Wednesday, January 26, 2022

दुआ

 हँसते -हँसते  आंखे भर आती  है 

ख़ुशी जैसे फितरत हो हमारी 

छुपते  रहना सच से 

फ़रेब  में जीना जैसे आदत हो हमारी 


मुद्दत हो गई ढूंढते किसी को 

कोई ऐसा जो देखे मुझे 

खरी सी, बिना किसी  रंग 

खुद जैसी  रहना नियत हो हमारी 


खुदी ही खुदी को चाहना 

बेशक खुदगर्जी  हो 

खुद से ही और खुद में ही 

राजी रहना खुद मर्जी 

हो हमारी  


बस दुआ है तुझसे 

तेरी रहमत बनी रहे 

ऐसी  रज़ा है  हमारी 


रिंकी 


मेहरम

चुप ने ऐसी बात कही खामोशी में सुन  बैठे  साथ जो न बीत सके हम वो अँधेरे चुन बैठे कितनी करूं मैं इल्तिजा साथ क्या चाँद से दिल भर कर आँखे थक गय...