Wednesday, October 28, 2015

“प्यार”


पहली ठोकर ने मुह के बल गिराया
दर्द पुराना होने तक महसूस किया
दूसरी ठोकर ने सर खोल कर रखा दिया
होश आने तक जिंदगी हवा हो गई थी
तीसरी ठोकर ने आत्मा को रुला दिया

दुबारा न गिराने का इरादा कर
सोचा पत्थर ही हटा दे

पत्थर को जो  देखा
दिल ने कहा, चलो फिर
ठोकर खाते है

क्योंकि उस पत्थर का नाम

“प्यार” था

Tuesday, October 13, 2015

प्यार के देहलीज पर

प्यार होने या न होने मे
फर्क बस इतना था
जब वो था तो,मैं नहीं था
जब मैं था वो नहीं

प्यार के देहलीज के लकीर पर
हम दोनों खड़े रहे
सुबह से शाम तक परछाई बदली
हम खड़े रहे ठुठे पेड़ की तरह

मौसम बदले
हम खड़े रहे
समाज की तरफ मुह किया
बस उनकी सहमति के लिए

आज हम दोनों खड़े है आमने-सामने

अजनबी सा चेहरा लिए....

Rinki

Sunday, October 11, 2015

शरणार्थी

लेटा था मैं समुंद्र किनारे
लोग दौड़े-दौड़े आए
मर गया ये तो..
किसी ने कहा
कितना सुन्दर बच्चा था..
दुसरे ने कहा
मैं शांत लेटा रहा समुंद किनारे

शरणार्थी लगता है
डूब कर मर गया
एक रोशनी चमकी
किसी ने फोटो लिया
किसी ने लेख लिख दिया
मेरी कहानी सात समन्दर पर तक गई

हंगामा ही हंगमा मचा
मैं फिर भी लेटा रहा समुंद्र किनारे

पहले कभी जब भूख-प्यास से रोया
दर पर दर घर को तरसा
किसी ने आवाज़ नहीं सुनी

आज शांति से सोया हूँ
लोग क्यूँ हंगामा मचा रहे है?



Tuesday, October 6, 2015

खत्म

सूरज की गरम रोशनी
हवा का अपनापन
फूलो की खुशबू का साथ
सब पहले जैसा है
कुछ तो खत्म नहीं हुआ
बिखरे सपनों की आंच
सूखे कुएं सी प्यास
ठण्ड में ठिठुरती हंसी
रात में चांदनी सा जगता प्यार
खत्म होने सा सवाल ही नहीं
बनता

तो तुम्हे क्यूँ लगता है
तुम्हारा जाना
मेरे सब कुछ खत्म कर सकता है

तुम्हारे जाना से क्या?
हमें बंधने रखने वाला एहसाह
नहीं रहा
चहरे दर चहरे में तुम्हे देखने की
तेरी आहट सुनाने की

चाहत तो खत्म नहीं हुई

Rinki Raut

मेहरम

चुप ने ऐसी बात कही खामोशी में सुन  बैठे  साथ जो न बीत सके हम वो अँधेरे चुन बैठे कितनी करूं मैं इल्तिजा साथ क्या चाँद से दिल भर कर आँखे थक गय...