गोली खाकर
एक के मुँह से निकला - 'राम'। दूसरे के मुँह से निकला- 'माओ'। लेकिन तीसरे के मुंह से निकला- 'आलू'। पोस्टमार्टम की रिपोर्ट है कि पहले दो के पेट भरे हुए थे। 【सर्वेश्वरदयाल सक्सेना】Everyone does have a book in them. Here is few pages of my life, read it through by my stories,poetry and articles.
Wednesday, January 24, 2024
Thursday, January 11, 2024
निर्वाण षट्कम: राग व रंगों से परे
निर्वाण षट्कम का मूल भाव वैराग्य है। इस मंत्र को ब्रह्मचर्य मार्ग का समानार्थी माना जाता है। इसकी ध्वनि हमारे अंतरतम की गहराइयों में हलचल पैदा कर देती है।
मैं न तो मन हूं, न बुद्धि, न अहंकार, न ही चित्त हूं
मैं न तो कान हूं, न जीभ, न नासिका, न ही नेत्र हूं
मैं न तो आकाश हूं, न धरती, न अग्नि, न ही वायु हूं
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।
मैं न प्राण हूं, न ही पंच वायु हूं
मैं न सात धातु हूं,
और न ही पांच कोश हूं
मैं न वाणी हूं, न हाथ हूं, न पैर, न ही उत्सर्जन की इन्द्रियां हूं
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।
न मुझे घृणा है, न लगाव है, न मुझे लोभ है, और न मोह
न मुझे अभिमान है, न ईर्ष्या
मैं धर्म, धन, काम एवं मोक्ष से परे हूं
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।
मैं पुण्य, पाप, सुख और दुख से विलग हूं
मैं न मंत्र हूं, न तीर्थ, न ज्ञान, न ही यज्ञ
न मैं भोजन(भोगने की वस्तु) हूं, न ही भोग का अनुभव, और न ही भोक्ता हूं
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।
न मुझे मृत्यु का डर है, न जाति का भेदभाव
मेरा न कोई पिता है, न माता, न ही मैं कभी जन्मा था
मेरा न कोई भाई है, न मित्र, न गुरू, न शिष्य,
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।
मैं निर्विकल्प हूं, निराकार हूं
मैं चैतन्य के रूप में सब जगह व्याप्त हूं, सभी इन्द्रियों में हूं,
न मुझे किसी चीज में आसक्ति है, न ही मैं उससे मुक्त हूं,
मैं तो शुद्ध चेतना हूं, अनादि, अनंत शिव हूं।
Saturday, January 6, 2024
जय सीया राम
22 जनवरी को अयोध्या के भव्य राम मंदिर में रामलला को विराजमान कराया जाएगा। राम मंदिर में रामलला की नई प्रतिमा स्थापित की जाएगी। इस वीडियो को शेयर करके। एकता और अखंडता के महा महोत्सव में शामिल हो।
Click and share the link.
Rinki
Subscribe to:
Posts (Atom)
मेहरम
चुप ने ऐसी बात कही खामोशी में सुन बैठे साथ जो न बीत सके हम वो अँधेरे चुन बैठे कितनी करूं मैं इल्तिजा साथ क्या चाँद से दिल भर कर आँखे थक गय...
-
तूने खूब रचा भगवान् खिलौना माटी का इसे कोई ना सका पहचान खिलौना माटी का वाह रे तेरा इंसान विधाता इसका भेद समझ में ना आता धरती से है इसका ना...
-
मेरे सपनो को जानने का हक रे क्यों सदियों से टूट रही है इनको सजने का नाम नहीं मेरे हाथों को जानने का हक रे क्यों बरसों से खली पड़ी हैं इन्हें...
-
तू खुद की खोज में निकल तू किस लिए हताश है, तू चल तेरे वजूद की समय को भी तलाश है जो तुझ से लिपटी बेड़ियाँ समझ न इनको वस्त्र तू ये बेड़ियां प...