Tuesday, June 18, 2024

मुझसे पहली-सी मुहब्बत मेरे महबूब न मांग -बिलाशक फ़ैज़

 मुझसे पहली-सी मुहब्बत मेरे महबूब न मांग 

मैंने समझा था कि तू है तो दरख्शां है हयात

मैंने समझा था कि तू है तो जिंदग़ी है रौशन 

तेरा ग़म है तो ग़मे-दहर का झगड़ा क्या है 

तेरा ग़म है तो इस दुनिया के दुख-संताप का झगड़ा, उसके आगे क्या है 

तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात 

तेरी सूरत के चलते ही इस दुनिया में बहार देर तक बनी रहती है 

तेरी आंखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है 

तू जो मिल जाए तो तकदीर नगूं हो जाये

तू जो मिल जाए तो तक़दीर मेरे आगे झुक जाए 

 यूं न था, मैंने फ़क़त चाहा था यूं हो जाये 

मैंने नहीं चाहा था कि इस तरह हो जाए 

और भी दुख हैं ज़माने में मुहब्बत के सिवा 

 

राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा 

मिलन की राहत से बड़े सुख और भी हैं 

अनगिनत सदियों के तारीक बहीमाना तिलिस्म 

अनगिनत सदियों के अंधेरे काले तिलिस्म रेशम

 

रेशमो-अतलसो-किमख़्वाब में बुनवाए हुए 

साटन और चमकदार ज़री में बुनवाए हुए 

 

जा-ब-जा बिकते हुए कूचा-ओ-बाज़ार में 

बाज़ार की हर गली में जगह-जगह बिकते 

जिस्म ख़ाक में लिथड़े हुए, ख़ून में नहलाये हुए 

जिस्म मिट्टी में लिथड़े हुए, खून में नहलाए हुए 

जिस्म निकले हुए अमराज़ के तन्नूरों से 

जिस्म निकले हुए बीमारों की भट्टी से 

पीप बहती हुई गलते हुए नासूरों से 

उनके नासूरों से बहती हुई मवाद 

लौट जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजे 

 

अब भी दिलकश है तेरा हुस्न मगर क्या कीजे 

और भी दुख हैं ज़माने में मुहब्बत के सिवा 

राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा

राहतें और भी हैं मिलन की राहत के सिवा 

 मुझसे पहली-सी मुहब्बत मेरे महबूब न मांग

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