एक दिन चौपाल पर कुछ युवक राजा द्वारा की गई घोषणा की चर्चा कर रहे थे। तेजी ने सुना, “राजा अपनी राजकुमारी के लिए वर खोज रहे हैं, जिसके लिए स्वयंवर आयोजित होना है। स्वयंवर में भाग लेने की कुछ शर्तें हैं। पहली शर्त के अनुसार दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। पहला प्रश्न है-गौशाला में तीन गायें हैं, बताना है कौन सी गाय उम्र में सबसे छोटी, कौन सी उससे बड़ी और कौन सी सबसे बड़ी है। दूसरी पहेली है-एक बंद ख़ाली कमरे को कुछ सामान रखे बिना कैसे भरा जा सकता है? आगे युवक कह रहे थे-“दो पहेलियां किसी ने सुलझा भी लीं तो अंतिम शर्त तो पूरी करना असंभव ही है। कड़े पहरे के बीच राजमहल मेँ प्रवेश करना और फिर अंत:पुर से राजकुमारी के पलंग के पायों के नीचे से सोने की ईटें निकालकर राजा के सामने लाना, भला इतनी हिम्मत कौन कर सकता है?” तेजी ने ध्यान से सारी बातें सुनी और अनमना सा घर वापस आया।
उदास बेटे को प्रसन्न करने के लिए हीरबाई ने तेजी की मनपसंद बाजरे की रोटी, चटनी और साग परोसा, लेकिन वह दो-चार निवाले खाकर ही उठ गया। खटिया पर लेटा वह उहापोह में पड़ा था, 'मां से कैसे पूछूं, कहीं मना कर दिया तो?' तभी हीरबाई सिरहाने बैठकर उसका सिर सहलाने लगी। अचानक तेजी को अपना सपना याद आ गया और वह हंसने लगा, लेकिन मां ख़ुश होती, इसके पहले ही वह रोने लगा। उस दिन हीरबाई ने कारण जानने की जिद कर ली। तेजी उदास स्वर में बोला, “राजा की घोषणा को तू जानती है, मैं भी दरबार में जाकर अपना भाग्य आज़माना चाहता हूं, तू मुझे जाने देगी?” हीरबाई बोली, “मुझे तुझ पर पूरा विश्वास है, तू जा।"
अगले दिन तेजी राजा के दरबार में पहुंचा। राजा चिंतित थे, स्वयंवर के लिए उनकी शर्तें शायद कुछ अधिक ही कठिन थीं। अभी तक कोई युवक सफल नहीं हो पाया था। तेजी की वेश-भूषा उन्हें अजीब लगी। फिर भी कुछ सोचकर उन्होंने उसे गौशाला में भेज दिया जहां तीनों गायें थीं। तेजी ने राजा से गायों को दो-तीन दिनों तक अपनी देखरेख में रखने की अनुमति ली। उसने गायों को दो दिनों तक भूखा रखा। तीसरे दिन मैदान में घास का ढेर रखा और उसे चारों ओर से बांस और रस्सी से घेरकर थोड़ा ऊंचा बाड़ा बना दिया। फिर वह गायों को ले आया। एक ही छलांग में घास तक पहुंचने वाली गाय उम्र में सबसे छोटी थी। कई बार उछलने की कोशिश के बाद पहुंचने वाली गाय उससे बड़ी और गिरते- पड़ते किसी तरह पहुंचने वाली बूढ़ी गाय थी। तेजी के उत्तर से राजा संतुष्ट हुए।
दूसरी पहेली सुलझाने के लिए तेजपाल राजा से कुछ समय लेकर घर आ गया। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि बिना कुछ रखे ख़ाली कमरे को भला कैसे भरा जा सकता है? सोचते-सोचते एक सुबह अचानक उसे इसका भी हल मिल गया। वह राजा के दरबार में पहुंचा । राजा उसे बंद ख़ाली कमरे में ले गए। तेजी ने कमरे की सारी बंद खिड़कियां और दरवाज़े खोल दिए। कमरा सूर्य के प्रकाश से पूरी तरह से भर गया।
राजा तेजी की बुद्धिमानी से चकित थे। उन्होंने उसे तीसरी शर्त पूरी करने के लिए कहा। कुछ दिनों की मोहलत लेकर वह फिर घर लौट आया। मां के साथ मिलकर तरकीबें सोचता रहा। हीरबाई अपने बेटे के लिए चिंतित हो रही थी, लेकिन तेजी ने हार नहीं मानी। उसने वेष बदल- बदलकर राजमहल के आसपास कहीं से भी महल में प्रवेश करने की संभावना ढूँढी और एक योजना बना डाली।
तेजी ने महल के पास घुड़साल में घास ले जाने वाले घसियारे से दोस्ती कर ली। घसियारा अच्छा इंसान था। तेजी ने एक दिन उसे विश्वास में लेकर सारी बातें बताईं और बोला, “मुझे घास के गट्ठर में छिपाकर महल के पास पहुंचा दो।” उसकी बात मानकर घसियारे ने उसे महल के परिसर तक पहुंचा दिया। वह घास के ढेर में छिपा रात होने की प्रतीक्षा करता रहा। अंधेरे में कोई आसानी से नहीं देख सके इसलिए उसने काले रंग की पोशाक पहन रखी थी।
आधी रात को अंधेरे में छिपते-छिपाते वह राजकुमारी के कमरे तक जा पहुंचा । राजकुमारी गहरी नींद में सो रही थी। पलंग के चारों पायों के नीचे सोने की ईटें अंधेरे में भी चमक रही थीं। उसने धीरे से राजकुमारी को जगाया। काली आकृति देखकर वह डर गई। तेजी ने कहा, “मैं यमदूत हूं, तुम्हें ले जाने आया हूं।” राजकुमारी डरते-डरते बोली, “मेरा विवाह होने वाला है, मैं जीना चाहती हूं। मुझे छोड़ दो।" तेजी ने कहा, “मैं तुम्हें छोड़ दूं तो यमराज दूसरे दूत को भेजेंगे, वह तुम्हें ले जाएगा। यदि तुम मरना नहीं चाहती तो सामने रखे संदूक़ में छिप जाओ, वह तुम्हें नहीं खोज सकेगा।” राजकुमारी के हामी भरते ही तेजपाल ने उसे संदूक में बैठाकर संदूक़ बंद कर दिया और सोने की ईंटें निकाल लीं।
संदूक़ में बैठी राजकुमारी की नींद अब पूरी तरह से खुल चुकी थी। वह बहुत डरी हुई थी, सोच रही थी, चिल्लाकर प्रहरियों को बुलाए या संदूक़ को ज़ोर-ज़ोर से पीटे। तभी मन में बिजली सा एक विचार कौंधा, 'कहीं यह वही नवयुवक तो नहीं जिसकी बुद्धिमानी की प्रशंसा पिताजी कर रहे थे! इसने दो शर्तें पूरी कर ली हैं और शायद तीसरी पूरी करने आया है। अपने को यमराज बताकर तो इसने मुझे नींद में डरा ही दिया था, यह तो मेरा होने वाला पति है।' राजकुमारी सांस रोके चुपचाप बैठी रही। सोचने लगी, 'असली बहादुरी, हिम्मत और बुद्धि की परख तो तब होगी जब यह ईंटें लेकर सुरक्षित महल से निकल जाएगा। देखूं, क्या करता है?'
अब तेजपाल दबे पांव राजा के कमरे में पहुंचा, सिरहाने राजा की राजसी पोशाक रखी थी। उसने उसे पहन लिया और बाहर निकला। अंधेरे में प्रहरियों ने उसे राजा समझ आंखें झुकाकर सलाम किया। राजकुमारी ने सुना, तेजी प्रहरी को आज्ञा दे रहा था, “कोचवान से गाड़ी निकलवाकर राजकुमारी के कमरे का संदुक रखवा दो, मुझे अभी प्रस्थान करना है।” हुक्म सुनते ही कोचवान गाड़ी ले आया और उसमें संदूक रख दिया गया। राजा का वेष धारण किए तेजपाल राजमहल से दूर निकल आया। अपने घर से कुछ दूरी पर उसने गाड़ी रुकवाई, संदूक़ उतरवाया और कोचवान को लौट जाने की आज्ञा दी। उसके चले जाने के बाद उसने राजकुमारी को संदूक़ से बाहर निकाला और बोला, “डरो मत, मैं तुम्हें तुम्हारे पिता के पास पहुंचा दूंगा। राजा की शर्त ही ऐसी थी कि उसे पूरी करने के लिए मुझे ये सब करना पड़ा। अब मुझे डर है, कहीं तुम्हें यहां लाने के अपराध में राजा मुझे दंडित न करें।" राजकुमारी तो सब कुछ समझ चुकी थी, हंसते हुए बोली, “पिताजी से तुम्हारे लिए क्षमा मांग लूँगी।"
तेजी राजकुमारी को लेकर घर आया। दोनों को देखकर हीरबाई ने ढेरों सवाल पूछ डाले, लेकिन तेज़ी ने कहा, “थोड़ा धैर्य रखो, सब बता दूंगा।” तभी अचानक उसे अपना सपना याद आ गया, वह हंसने लगा। लेकिन यह क्या! अगले ही पल उसकी आंखें भर आईं। राजकुमारी ने कारण पूछा, लेकिन तेजी क्या बताता!
उधर सुबह होते ही राजमहल में राजकुमारी को नहीं देख कोहराम मच गया, सभी परेशान थे। अचानक राजा की नज़र पलंग के पायों पर पड़ी और वे सब कुछ समझ गए। उन्होंने प्रहरियों को तेजी के घर भेजा। प्रहरी दोनों को लेकर राजा के सामने आए। तेजपाल ने हाथ जोड़कर क्षमा मांगते हुए सोने की चारों ईंटें राजा के सामने रख दीं। राजा ने उसी समय निश्चय कर लिया कि तेजी ही उसकी राजकुमारी के लिए योग्य वर है। निर्धनता कोई दुर्गुण नहीं। तेजी ने अपनी हिम्मत, बहादुरी, बुद्धि और शराफ़त से स्वयं को असाधारण सिद्ध कर दिया था।
राजा ने बड़ी धूमधाम से राजकुमारी का विवाह तेजपाल के साथ कर दिया।
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