Wednesday, April 14, 2021

नया रंग

प्यार में नाकामी का तमगा हासिल है मुझे

ठीक रेल में सवार पैसेंजर की तरह

हर स्टेशन पर पुराना साथी उतरा

नया साथी बनता गया

सफ़र तो अलग बात थी

मंज़िल तक पहुंचना मुश्किल लगा मुझे।

 

रात में सन्नाटे का शोर

दिन के शोर से ज़्यादा कानो में गूंजता है।

मै अनसुना भी करू तो

अपने ही साए सा पीछा कहा छोड़ता है।

मुझे अकेला नहीं छोड़ता है।


हम सा साझदार न मिला था हमें अब तक

जब तक वो अपने बातो में इश्क को लपेटे

मेरे सामने नहीं आया था।

उस वक़्त पछताया , मोहबत में डूब जाने की

बेवकूफी क्यों नहीं की अब तक


शब्द दर शब्द बिना किसी अंतरा, लय, छंद के

कुछ लिखने की कोशिश में है

देखते है क्या बना सकता है।

शायद कविता , कहानी या कुछ और उभरे

अच्छा हो किसी दोस्त के मन में भी

इसे पढ़ कर साहित्य का नया रंग निकले।

 

 

 

रिंकी

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