Wednesday, November 2, 2016

सरहद

जमीन पर एक लकीर खीची
इन्सान चले अपने-अपने ओर
एक ने कहा पाक जमीन
दुसरे ने कहा भारत महान

बैर दोनों ने पाला
कुछ खास लोगो ने कभी
नफरत की आग को बुझने नहीं दिया

जमीन पर खीची लकीर पर
हियासत चलती रही

कुछ परिवार लकीर के साथ रहते है
देखा है उन्होंने
नफरत का अंजाम
बंदूक से चली गोली ने धर्म, बच्चे और बड़े
का फर्क ना जाना
बस अपना काम कर गई

घर दोनों तरफ उजड़े
बच्चो की रोने की आवाज़
एक जैसी लगती है
भूखे पेट और उजड़े खेत
एक जैसे ही देखते है

जमीन पर खीची लकीर

आज आग उगल रही

रिंकी

मेहरम

चुप ने ऐसी बात कही खामोशी में सुन  बैठे  साथ जो न बीत सके हम वो अँधेरे चुन बैठे कितनी करूं मैं इल्तिजा साथ क्या चाँद से दिल भर कर आँखे थक गय...