प्यार होने या न होने मे
फर्क बस इतना था
जब वो था तो,मैं नहीं था
जब मैं था वो नहीं
प्यार के देहलीज के लकीर
पर
हम दोनों खड़े रहे
सुबह से शाम तक परछाई
बदली
हम खड़े रहे ठुठे पेड़ की
तरह
मौसम बदले
हम खड़े रहे
समाज की तरफ मुह किया
बस उनकी सहमति के लिए
आज हम दोनों खड़े है
आमने-सामने
अजनबी सा चेहरा लिए....
Rinki
No comments:
Post a Comment
Thanks for visiting My Blog. Do Share your view and idea.