इस घट अंतर बाग़-बग़ीचे, इसी में सिरजनहारा।
इस घट अंतर सात समुंदर, इसी में नौ लख तारा।
इस घट अंतर पारस मोती, इसी में परखन हारा।
इस घट अंतर अनहद गरजै, इसी में उठत फुहारा।
कहत कबीर सुनो भाई साधो, इसी में साँई हमारा॥
इसी घट में बाग़-बग़ीचे खिले हैं और इसी में उनका सृजनहार है। इसी घट में सात समुद्र हैं और इसी में नौ लाख तारे। इसी में पारस और मोती हैं और इसी में परखने वाले। इसी घट में अनाहत नाद गूँज रहा है और इसी में फुहारें फूट रही हैं। कबीर कहते हैं, सुनो भाई साधु, इसी घट में हमारा साँई (स्वामी) है।
बहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteThanks
Deleteउम्दा रचना ।
ReplyDeleteThnaks
Delete