चुनाव में महिला
मतदाताओं की भूमिका
भारतीय राजनीति में महिला
मतदाताओं को केवल चुनाव जीतने के लिए अस्त्र की तरह इस्तेमाल न किया जाए बल्कि इसके
साथ ही महिलाओं से संबंधित समस्या जैसे- दहेज प्रथा, अशिक्षा, महिला उत्पीड़न, रोजगार के मौकों को मिलने में बढ़ावा तथा लैंगिक असमानता को कम करने के लिए
सार्थक प्रयास किया जाना चाहिए तभी जाकर महिला मतदाता चुनाव में निर्णायक और
सार्थक भूमिका निभा पायेगी जो देश के
विकास में सहायक होगा।
वर्ल्ड इकनोमिक फोरम की
ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2017
(वैश्विक लैंगिक असमानता रिर्पोट) के अनुसार भारत
और सारे विश्व में महिलाओं और पुरूषों के बीच लैंगिक असमानता बढ़ी है।
144 देश को शामिल करने वाले सूचकांक में बंगलादेश 47 और चाईना 100वें स्थान अर्जित कर भारत से आगे हैं, दस वर्ष पूर्व 2006 में किये गये सर्वे में भारत 98 स्थान पर था दस साल के बाद
108वें पैदान पर आ गया। वर्ल्ड इकनोमिक फोरम दुनिया के देश के विकास के चार मानक
शिक्षा, स्वास्थ्य, आर्थिक भागीदारी एवं अवसर और राजनीतिक
प्रतिनिधित्व का आंकलन के आधार पर रिपोर्ट तैयार करता है।
भारत का प्रर्दशन 2006 में किये गये अध्यन के
अनुसार बहुत निराशाजनक रहा है, देश में महिला सशक्तिकरण के लिए कई एक्ट तथा कानूनी प्रावधान उपलब्घ कराये गये
हैं पर जमीनी हकीकत कुछ और बता रही है। धरातल पर महिला सशक्तिकरण हेतु सरकार ने गत
70 साल में महिला एवं बाल
विकास मंत्रालय के महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा विभिन्न योजनाओं और सेवाओं को
लागू कर बजट का प्रावधान किया गया है पर नतीजों को देखकर लगता है की देश की जनता
का टैक्स के पैसे सदुपयोग नही हुआ है।
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इस रिपोर्ट के अनुसार भारत
महिलाओं की भागीदारी राजनीति में बढ़ी है, इसका मुख्य कारण संभवतः यह है कि देश के 09
राज्यों आंध्रप्रदेश, बिहार,छत्तीसगढ़ , झारखण्ड, महाराष्ट्र, उड़ीसा, राजस्थान, त्रिपुरा और उतराखंड में महिला उम्मीदवारों के लिए 50% आरक्षण हैै।
गत 10 वर्ष में महिलाओंकी
भागीदारी राजनीति में बढ़ी है। लेकिन महिला प्रतिनिधियों के जीत का प्रतिशत बहुत कम
है जैसे कि 2014 में 206 महिला प्रतिनिधि निर्दलीय खड़ी हुई पर एक भी प्रतिनिधि जीत
अर्जित नही कर सकी। इसके विपरीत जो महिला उम्मीदवार किसी पार्टी के तरफ से चुनाव
में लड़ी वे पार्टी के नाम पर वोट प्राप्त कर सकी।
आज भी निर्दलीय महिला प्रतिनिधियों को आज भी नेता के रूप में समाज में
पूर्णतः स्वीकृति प्रदान नही हुयी है। राजनीतिक वृद्धि के अलावे
अन्य घटक में भारत नीचे खिसक गया है, किसी भी देश के विकास में शिक्षा, स्वास्थ्य, आर्थिक भागीदारी के अवसर महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं इन बुनियादी मानक में
पिछड़ने से देश के विकास पर प्रतिकूल असर पड़ता है।
महिला वोटर का चुनाव में
भूमिका
भारतीय संविधान के द्वारा 1950 में मतदान का अधिकार पाकर
महिला वोटरों ने चुनाव की अहम कड़ी बन गयी है। मतदान का अधिकार पाने के लिए भारतीय
महिलाओं को यूरोपीय तथा अमेरिकन महिलाओं की तरह संघर्ष नही करना पड़ा। किसी भी देश
के विकास के लिए देश की आधी आबादी को नजरअंदाज कर के चुनाव जीतने की परिकल्पना
करना व्यर्थ है।
हाल के कुछ वर्षो में महिला
मतदाताओं ने चुनाव के नतीजों को प्रभावित किया है। 2014
के लोकसभा चुनाव तथा बिहार और उत्तरप्रदेश का चुनाव में महिला मतदाताओं ने निर्णायक भूमिका
निभायी है। 2014 के मतगणना के अनुसार 65.63: महिलाओं ने 67.00: पुरूष के अनुपात में मतदान किया था, भारत निर्वाचन आयोग के अनुसार 16 राज्यों में महिलाओं ने पुरूषों के अपेक्षा अधिक मतदान कर
नतीजों का रूख मोड़ दिया है।
महिला मतदाता जीत की
संभावनाओं को बढ़ाने में मदद करती हैं। इसे इस तरह से समझा जा सकता है कि यदि किसी
राज्य में 50% मतदाता है बिना
महिला मतदाताओं के तो किसी भी उम्मीदवार के जीतने की संभावना बहुत कम हो जाती है
यदि इसमें आधी आबादी जुड़ जाए तो मतदाताओं की संख्या बढ़कर करीब दोगुणी हो जाती है, इससे जीतने की संभावना बढ़
जाती है।
इसलिए राजीनतिक पार्टीयॉं
महिला वोटरों को आकर्षित करने के लिए सामाजिक मुद्दे जैसे- शराब, दहेज, तलाक, महिला उत्पीड़न को कम करने
पर जोर दे रही है। बहुत हद तक ये रणनीति कारगर भी साबित हुई है। दो राज्य बिहार और
यूपी के नतिजों ने महिला वोटरों की भूमिका को स्पष्ट रूप से उजागर किया है।
महिला मतदाताओं की
चुनौतियाँ
महिला मतदाताओं की अपनी कई
चुनौतियॉं है, सबसे मुख्य है
राजनीति का संक्षिप्त ज्ञान और जानकारी। भारत में बहुत कम महिलायें मिलेंगी
जिन्हें राजनीति में जिज्ञासा होती है, इसका कारण ये है कि महिलाओं की प्राथमिकता पुरूषों से अलग
है। महिला परिवार की धुरी होेती है वो परिवार की अन्नपूर्णा, लक्ष्मी और सबके स्वास्थ्य
की देखभाल करने वाली मानी जाती है। इनसभी महत्वपूर्ण दायित्व को निभाते हुए उनके
लिए देश और दुनिया की खबर रखना बहुत आसान नही रह जाता है।
इसके विपरीत पुरूष राजनीतिक
गतिविधियों में बहुत सक्रिय होते हैं, चाय की दुकान,अखबार, गली-कुचों में भी राजनीति से संबंधित चर्चा करते हैं, लेकिन महिलाओं के लिए कोई भी मंच उपलब्ध नही है जहाँ वो देश
की दिशा और दशा पर सोंच सके।
देश में केवल महिला मतदाता
ही नही बल्कि बहुत कम महिला प्रतिनिधि भी राजनीतिक मामलों में जानकारी रखती है।
यद्यपि भारतीय संविधान में 73वां संविधान संशोधन अधिनियम के अंतर्गत पंचायती राज संस्थाओं के कुल स्थानों
में 1/3 (33 प्रतिशत) स्थान
महिलाओं के लिए आरक्षित है। इस व्यवस्था के अंतर्गत महिला को राजनीति में भागीदारी
का मौका तो मिला पर महिला प्रतिनिधि अधिकतर अपने पति का प्रतिनिधित्व करती हैं।
आरक्षण के बजह से पुरूष अपनी घर की माता या पत्नी को चुनाव में खड़ा कर देते हैं।
महिला सिर्फ एक चेहरा भर बन के रह जाती है । राजनीतिक स्तर पर निर्णय पुरूष ही
लेते हैं। महिलायें केवल कठपुतली की तरह बन कर रह जाती है।
महिला मतदाता की मुख्य
चुनौतियाँ
- राजनीति की सीमित जानकारी और राजनीतिक विचार-विमर्श करने के
लिए मंच का नही होना।
- सामाजिक व्यवस्था में महिलाओं का निम्न स्थान होना भी
निर्णय को प्रभावित करता है।
- महिला परिवार/समाज के प्रभाव में आकर वोट करती हैं।
- शिक्षा का अभाव जिससे निर्णय लेने की क्षमता में प्रभाव
पड़ता है।
चुनौतियॉ तो कई हैं पर
महिला मतदाताओं की भूमिका चुनाव में बहुत अहम्् और निर्णायक होते जा रही है।
महिला मतदाता सशक्तिकरण
महिलाओं को वर्ग, जाति और महिला होने के कारण
अनेक अवसरों से वंचित रहना पड़ता है। भारत की लगभग 50 प्रतिशत आबादी केवल महिलाओं की है । मतलब पूरे देश के
विकास के लिये इस आधी आबादी की जरूरत है, जो अभी भी सशक्त नही है और कई सामाजिक प्रतिबंधों से बंधी
हुई है। ऐसी स्थिति में हम नही कह सकते हैं कि भविष्य में बिना हमारी आधी आबादी को
मजबूत किये हमारा देश विकसित हो पायेगा। महिलाओं को राजीनतिक सशक्त और लैंगिक
असमानता को दूर करके ही देश का पूर्ण विकास हो सकता है।
कानुनी अधिकार के साथ
महिलाओं को सशक्त बनाने के लिये संसद द्वारा पास किये गये कुछ अधिनियम है - एक
बराबर पारिश्रमिक एक्ट 1976, दहेज रोक अधिनियम1961, अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम 1956, मेडिकल टर्म्नेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1987, बाल विवाह रोकथाम एकट 2006, लिंग परीक्षण तकनीक
(नियंत्रक और गलत इस्तेमाल के रोकथाम) एक्ट 1994, कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन शोषण एक्ट 2013 अधिनियम का उद्देश्य महिलाओं
को समाज में समान स्तर पर खड़ा करना है।
राष्ट्रीय महिला सशक्तिकरण
अभियान 2014 भी इसी प्रयास की
कड़ी है। भारत सरकार ने ‘‘राष्ट्रीय मतदाता दिवस‘‘ और मतदाता जानकारी, सूचना और शिक्षा नेटवर्क जैसे मंच के द्वारा मतदाताओं को अपने अधिकार के प्रति
जागरूक करने का प्रयास किया है।
महिला सशक्तिकरण के लिए कई
सार्थक कदम उठाने होगें, जिससे महिला मतदाता का चुनाव में सार्थक रूप से भागीदार बनाने के लिए
निम्नलिखित बिन्दुओं पर ध्यान देना होगा-
- महिला शिक्षा के स्तर को बढाना।
- लैंगिक असमानता में कमी लाना।
- राष्ट्रीय महिला सशक्तिकरण अभियान को धरातल पर लाना।
- राष्ट्रीय महिला सशक्तिकरण अभियान 2014 को सशक्त बनाना एवं धरातल पर उसे लागू करना।
मतदाता जागरूकता अभियान पर
चुनाव आयोग ने मतदान करने के अधिकार, महत्व और उसके प्रभाव के बारे में मतदाता को जागरूक करने का
प्रयास किया है। पर जागरूकता अभियान में
महिला पुरूष की सामाजिक
स्थिती का आंकलन करके कोई ठोस तैयारी नही की है ये भी बस काम चलाउ स्तर पर ही है।
निष्कर्ष -
रिंकी