किया, लेकिन उनके मौन, उनकी दृष्टि और उनकी उपस्थिति ही लोगों के दुख दूर कर देती थी।

देश के कई बड़े नेता, जैसे इंदिरा गांधी और राजीव गांधी भी उनके भक्त रहे। लेकिन बाबा ने कभी किसी को विशेष स्थान नहीं दिया – उनके लिए सब समान थे।

निष्कर्ष

देवराहा बाबा ने 19 जून 1990 को ब्रह्मलीन होकर यह लोक त्यागा। उनका जीवन एक जीता-जागता उदाहरण है कि साधना, सेवा और समर्पण से मनुष्य ईश्वर से एकाकार हो सकता है।

उनकी वाणी:
"ईश्वर को बाहर मत ढूंढो, अपने भीतर झाँको – वही तुम्हारा राम है, वही कृष्ण है।"

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