Monday, July 20, 2020

आज सड़कों पर लिखे हैं सैंकड़ों नारे न देख-दुष्यंत कुमार

आज सड़कों पर लिखे हैं सैंकड़ों नारे न देख


आज सड़कों पर लिखे हैं सैंकड़ों नारे न देख
घर अँधेरा देख तू आकाश के तारे न देख

एक दरिया है यहाँ पर दूर तक फैला हुआ
आज अपने बाजुओं को देख पतवारें न देख

अब यक़ीनन ठोस है धरती हक़ीक़त की तरह
यह हक़ीक़त देख, लेकिन ख़ौफ़ के मारे न देख

वे सहारे भी नहीं अब जंग लड़नी है तुझे
कट चुके जो हाथ ,उन हाथों में तलवारें न देख

दिल को बहला ले इजाज़त है मगर इतना न उड़
रोज़ सपने देख, लेकिन इस क़दर प्यारे न देख

ये धुँधलका है नज़र का,तू महज़ मायूस है
रोज़नों को देख,दीवारों में दीवारें न देख

राख, कितनी राख है चारों तरफ़ बिखरी हुई
राख में चिंगारियाँ ही देख, अँगारे न देख

नए साल की दस्तक

 याद करो, वह साल का समय, जब भविष्य दिखाई देता है एक खाली कागज़ की तरह, एक साफ़ कैलेंडर, एक नया मौका। गहरी सफेद बर्फ पर, तुम वादा करते हो नए ...