तूने खूब रचा भगवान्
खिलौना माटी काइसे कोई ना सका पहचान
खिलौना माटी का
वाह रे तेरा इंसान विधाता
इसका भेद समझ में ना आता
धरती से है इसका नाता
मगर हवा में किले बनाता
अपनी उलझन आप बढाता
होता खुद हैरान
खिलौना माटी का
तूने खूब रचा खूब गड़ा
भगवान् खिलौना माटी का
कभी तो एकदम रिश्ता जोड़े
कभी अचानक ममता तोड़े
होके पराया मुखड़ा मोड़े
अपनों को मझधार में छोड़े
सूरज की खोज में इत उत दौड़े
कितना ये नादान
खिलौना माटी का
तूने खूब रचा खूब गड़ा
भगवान् खिलौना माटी का
सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteKavi Pradeep, ki sundar prastuti.
Deleteसच इस इंसान रुपी माटी के खिलौने को समझना इंसान की बस की बात नहीं, इसे जिसने रचा वही जाने , बहुत अच्छा गीत
ReplyDeleteKavi Pradeep ki sundar prastuti.
Deleteअच्छी जानकारी !! आपकी अगली पोस्ट का इंतजार नहीं कर सकता!
ReplyDeletegreetings from malaysia
let's be friend
Thanks
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