Sunday, October 11, 2020

तेरे लब पर कोई सवाल क्यों नहीं

सूरज की तपिश से तन तापने वाले।
घर का चूल्हा धीरे-धीरे बुझा रहा।
मन के भीतर क्यों कोई विचार नहीं आता ?
सर से छत,रोटी और पढाई सब उठ गए।
तेरे लब पर कोई सवाल क्यों नहीं आता ?
 
शहर की सड़क नाप डाला गांव तक।
जो साथ चले थे नहीं पहुँचे घर आज तक।
कुछ सड़क पर ढ़ेर हुए, कुछ पटरी पर बिखर गए।
क्या तू भूल गया, पैर में पड़े छाले।
तेरे लब पर कोई सवाल क्यों नहीं उठता ?
 
 
अनाज की कोठरी खाली आवाज़ कर रही थी।
तब भी तू मौन था, जाने कैसा नशे में रमा था।
खबरों के जंजाल में फॅसा रहा तू ब्रेकिंग न्यूज़ के मायाजाल में।
नीतियां बनाकर पूरा लोकतंत्र बदल दिया दिया
फिर भी
तेरे लब पर कोई सवाल क्यों नहीं उठा  ?
 
 
लोकतंत्र के सागर कोई उबाल क्यों नहीं उठता?
इस देश के युवाओं में विचार क्यों नहीं उठता?
नई क्रांति की जगह नहीं इस देश में।
चुप रहने की संस्कृति की सज़ा नहीं इस देश में ।
तेरे लब पर कोई सवाल क्यों नहीं उठता ?
 
जो वोट मांगते समय झुक कर खड़े थे
आज हमें ही झुकाने पर तुले है।
किसान,छात्र और बुद्धिजीवी विचार इस देश के
जो पूछते है सवाल और झेलते है वार को
तेरे लब पर कोई सवाल क्यों नहीं उठता ?
 
इस देश की विडंबना तो देखिए।
जनमानस के भीतर उबाल नहीं उठता
तेरे लब पर कोई सवाल क्यों नहीं उठता ?
 

 
रिंकी

 

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