Saturday, May 18, 2024

हनुमान चालीसा का हिंदी अनुवाद

 नीम करौली बाबा (नीब करौरी बाबा) यह एक ऐसे संत थे जिन्होंने अपने जीवन काल में बिना भेदभाव के देश विदेश के अनगिनत लोगों का कल्याण किया। इनके शिष्यों में फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग, तथा एप्पल के संस्थापक स्टीव जॉब्स को प्रमुख रूप से माना जाता है। ये इनके ऐसे शिष्य थे जिन्हें इन्होंने जीवन की नई राह दिखाई। नीम करोली बाबा बीसवीं शताब्दी के महान सिद्ध संतों में से एक हैं। बाबा महाराज कहते थे कोई भी समस्या हो " हनुमान" से कहो। 

श्री नीम करोली बाबा के कृपा से , हनुमान चालीसा  का हिंदी अनुवाद साझा कर रही हूँ।

श्री हनुमान चालीसा 

श्रीगुरु चरण सरोज रज, निज मन मुकुरुसुधारि।

बरनऊं रघुवर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।

अर्थ- श्री गुरु महाराज के चरण कमलों की धूलि से अपने मन रूपी दर्पण को पवित्रकर के श्रीरघुवीर के निर्मल यश का वर्णन करता हूं, जो चारों फल धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को देने वाला है।

 

बुद्धि हीन तनु जानिके, सुमिरो पवन-कुमार।

बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार।

 

अर्थ- हे पवन कुमार! मैं आपको सुमिरन करता हूं। आप तो जानते ही हैं कि मेरा शरीर और बुद्धि निर्बल है। मुझे शारीरिक बल,सद् बुद्धि एवं ज्ञान दीजिए और मेरे दुखों दोषों का नाश कार दीजिए।

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जय हनुमान ज्ञान गुण सागर, जय कपीस तिहुं लोक उजागर॥1

अर्थ- श्रीहनुमान जी! आपकी जय हो। आपकाज्ञा और गुण अथाह है। हे कपीश्वर! आपकी जय हो! तीनों लोकों, स्वर्गलोक, भूलोक और पाताल लोक में आपकी कीर्ति है।

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राम दूत अतुलित बल धामा, अंजनी पुत्र पवनसुत नामा॥2

अर्थ- हे पवनसुत अंजनी नंदन! आपके समान दूसरा बलवान नहीं है।

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महावीर विक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी॥3

अर्थ- हे महावीर बजरंग बली! आप विशेष पराक्रम वाले है। आप खराब बुद्धि को दूर करते है, और अच्छी बुद्धि वालों के साथी,सहायक है।

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कंचन बरन बिराज सुबेसा, कानन कुण्डल कुंचित केसा॥4

अर्थ- आप सुनहले रंग, सुन्दर वस्त्रों, कानों में कुण्डल और घुंघराले बालों से सुशोभित हैं।

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हाथ बज्र ध्वजा विराजे, कांधे मूंज जनेऊ साजै॥5

अर्थ- आपके हाथ में बज्र और ध्वजा हैऔर कन्धेपर मूंज के जनेऊ की शोभाहै।

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शंकर सुवन केसरी नंदन, तेज प्रताप महाजग वंदन॥6

अर्थ- शंकर के अवतार! हे केसरीनंदन आपके पराक्रम और महान यश की संसार भर में वन्दना होती है।

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विद्यावान गुणी अति चातुर, राम काज करिबे को आतुर॥7

अर्थ- आप प्रकान्ड विद्यानिधान है, गुणवान और अत्यन्त कार्यकुशल होकर श्रीराम के काज करने केलिए आतुर रहते है।

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प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया॥8

अर्थ- आप श्रीराम चरित सुनने में आनन्द रस लेते है। श्रीराम, सीता और लखन आपके हृदय में बसे रहतेहै।

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सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा, बिकट रूप धरिलंक जरावा॥9

अर्थ- आपने अपना बहुत छोटारूप धारण कर के सीताजी को दिखलाया और भयंकर रूप कर के लंका को जलाया।


भीम
रूप धरि असुर संहारे, रामचन्द्र के काज संवारे॥10

अर्थ- आपने विकराल रूप धारण कर के राक्षसों को मारा और श्रीरामचन्द्रजी के  उद्देश्यों को सफल कराया।

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लाय सजीवन लखन जियाये, श्रीरघुवीर हरषिउर लाये॥11

अर्थ- आपने संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण जी को जिलाया जिससे श्रीरघुवीर ने हर्षित होकर आपको हृदय से लगा लिया।

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रघुपति कीन्हीं बहुत बड़ाई, तुम मम प्रिय भरत सम भाई॥12

अर्थ- श्री रामचन्द्र ने आपकी बहुत प्रशंसाकी और कहा कि तुम मेरे भरत जैसे प्यारे भाई हो।

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सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥13

अर्थ- श्रीराम ने आपको यह कहकर हृदय से लगा लिया की तुम्हारा यश हजार मुख से सराहनीय है।

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सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा, नारद, सारद सहित अहीसा॥14

अर्थ- श्रीसनक, श्रीसनातन, श्रीसनन्दन, श्रीसनत्कुमार आदि मुनि ब्रह्मा आदि देवता नारद जी, सरस्वतीजी, शेषनाग जीसब आपका गुण गान करतेहै।

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जम कुबेर दिगपाल जहां ते, कबि कोबिद कहि सके कहां ते॥15

अर्थ- यमराज, कुबेर आदि सब दिशाओं के रक्षक, कवि विद्वान, पंडित या कोई भी आपके यश का पूर्णतःवर्णन नहीं कर सकते।

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तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा, राम मिलाय राज-पद दीन्हा॥16

अर्थ- आपने सुग्रीवजी को श्रीराम से मिलाकर उपकार किया, जिसके कारण वे राजा बने।

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तुम्हरो मंत्र विभीषण माना, लंकेस्वर भए सब जग जाना॥17

अर्थ- आपके उपदेश का विभिषणजी ने पालन किया जिससे वे लंका के राजा बने, इस को सब संसार जानता है।

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जुग सहस्त्र जोजन पर भानू, लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥18

अर्थ- जो सूर्य इतने योजन दूरी पर है कि उस पर पहुंचने के लिए हजार युग लगे। दो हजार योजन की दूरी पर स्थित सूर्य को आपने एक मीठा फल समझकर निगल लिया।

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प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहि, जलधि लांघि गये अचरज नाहीं॥19

अर्थ- आपने श्रीरामचन्द्रजी की अंगूठी मुंह में रखकर समुद्र को लांघ लिया, इसमें कोई आश्चर्य नहीं है।

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दुर्गम काज जगत के जेते, सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥20

अर्थ- संसार में जितने भी कठिन से कठिन काम हो, वो आपकी कृपा से सहज हो जातेहै।

 

राम दुआरे तुम रखवारे, होत आज्ञा बिनु पैसारे॥21

अर्थ- श्रीरामचन्द्रजी के द्वार के आप रखवाले है, जिसमें आपकी आज्ञा बिना किसी को प्रवेश नहीं मिलता ,अर्थात् आपकी प्रसन्नता के बिना राम कृपा दुर्लभ है।

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सब सुख लहै तुम्हारी सरना, तुम रक्षक काहू को डरना॥22

अर्थ- जो भी आपकी शरण में आते है, उस सभी आनन्द प्राप्त होता है, और जब आप रक्षक है, तो फिर किसी का डर नहीं रहता।

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आपन तेज सम्हारो आपै, तीनों लोक हांक तें कांपै॥23

अर्थ- आपके सिवाय आपके वेग को कोई नहीं रोक सकता, आपकी गर्जना से तीनों लोक कांप जातेहै।

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भूत पिशाच निकट नहिं आवै, महावीर जब नाम सुनावै॥24

अर्थ- जहां महावीर हनुमान जी का नाम सुनाया जाता है, वहां भूत, पिशाच पास भी नहीं फटक सकते।

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नासै रोग हरै सब पीरा, जपत निरंतर हनुमत बीरा॥25

अर्थ- वीर हनुमान जी! आपका निरंतर जप करने से सब रोग चले जाते है और सब पीड़ा मिट जाती है।

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संकट तें हनुमान छुड़ावै, मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥26

अर्थ- हे हनुमान जी! विचार करने में, कर्म करने में और बोलने में, जिनका ध्यान आपमें रहता है, उनको सब संकटों से आप छुड़ाते है।

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सब पर राम तपस्वी राजा, तिन के काज सकल तुम साजा॥27

अर्थ- तपस्वी राजा श्रीरामचन्द्रजी सबसे श्रेष्ठ है, उनके सब कार्यों को आपने सहजता से कर दिया।

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और मनोरथ जो कोइ लावै, सोई अमित जीवन फल पावै॥28

अर्थ- जिस पर आपकी कृपा हो, वह कोई भी अभिलाषा करें तो उसेऐसा फल मिलता है जिसकी जीवन में कोई सीमा नहीं होती।

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चारों जुग परताप तुम्हारा, है परसिद्ध जगत उजियारा॥29

अर्थ- चारो युगों सतयुग, त्रेता, द्वापर तथा कलियुग में आपका यश फैला हुआ है, जगत में आपकी कीर्ति सर्वत्र प्रकाशमान है।

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साधु सन्त के तुम रखवारे, असुर निकंदन राम दुलारे॥30

 

अर्थ- हे श्रीराम के दुलारे! आप सज्जनों की रक्षा करते है और दुष्टों का नाश करते है।

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अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता, अस बर दीन जानकी माता॥31

अर्थ- आपको माता श्रीजानकी से ऐसा वरदान मिला हुआ है, जिससे आप किसी को भी आठों सिद्धियांऔर नौ निधियां दे सकते

है।

1.) अणिमा- जिससे साधक किसी को दिखाई नहीं पड़ता और कठिन से कठिन पदार्थ में प्रवेश कर जाता है।

2.) महिमा- जिसमें योगी अपने को बहुत बड़ा बना देता है।

3.) गरिमा- जिससे साधक अपने को चाहे जितना भारी बना लेता है।

4.) लघिमा- जिससे जितना चाहे उतना हल्का बन जाताहै।

5.) प्राप्ति- जिससे इच्छित पदार्थ की प्राप्ति होती है।

6.) प्राकाम्य- जिससे इच्छा करने पर वह पृथ्वी में समा सकताहै, आकाश में उड़ सकता है।

7.) ईशित्व- जिससे सब पर शासन का सामर्थ्य हो जाता है।

8.) वशित्व- जिससे दूसरों को वश में किया जाता है।

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राम रसायन तुम्हरे पासा, सदा रहो रघुपति के दासा॥32

अर्थ- आप निरंतर श्रीरघुनाथ जी की शरण में रहते है, जिससे आपके पास बुढ़ापा और असाध्य  रोगों के नाश के लिए राम नाम औषधि है।

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तुम्हरे भजन राम को पावै, जनम जनम के दुख बिसरावै॥33

अर्थ- आपका भजन करने से श्रीराम जी प्राप्त होते है और जन्म जन्मांतर के दुख दूर होते है।

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अन्त काल रघुबर पुर जाई, जहां जन्म हरि-भक्त कहाई 34

अर्थ- अंत समय श्रीरघुनाथ जी के धाम को जाते हैऔर यदि फिर भी जन्म लेंगे तो भक्ति करेंगे और श्रीराम भक्त कहलाएंगे।

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और देवता चित धरई, हनुमत सेई सर्व सुख करई॥35

अर्थ- हे हनुमान जी! आपकी सेवा करने से सब प्रकार के सुख मिलते है, फिर अन्य किसी देवता की आवश्यकता नहीं रहती।

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संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥36

अर्थ- हे वीर हनुमान जी! जो आपका सुमिरन करता रहता है, उसके सब संकट कट जाते है और सब पीड़ामिट जाती है।

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जय जय जय हनुमान गोसाईं, कृपा करहु गुरुदेव की नाई॥37

अर्थ- हे स्वामी हनुमान जी! आपकी जय हो, जय हो, जय हो! आप मुझ पर कृपालु श्रीगुरुजी के समान कृपा कीजिए।

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जो सत बार पाठ कर कोई, छूटहि बंदि महासुख होई॥38

 

अर्थ- जो कोई इस हनुमान चालीसा का सौ बार पाठ करेगा वह सब बंधनों से छूट जाएगा और उसे परमानन्द मिलेगा।

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जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा, होय सिद्धि साखी गौरीसा॥39

अर्थ- भगवान शंकर ने यह हनुमान चालीसा लिखवाया है , इसलिए वे साक्षी है, कि जो इसे पढ़ेगा उसे निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी।

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तुलसीदास सदा हरि चेरा, कीजै नाथ हृदय मंह डेरा॥40

अर्थ- हे नाथ हनुमान जी! तुलसीदास सदा ही श्रीराम का दास है। इसलिए आप उसके हृदय में निवास कीजिए।

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पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरतिरूप। राम लखन सीतासहित, हृदय बसहु सूर भूप॥

अर्थ- हे संकट मोचन पवन कुमार! आप आनंद मंगलों के स्वरूप हैं। हे देवराज! आप श्रीराम, सीताजी और लक्ष्मण सहित मेरे हृदय में निवास कीजिए।

 

 





Source- https://hindi.webdunia.com

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