Friday, April 9, 2021

ये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दोहरा हुआ होगा

 

मैं सजदे में नहीं था आप को धोखा हुआ होगा 
यहाँ तक आते-आते सूख जाती है कई नदियाँ 
मुझे मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा 
ग़ज़ब ये है की अपनी मौत की आहट नहीं सुनते 
वो सब के सब परेशाँ हैं वहाँ पर क्या हुआ होगा 
तुम्हारे शहर में ये शोर सुन-सुन कर तो लगता है 
कि इंसानों के जंगल में कोई हाँका हुआ होगा 
कई फ़ाक़े बिता कर मर गया जो उस के बारे में 
वो सब कहते हैं अब ऐसा नहीं ऐसा हुआ होगा 
यहाँ तो सिर्फ़ गूँगे और बहरे लोग बस्ते हैं 
ख़ुदा जाने यहाँ पर किस तरह जलसा हुआ होगा 
चलो अब यादगारों की अँधेरी कोठरी खोलें 
कम-अज़-कम एक वो चेहरा तो पहचाना हुआ होगा 

- दुष्यंत कुमार 

2 comments:

  1. दुष्यंत जी की यह दुर्लभ सी अद्भुत जीवंत रचना को पढने का अवसर देने हेतु आभारी हूँ आपका आदरणीया रिंकी राऊत जी। शुभकामनाएँ। ।।।

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