बंद दरवाज़ा देखकर
लौटी है दुया
आंख खुली तो जाना ख्याव
और सच है क्या?
धीमे-धीमे दहक रहे
है,आँखों में
गुजरे प्यारवाले पल
राख हो कर भी सपने
गर्म है
बुझे आच की तरह
बर्फ में जमे अहसास
मानो धुव में ठहरे
दिन –रात की तरह
चुपी ओढे बैठी
चहरे पर सजाए मुस्कराहट
प्यार का मोती खोया
मन की गहराईयों में जाने
कहा ?