Wednesday, September 21, 2022

अनोखा स्वयंवर : ओड़िशा की लोक-कथा

 उत्कल देश पर एक शक्तिशाली राजा राज करता था। उसकी एक सुंदर, प्रतिभाशाली और बुद्धिमती पुत्री थी ऐश्वर्या। सुरीली आवाज़ की सम्राज्ञी और एक बेहतरीन नृत्यांगना होने के साथ-साथ उसे वेद-ग्रंथों का भी खूब ज्ञान था। ऐश्वर्या को अपने रंग-रूप, ज्ञान और गुणों पर काफी गर्व था।

इक्कीस वर्ष की होने पर उसके पिता ने कहा, "पुत्री, मैं तुम्हारे लिए स्वयंवर आयोजित कर रहा हूं। इसमें देशभर से राजाओं-राजकुमारों को आमंत्रित किया जाएगा। जिसे तुम चाहो, अपना वर चुन सकोगी।"

"पिताजी, मेरा स्वयंवर साधारण नहीं होना चाहिए। जिसे मैं अपना जीवनसाथी चुनूंगी, वह एक विशेष व्यक्ति होगा। एक ऐसा युवा जो सर्वोत्तम से भी बढ़कर हो," ऐश्वर्या पिता से बोली।

"कौन कितना सर्वोत्तम है यह कैसे मालूम पड़ेगा पुत्री?"

"इसके लिए हमें विभिन्न श्रेणियों में प्रतियोगिताएं आयोजित करनी होंगी। सभी प्रतियोगिताएं जीतने वाले को सर्वश्रेष्ठ और उपयुक्त माना जाएगा।"

"तो फिर किस-किस तरह की प्रतियोगिताएं होनी चाहिए?"

"तीरंदाजी, गायन, नृत्यकला, शास्त्रज्ञान और सौंदर्य," ऐश्वर्या बोली।

"ठीक है ऐश्वर्या," राजा बोला, "मैं रतन से कह देता हूं। वह स्वयंवर की सभी व्यवस्थाएं करनी शुरू कर देगा।"

रतन राज्य के प्रधानमंत्री का पुत्र था। ऐश्वर्या और रतन, दोनों एक साथ पले-बढ़े थे। किसी को भी मालूम नहीं था कि रतन मन-ही-मन ऐश्वर्या को चाहता था। वह जानता था कि ऐश्वर्या से विवाह करने की अपनी अभिलाषा को वह कभी व्यक्त नहीं कर सकता था। अब वह ठहरा एक मंत्री का बेटा और ऐश्वर्या इतने बड़े देश के राजवंश की राजकुमारी।

छह महीने बाद प्रतियोगिताएं प्रारंभ हो गईं। दूर-देश से राजा, महाराजा, राजकुमार और राजसी पुरुष इनमें भाग लेने पहुंचे। सभी प्रजावासियों ने एक-एक प्रतियोगी की प्रतिभाओं को देखा। हफ्तेभर ये प्रतियोगिताएं चलती रहीं और आठवें दिन परिणाम घोषित किए गए। कोई भी राजा या राजकुमार स्पष्ट विजेता नहीं बन पाया।

कौशल का राजकुमार कामदेब सबसे सुंदर था तो उल्हास राज्य का राजकुमार प्रकृत गायन में प्रवीण था। कृतिनगर के नृत्यानंद ने नृत्य में अपना लोहा मनवाया तो कांचीपट्नम के पराक्रम सर्वोत्तम तीरंदाज़ घोषित किए गए। शास्त्रज्ञान में स्वस्तीपुर के ज्ञानचंद्र विजयी रहे।।

“अब क्या किया जाए पिताजी?" ऐश्वर्या ने पूछा।

"इन्हीं में से तुम्हें अपना वर चुनना है पुत्री," राजा ने उत्तर दिया।

"लेकिन कैसे पिताजी? मैं तो चाहती थी मेरा वर सर्वश्रेष्ठ से बढ़कर हो। पर ये प्रतियोगी तो एक-एक गुण में ही श्रेष्ठ हैं।"

“मैं तो कहता हूं कि इन पांचों युवकों को यहां कुछ दिन और अतिथि के रूप में रहने दो। शायद यह सामने आ जाए कि इनमें से कौन सर्वश्रेष्ठ है," राजा ने पुत्री को सलाह दी।

इस तरह पांचों राजकुमार महल में कुछ दिन और रहे। स्वयं को सबसे श्रेष्ठ सिद्ध करने के लिए वे हर संभव प्रयास करने लगे।

सूर्य की पहली किरण के साथ ऐश्वर्या को प्रकृत की मधुर आवाज़ में रोमांचकारी गीत सुनने को मिलते। वह नीचे बगीचे में खड़ा गा रहा होता। जैसे ही वह सीढ़ियों से उतरकर नीचे आती तो राजसी वेशभूषा में सजा-धजा कामदेब राजकुमारी के समक्ष अपना प्रणय-निवेदन रखने के लिए खड़ा रहता। इसके बाद ज्ञानचंद्र राजकुमारी के साथ वेदों और उपनिषदों पर विमर्श करना शुरू कर देता था। फिर पराक्रम भी कहां पीछे रहता। वह भी राजकुमारी को अपनी धनुर्विद्या का प्रदर्शन दिखाता। शाम के समय जब वह अपने कक्ष में आराम कर रही होती तो नृत्यानंद उसे नृत्य-कक्ष में अपना शास्त्रीय नृत्य दिखाने के लिए बुला लेता।

जैसे-जैसे ऐश्वर्या उनके साथ समय बिता रही थी, वैसे-वैसे उसकी उलझन बढ़ती जा रही थी। किससे विवाह करे, इस प्रश्न का उत्तर तलाश पाना स्वयं उसके लिए कठिन हो गया। यह दुविधा उसने रतन को बताई।

"इसमें मैं आपकी कोई सहायता नहीं कर सकता राजकुमारी ऐश्वर्या। ये निर्णय आपका है और आपको ही लेना है," रतन विनम्रतापूर्वक बोला।

"क्या मतलब है तुम्हारा? मैं क्या चाहती हूं, मुझे नहीं पता?"

अपना सिर झुकाकर रतन बोला, “विवाह के लिए आप किसी व्यक्ति को तलाश रही हैं या किसी गुण विशेष को?"

"स्वाभाविक है, किसी व्यक्ति को!" चिड़कर ऐश्वर्या ने जवाब दिया।

"तो फिर आप पर गुणों की धुन क्यों सवार है। इस चक्कर में आप वर को भूल रही हैं। सुंदर युवा, उत्कृष्ट नर्तक, कुशल धनुर्धर, प्रतिभाशाली गायक और शास्त्रज्ञाता होने से पहले वे कैसे व्यक्ति हैं, क्या आपने यह जानने का प्रयास किया?" रतन ने अपनी बात को मज़बूती से रखा।

ऐश्वर्या हैरान थी। उसने सोचा नहीं था कि रतन उसके बारे में इतनी गहराई से सोचता होगा। इससे पहले वह कुछ कहती, रतन चला गया।

रतन के कहे शब्द रातभर राजकुमारी के दिमाग में गूंजते रहे।

अगले दिन मौसम बहुत सुहावना था। पांचों राजकुमार और राजकुमारी ऐश्वर्या दक्षिण के जंगलों के भ्रमण को निकले। रतन भी उनके साथ था। वह भूल गई कि उसके साथ सुरक्षाकर्मी नहीं है। ऐश्वर्या राजकुमारों से बातें करती चली जा रही थी। इस बीच समय कैसे बीत गया, उन्हें पता ही नहीं चला। तभी रतन रुका और बोला, “अब हमें वापस चलना चाहिए!"

"लेकिन क्यों?" कामदेब ने पूछा।

"अंधेरा होने वाला है, हमें समय से राजमहल लौट जाना चाहिए।"

"तुम्हें डर तो नहीं लग रहा रतन?" नृत्यानंद ने हँसते हुए कहा।

"तुम चिंता मत करो, हम हैं न तुम्हारे साथ," पराक्रम बोला।

"हां, हां! हम हैं न साथ में," ज्ञानचंद्र ने भी अपनी बात जोड़ी।

उन्हें अनदेखा करते हुए रतन बोला, “ऐश्वर्या, महल से निकले तीन घंटे से अधिक समय हो चुका है। महाराज चिंता कर रहे होंगे। जंगल के इस इलाके में बाघ हैं। हमारे पास शस्त्र भी नहीं हैं। आओ, वापस चलें।"

रतन के निवेदन को अनसुना करते हुए ऐश्वर्या चलती रही। पांचों राजकुमार तिरस्कारपूर्ण नज़रों से रतन को देखते हुए राजकुमारी के संग हो लिए। उन पर ध्यान न देते हुए रतन भी उनके पीछे चलने लगा।

अचानक एक ज़ोरदार दहाड़ सुनाई पड़ी। सब रुक गए। कुछ ही कदमों की दूरी पर एक खतरनाक बाघ खड़ा था। ऐसा बाघ ऐश्वर्या ने कभी नहीं देखा था। वह ऐश्वर्या को घूरने लगा और उस पर गुर्राने लगा।

इससे पहले कि कोई कुछ करता, रतन राजकुमारी के आगे आकर खड़ा हो गया। बाघ ने रतन पर नज़रें गड़ा दीं। रतन बोला, “भागो ऐश्वर्या, भागो! बाघ भूखा है। जब तक मैं इसे रोक सकता हूं, रोकूँगा...आप भागोऽऽऽ।"

"हां, आओ ऐश्वर्या, सैनिकों को बुला लाते हैं," कामदेब ने कहा।

"मैं रतन को छोड़कर नहीं जाऊंगी," ऐश्वर्या बोली।

"अरे....हम छोड़कर थोड़े जा रहे हैं। मदद मांगने ही तो जा रहे हैं," नृत्यानंद के मुंह से बड़ी मुश्किल से बोल निकल पा रहे थे।

"बाघ हमें कच्चा खा जाएगा, भागो ऐश्वर्या!" पराक्रम चिल्लाया।

"रतन को छोड़कर मैं नहीं जाऊंगी," राजकुमारी बोली।

"लेकिन हम तो जान बचाएं," ज्ञानचंद्र बोला और सभी भाग लिए।

रतन एक फुरतीला और हृष्ट-पुष्ट युवक था। जैसे ही बाघ रतन की ओर बढ़ा, रतन बाघ की पीठ पर झपट पड़ा। अपनी मज़बूत भुजाओं का फंदा बनाकर उसने बाघ की गर्दन को जकड़ लिया। बाघ ने उसे फेंकने के भरसक प्रयास किए, लेकिन रतन डटा रहा। तभी बाघ की जोरदार चीख निकली और वह शांत पड़ गया। ऐश्वर्या ने पलटकर देखा, सुरक्षाकर्मी पहुंच चुके थे। उनके चलाए तीरों से बाघ धराशायी हो गया था।

रतन उठ खड़ा हुआ। बाघ ने उसे कई चोटें पहुंचाईं, लेकिन वे गंभीर नहीं थीं। ऐश्वर्या दौड़कर रतन के पास पहुंची और उसका हाल पूछा।

सुरक्षाकर्मी बोला, "महाराज आप लोगों के लिए चिंतित हो रहे थे और उन्होंने हमें आपको तलाशने के लिए भेज दिया। रास्ते में वे पांचों राजकुमार हमें मिले और उन्होंने हमें बताया कि आपकी जान खतरे में है।"

***

अगले दिन ऐश्वर्या रतन से मिलने पहुंची।

"कैसे हो तुम रतन? मैं तुम्हें अपना निर्णय बताने आई हूं।"

"अच्छा, तो किसे चुना आपने? गायक, नर्तक, धनुर्धर, शास्त्रज्ञाता या फिर वह सुंदर युवक?" रतन ने उत्सुकता से पूछा।

"नहीं, इनमें से कोई मेरा पति बनने के योग्य नहीं है। मैंने ऐसे व्यक्ति को चुना है जो अपने से अधिक मेरे जीवन को महत्त्व देता है।"

रतन ने सिर उठाकर ऐश्वर्या के चेहरे की ओर घूरकर देखा।

"क्या आप सच कह रही हैं राजकुमारी ऐश्वर्या?"

"हां, मैंने तुम्हें अपने पति के रूप में चुना है। अब मैं तुम्हारे दिल की बात जानना चाहती हूं। मुझे अपनी जीवनसंगिनी स्वीकार करोगे?"

"ऐश्वर्या, मैंने सदा आपको दिल से चाहा है। मुझे अपने योग्य समझकर आपने मुझे दुनिया का सबसे भाग्यशाली इंसान बना दिया है।"

एक माह के पश्चात ऐश्वर्या और रतन का विवाह हुआ। इस भव्य आयोजन में सौंदर्य की प्रतिमा ऐश्वर्या और प्रसन्नचित्त रतन को देखकर उत्कलवासियों ने वर-वधू की खूब वाह-वाही की।

Tuesday, September 6, 2022

तुम हो कौन?

एक बार यूनान का सबसे धनी व्यक्ति अपने समय के सबसे बड़े विद्वान सुकरात से मिलने गया। उसके पहुंचने पर सुकरात ने जब उसकी ओर ध्यान ही नहीं दिया तो उसने कहा, ‘‘क्या आप जानते हैं मैं कौन हूं?’’

सुकरात ने कहा, ‘‘जरा यहां बैठो, आओ समझने की कोशिश करें कि तुम कौन हो?’’
सुकरात ने दुनिया का नक्शा उसके सामने रखा और उस धनी व्यक्ति से कहा,
‘‘बताओ तो जरा, इसमें एथेंस कहां है?’’
वह बोला, ‘‘दुनिया के नक्शे में एथेंस तो एक बिन्दु भर है।’’
उसने एथेंस पर उंगली रखी और कहा, ‘‘यह है एथेंस।’’
सुकरात ने पूछा, ‘‘इस एथेंस में तुम्हारा महल कहां है?’’
वहां तो बिन्दु ही था, वह उसमें महल कहां से बताए। फिर सुकरात ने कहा, ‘‘अच्छा बताओ, उस महल में तुम कहां हो?’’

यह नक्शा तो पृथ्वी का है। अनंत पृथ्वियां हैं, अनंत सूर्य हैं, तुम हो कौन? कहते हैं, जब वह जाने लगा तो सुकरात ने वह नक्शा यह कहकर उसे भेंट कर दिया कि इसे सदा अपने पास रखना और जब भी अभिमान तुम्हें जकड़े, यह नक्शा खोलकर देख लेना कि कहां है एथेंस? कहां है मेरा महल? और फिर मैं कौन हूं? बस अपने आपसे पूछ लेना।

वह धनी व्यक्ति सिर झुका कर खड़ा हो गया तो सुकरात ने कहा, ‘‘अब तुम समझ गए होंगे कि वास्तव में हम कुछ नहीं हैं लेकिन कुछ होने की अकड़ हमें पकड़े हुए है। यही हमारा दुख है, यही हमारा नरक है।

जिस दिन हम जागेंगे, चारों ओर देखेंगे तो कहेंगे कि इस विशाल ब्रह्मांड में हम कुछ नहीं हैं।

Monday, September 5, 2022

हंसने-रोने का रहस्य: गुजरात की लोक-कथा

 एक दिन चौपाल पर कुछ युवक राजा द्वारा की गई घोषणा की चर्चा कर रहे थे। तेजी ने सुना, “राजा अपनी राजकुमारी के लिए वर खोज रहे हैं, जिसके लिए स्वयंवर आयोजित होना है। स्वयंवर में भाग लेने की कुछ शर्तें हैं। पहली शर्त के अनुसार दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। पहला प्रश्न है-गौशाला में तीन गायें हैं, बताना है कौन सी गाय उम्र में सबसे छोटी, कौन सी उससे बड़ी और कौन सी सबसे बड़ी है। दूसरी पहेली है-एक बंद ख़ाली कमरे को कुछ सामान रखे बिना कैसे भरा जा सकता है? आगे युवक कह रहे थे-“दो पहेलियां किसी ने सुलझा भी लीं तो अंतिम शर्त तो पूरी करना असंभव ही है। कड़े पहरे के बीच राजमहल मेँ प्रवेश करना और फिर अंत:पुर से राजकुमारी के पलंग के पायों के नीचे से सोने की ईटें निकालकर राजा के सामने लाना, भला इतनी हिम्मत कौन कर सकता है?” तेजी ने ध्यान से सारी बातें सुनी और अनमना सा घर वापस आया।


उदास बेटे को प्रसन्‍न करने के लिए हीरबाई ने तेजी की मनपसंद बाजरे की रोटी, चटनी और साग परोसा, लेकिन वह दो-चार निवाले खाकर ही उठ गया। खटिया पर लेटा वह उहापोह में पड़ा था, 'मां से कैसे पूछूं, कहीं मना कर दिया तो?' तभी हीरबाई सिरहाने बैठकर उसका सिर सहलाने लगी। अचानक तेजी को अपना सपना याद आ गया और वह हंसने लगा, लेकिन मां ख़ुश होती, इसके पहले ही वह रोने लगा। उस दिन हीरबाई ने कारण जानने की जिद कर ली। तेजी उदास स्वर में बोला, “राजा की घोषणा को तू जानती है, मैं भी दरबार में जाकर अपना भाग्य आज़माना चाहता हूं, तू मुझे जाने देगी?” हीरबाई बोली, “मुझे तुझ पर पूरा विश्वास है, तू जा।"

अगले दिन तेजी राजा के दरबार में पहुंचा। राजा चिंतित थे, स्वयंवर के लिए उनकी शर्तें शायद कुछ अधिक ही कठिन थीं। अभी तक कोई युवक सफल नहीं हो पाया था। तेजी की वेश-भूषा उन्हें अजीब लगी। फिर भी कुछ सोचकर उन्होंने उसे गौशाला में भेज दिया जहां तीनों गायें थीं। तेजी ने राजा से गायों को दो-तीन दिनों तक अपनी देखरेख में रखने की अनुमति ली। उसने गायों को दो दिनों तक भूखा रखा। तीसरे दिन मैदान में घास का ढेर रखा और उसे चारों ओर से बांस और रस्सी से घेरकर थोड़ा ऊंचा बाड़ा बना दिया। फिर वह गायों को ले आया। एक ही छलांग में घास तक पहुंचने वाली गाय उम्र में सबसे छोटी थी। कई बार उछलने की कोशिश के बाद पहुंचने वाली गाय उससे बड़ी और गिरते- पड़ते किसी तरह पहुंचने वाली बूढ़ी गाय थी। तेजी के उत्तर से राजा संतुष्ट हुए।

दूसरी पहेली सुलझाने के लिए तेजपाल राजा से कुछ समय लेकर घर आ गया। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि बिना कुछ रखे ख़ाली कमरे को भला कैसे भरा जा सकता है? सोचते-सोचते एक सुबह अचानक उसे इसका भी हल मिल गया। वह राजा के दरबार में पहुंचा । राजा उसे बंद ख़ाली कमरे में ले गए। तेजी ने कमरे की सारी बंद खिड़कियां और दरवाज़े खोल दिए। कमरा सूर्य के प्रकाश से पूरी तरह से भर गया।

राजा तेजी की बुद्धिमानी से चकित थे। उन्होंने उसे तीसरी शर्त पूरी करने के लिए कहा। कुछ दिनों की मोहलत लेकर वह फिर घर लौट आया। मां के साथ मिलकर तरकीबें सोचता रहा। हीरबाई अपने बेटे के लिए चिंतित हो रही थी, लेकिन तेजी ने हार नहीं मानी। उसने वेष बदल- बदलकर राजमहल के आसपास कहीं से भी महल में प्रवेश करने की संभावना ढूँढी और एक योजना बना डाली।

तेजी ने महल के पास घुड़साल में घास ले जाने वाले घसियारे से दोस्ती कर ली। घसियारा अच्छा इंसान था। तेजी ने एक दिन उसे विश्वास में लेकर सारी बातें बताईं और बोला, “मुझे घास के गट्ठर में छिपाकर महल के पास पहुंचा दो।” उसकी बात मानकर घसियारे ने उसे महल के परिसर तक पहुंचा दिया। वह घास के ढेर में छिपा रात होने की प्रतीक्षा करता रहा। अंधेरे में कोई आसानी से नहीं देख सके इसलिए उसने काले रंग की पोशाक पहन रखी थी।

आधी रात को अंधेरे में छिपते-छिपाते वह राजकुमारी के कमरे तक जा पहुंचा । राजकुमारी गहरी नींद में सो रही थी। पलंग के चारों पायों के नीचे सोने की ईटें अंधेरे में भी चमक रही थीं। उसने धीरे से राजकुमारी को जगाया। काली आकृति देखकर वह डर गई। तेजी ने कहा, “मैं यमदूत हूं, तुम्हें ले जाने आया हूं।” राजकुमारी डरते-डरते बोली, “मेरा विवाह होने वाला है, मैं जीना चाहती हूं। मुझे छोड़ दो।" तेजी ने कहा, “मैं तुम्हें छोड़ दूं तो यमराज दूसरे दूत को भेजेंगे, वह तुम्हें ले जाएगा। यदि तुम मरना नहीं चाहती तो सामने रखे संदूक़ में छिप जाओ, वह तुम्हें नहीं खोज सकेगा।” राजकुमारी के हामी भरते ही तेजपाल ने उसे संदूक में बैठाकर संदूक़ बंद कर दिया और सोने की ईंटें निकाल लीं।

संदूक़ में बैठी राजकुमारी की नींद अब पूरी तरह से खुल चुकी थी। वह बहुत डरी हुई थी, सोच रही थी, चिल्‍लाकर प्रहरियों को बुलाए या संदूक़ को ज़ोर-ज़ोर से पीटे। तभी मन में बिजली सा एक विचार कौंधा, 'कहीं यह वही नवयुवक तो नहीं जिसकी बुद्धिमानी की प्रशंसा पिताजी कर रहे थे! इसने दो शर्तें पूरी कर ली हैं और शायद तीसरी पूरी करने आया है। अपने को यमराज बताकर तो इसने मुझे नींद में डरा ही दिया था, यह तो मेरा होने वाला पति है।' राजकुमारी सांस रोके चुपचाप बैठी रही। सोचने लगी, 'असली बहादुरी, हिम्मत और बुद्धि की परख तो तब होगी जब यह ईंटें लेकर सुरक्षित महल से निकल जाएगा। देखूं, क्या करता है?'

अब तेजपाल दबे पांव राजा के कमरे में पहुंचा, सिरहाने राजा की राजसी पोशाक रखी थी। उसने उसे पहन लिया और बाहर निकला। अंधेरे में प्रहरियों ने उसे राजा समझ आंखें झुकाकर सलाम किया। राजकुमारी ने सुना, तेजी प्रहरी को आज्ञा दे रहा था, “कोचवान से गाड़ी निकलवाकर राजकुमारी के कमरे का संदुक रखवा दो, मुझे अभी प्रस्थान करना है।” हुक्म सुनते ही कोचवान गाड़ी ले आया और उसमें संदूक रख दिया गया। राजा का वेष धारण किए तेजपाल राजमहल से दूर निकल आया। अपने घर से कुछ दूरी पर उसने गाड़ी रुकवाई, संदूक़ उतरवाया और कोचवान को लौट जाने की आज्ञा दी। उसके चले जाने के बाद उसने राजकुमारी को संदूक़ से बाहर निकाला और बोला, “डरो मत, मैं तुम्हें तुम्हारे पिता के पास पहुंचा दूंगा। राजा की शर्त ही ऐसी थी कि उसे पूरी करने के लिए मुझे ये सब करना पड़ा। अब मुझे डर है, कहीं तुम्हें यहां लाने के अपराध में राजा मुझे दंडित न करें।" राजकुमारी तो सब कुछ समझ चुकी थी, हंसते हुए बोली, “पिताजी से तुम्हारे लिए क्षमा मांग लूँगी।"

तेजी राजकुमारी को लेकर घर आया। दोनों को देखकर हीरबाई ने ढेरों सवाल पूछ डाले, लेकिन तेज़ी ने कहा, “थोड़ा धैर्य रखो, सब बता दूंगा।” तभी अचानक उसे अपना सपना याद आ गया, वह हंसने लगा। लेकिन यह क्या! अगले ही पल उसकी आंखें भर आईं। राजकुमारी ने कारण पूछा, लेकिन तेजी क्या बताता!

उधर सुबह होते ही राजमहल में राजकुमारी को नहीं देख कोहराम मच गया, सभी परेशान थे। अचानक राजा की नज़र पलंग के पायों पर पड़ी और वे सब कुछ समझ गए। उन्होंने प्रहरियों को तेजी के घर भेजा। प्रहरी दोनों को लेकर राजा के सामने आए। तेजपाल ने हाथ जोड़कर क्षमा मांगते हुए सोने की चारों ईंटें राजा के सामने रख दीं। राजा ने उसी समय निश्चय कर लिया कि तेजी ही उसकी राजकुमारी के लिए योग्य वर है। निर्धनता कोई दुर्गुण नहीं। तेजी ने अपनी हिम्मत, बहादुरी, बुद्धि और शराफ़त से स्वयं को असाधारण सिद्ध कर दिया था।

राजा ने बड़ी धूमधाम से राजकुमारी का विवाह तेजपाल के साथ कर दिया।

Friday, September 2, 2022

कर भला, हो भला: केरल की लोक-कथा

 किसी गाँव में एक मंदिर था। मंदिर के पुजारी और उनकी पत्नी, भगवान के भक्त थे। प्रतिदिन पति-पत्नी मंदिर की सफाई करते, पूजा-अर्चना की सामग्री जुटाते और मंदिर में आने वालों को भोजन कराते।


वे दोनों निःसंतान थे। जब भी ओणम का त्यौहार आता, वे उदास हो जाते। पुजारी की पत्नी तरह-तरह के स्वादिष्ट पकवान बनाती। उसके हाथ की बनी सांबर, रसम, ओलन व अवियल बहुत मजेदार होती थी। गाँव-भर के बच्चे उसके घर जा पहुँचते और भरपेट भोजन पाते। जाते समय वह सभी को मुट्ठी भरकर शर्करपुराट्ट (यह व्यंजन केले के चिप्स में गुड़ लगाकर बनता है।) देती।

इसी तरह दिन बीत रहे थे। एक बार एक नंबूदिरी ब्राह्मण उस मंदिर में आया। वह गरीब अपनी बेटी की शादी के लिए धन एकत्र कर रहा था। मंदिर में भोजन मुफ्त मिलता था। उसने खाने से पूर्व नहाना उचित समझा।

अपने धन की थैली को स्नान कुंड के किनारे रखकर वह स्नान करने लगा। स्नान करके लौटा तो थैली वहाँ नहीं थी। उसने सभी से पूछा परंतु कोई भी थैली का पता न बता सका। भगवान जाने थैली को जमीन निगल गई या आसमान खा गया था? बेचारा रोता-कलपता अपने गाँव लौट गया।

कुछ समय बाद पुजारी की पत्नी झाड़ू लेकर सफाई करने आई। ज्यों ही उसने गाय का गोबर उठाया तो थैली मिल गई। हुआ यूँ कि जब ब्राह्मण स्नान करने गया तो एक गाय ने थैली पर ही गोबर कर दिया।

गोबर से ढकने के कारण उसे थैली दिखाई नहीं दी। पुजारी की पत्नी ने बड़े यत्न से ब्राह्मण की अमानत को सँभाल लिया। उसने एक बार भी थैली का मुँह तक नहीं खोला।

संयोग से कुछ माह पश्चात्‌ वह ब्राह्मण पुन: वहाँ आया। धन की थैली खोने के बाद, उसकी परेशानी और बढ़ गई थी। पुजारी ने ब्राह्मण को भोजन करवाया। फिर उसके धन की थैली सामने ला रखी। ब्राह्मण मारे खुशी के रो पड़ा। उसने सारी कहानी सुनी और पुजारी की पत्नी से बोला-
“इस धन पर आपका भी अधिकार है। आप इसमें से आधा ले लें।' पुजारी की पत्नी एक धार्मिक महिला थी। उसने पराए धन का एक पैसा लेने से भी इंकार कर दिया।
ब्राह्मण ने प्रसन्‍न होकर उसे वरदान दिया, 'अगले ही वर्ष तुम एक प्रतिभाशाली, यशस्वी पुत्र की माता बनोगी।'

ऐसा कहकर ब्राह्मण लौट गया। अगले वर्ष पुजारी की पत्नी ने अपने मन की मुराद पाई। जानते हो क्यों, उसका पुत्र कौन था? उसके यहाँ मलयालम के प्रसिद्ध कवि कुंजन नंबियार ने जन्म लिया।

इस कवि की तुलना किसी से नहीं की जा सकती। मलयालम भाषा के जानकार इसकी कविताएँ अवश्य पढ़ते हैं।

यह कहानी हमें शिक्षा देती है कि संसार में लोभ नहीं करना चाहिए। जो दूसरों का भला करता है, उसका स्वयं ही भला होता है।

असली परछाई

 जो मैं आज हूँ, पहले से कहीं बेहतर हूँ। कठिन और कठोर सा लगता हूँ, पर ये सफर आसान न था। पत्थर सी आँखें मेरी, थमा सा चेहरा, वक़्त की धूल ने इस...