Friday, June 21, 2019

https://storymirror.com/read/poem/hindi/06fkqwf4/bettii/detail

बेटी 

अलग है वो
कुछ अद्भुत सा
न चाँद है

फरिश्ता है
पवित्र और पाक  
न सूरज है

रौशनी नई
हसरत नई सी 
न प्रेमी मेरा

वो है बेटी
नई उम्मीद है
नए दौर की 

सृजन करो
सुरक्षित संस्कृति
सुरक्षा करें

मुन्ना-मुन्नी में
न करो भेद अब
स्वतंत्रता

जरूरत है
समय समाज की
संकल्प करो

Tuesday, June 11, 2019

जिंदगी की परछाई


शहर के भीड़ में 
गाडिओं के शौर में
बाजार के चकाचौंध में 
नहीं  
गोरैया ने आवाज़ लगाई
इस कंक्रीट के जंगल में नहीं
गाँव में ज़िन्दगी
आज भी है समाई

आज भी चिडियों के झुंड देते है दिखाई 
शाम में गोधूली उड़ती है
आकाशवाणी के बोल देती है सुनाई
सुबहे की बेला में
लिपा हुआ चूल्हा और आँगन 
सस्कृति  की  केवल छाप नहीं 
गांव में संस्कृति ही छाई

बिना पढाई के बोझ तले दबा बचपन
आम,बेरी ,महुआ,अमरुद को घेरे बच्चे
हसते,मुस्कुराते बच्चे 
हवाओ में महुआ की महक
खेतो में पुरवाई की चहक




आज भी है गाँव में यादों की महक
सोहर, फगुआ के धुन है अलग 
रिश्ते में गर्माहट 
रोटी और सब्जी में 
ताज़गी और अपनापन 
दादा -दादी की याद 
गांव की हवाओ ने रखे है 
अपने साथ 
जिंदगी इस कॉन्क्रीट के जंगल में 
नहीं
यादे और ज़िन्दगी साँस लेती है 
मेरे गांव में  ही




रिंकी

Wednesday, June 5, 2019

आज


आज ऐसा सच
मिला नहीं अब तक
आज में रहना, जीना
सिखा नहीं अब तक
अतीत में गुजरे मेरे सारे पल

भविष्य की चाह ने
छिना आज का पल-पल
अतीत की यादों को सहेजना
इस आदत में खोया
आज का सुन्दर लम्हा
पल छीन पल
अतीत ही में गुजरे मेरे सारे पल

अतीत की राख और भविष्य की आस
दोनों बेमतलब से है
अतीत है की गुजरता नही
भविष्य है की आता नहीं
फिर जो समय बचा है केवल
आज का सुन्दर पल
जी ले इसे
अतीत में ही न गुजर जाए सारे पल

रिंकी

Saturday, June 1, 2019

कागज़ और स्याही


कागज़ और स्याही की
यारी जैसे पुरानी कहानी
खुरदरी ज़िन्दगी चाहे
सपने सच्चे हो जाए
सही और फ़रेब में करे
कोई फर्क नहीं
कागज़ और स्याही ने लिखी
अलग ही कहानी मेरी

कोरा-सफ़ेद था बचपन
अपनों ने ज़िद की
ये बनो, ऐसे सोचो
चलना, बोलना के साथ
ये भी सीखा दिया की
दुनिया की पिंजरे की सलाखों में
बंद हो कैसे जिंदगी
कागज़ और स्याही ने लिखी
समाज और मर्यादा में जकड़ी मेरी कहानी



उन्होंने इतना सिखाया की
खोया गया मेरा
खुद का साया
आज मैं, खुद में बंधा सा
अपने होना साबित करता
बाहर से खुश,अन्दर मरता सा
कुछ है जो, मेरे अन्दर से
मन की सुनने की कहता
कागज़ और स्याही ने लिखी
मेरे आज़ादी की कहानी

रख के परे, उनके सपने और कहनियाँ
बढ़ चला आज में लिखने
कागज़ और स्याही के संग
लिखने नई कहानी

रिंकी


मेहरम

चुप ने ऐसी बात कही खामोशी में सुन  बैठे  साथ जो न बीत सके हम वो अँधेरे चुन बैठे कितनी करूं मैं इल्तिजा साथ क्या चाँद से दिल भर कर आँखे थक गय...