चुप ने ऐसी बात कही
खामोशी में सुन बैठे
साथ जो न बीत सके
हम वो अँधेरे चुन बैठे
कितनी करूं मैं इल्तिजा
साथ क्या चाँद से
दिल भर कर आँखे थक गया
फिर भी ना रो पाये हम
जुड़ ना पाये बाद तेरे
टुकड़े दिल के रखूँ क्या
याद तेरी कोई बात नहीं
लफ्ज़ों में मैं लिखूं क्या?
छाँव थी तेरे साथ की
बेरहम धुप ने
राख किया।
सुन्दर
ReplyDeleteDhanywad
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteधन्यवाद जी
Deleteबेहतरीन पंक्तियाँ
ReplyDeleteधन्यवाद जी
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteधन्यवाद जी
Deleteवाह!
ReplyDeleteधन्यवाद जी
Deleteधन्यवाद जी
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