Saturday, May 26, 2018

लेखक और पाठक


मुलाकात हुई कुछ अपने जैसे
कलम से सपने उकेरने वाले
लेखकों से
 उन्हें  लाइब्रेरी के
हर कोने में देखा मैंने
जो खुशनसीब थे
वो पुस्तक प्रेमियों के हाथ में
सजे मिले
 कुछ ऐसे भी थे
जो लाइब्रेरी  के गलियारे
के अलमारी में रखे  मिले
मुसकुरा रहे थे
इस उम्मीद में कोई
पढ़े उन्हें
 उस लाइब्रेरी में एक कमरा था
कुछ लेखक वह भी खड़े मिले
धुल जमी थी उन पर
बदरंग से हुए पड़े
 कोई पढ़े उन्हें भी इसी
सोच में वो धुल खाते रहे  
कुछ को तो दीमक खा रहे थे
वो तिल-तिल
पाठकों के इंतजार में मर रहे थे
 है लेखक पाठक का रिश्ता ऐसा
दीया बाती के जैसा

रिंकी





Friday, May 11, 2018

दोस्त पुराने


न जाने कितने दिनों के बाद
कुछ दोस्तों से मुलाकात हुई
मैं देखती उन्हें
छूती उन्हें
आँखों से पढ़ती
यादों के पन्नों को
उंगलियों को
गीली कर पन्ने-पन्ने दर
पलटती रही



घर की अलमारी में
रखी
पुरानी किताबों

कुछ इस तरह
आज बात हुई



रिंकी


Sunday, May 6, 2018

फितरत

इस दुनिया को देख कर
हर रोज़ हेरान होती हूँ
दुनिया के बदलते अंदाज़ से
घटते-बढ़ते
ज्वर-भट्टा सी फितरत से
हेरान होती हूँ
 
मेरा जिस्म तो नहीं  थका
लेकिन अन्दर कुछ मुरझा गया
मैं रुकना, चलना या दौड़ना
नहीं चाहती

कुछ देर के लिए मैं
कुछ नहीं होना चाहती
सिर्फ आजाद होना चाहती हूँ

इस “मैं” में लिपटी
दुनिया को देखकर और
हैरान नहीं होना चाहती
कुछ देर के लिए मैं
सिर्फ आजाद होना चाहती हूँ

 
 
रिंकी

मेहरम

चुप ने ऐसी बात कही खामोशी में सुन  बैठे  साथ जो न बीत सके हम वो अँधेरे चुन बैठे कितनी करूं मैं इल्तिजा साथ क्या चाँद से दिल भर कर आँखे थक गय...