Sunday, May 11, 2025

बाबा नीम करौली महाराज-प्रेम, भक्ति और करुणा के प्रतीक

 बाबा नीम करौली महाराज भारत के एक महान संत थे, जिन्हें उनके भक्त “महाराज जी” कहकर पुकारते हैं। उनका वास्तविक नाम लक्ष्मी नारायण शर्मा था। वे उत्तर प्रदेश के अकबरपुर गाँव (फिरोज़ाबाद ज़िला) में 1900 के आसपास जन्मे थे। वे भगवान हनुमान के परम भक्त थे और जीवनभर उन्होंने सेवा, प्रेम, भक्ति और करुणा का संदेश दिया।

रहस्यमयी जीवन

बाबा नीम करौली महाराज का जीवन रहस्यमयी था। वे प्रारंभ से ही अत्यंत विलक्षण और आध्यात्मिक प्रवृत्ति के थे। उन्होंने बहुत कम आयु में ही घर छोड़ दिया और साधु का जीवन अपना लिया। वे पूरे भारत में घूमते रहे और साधना करते रहे।

उनका नाम "नीम करौली बाबा" तब पड़ा जब वे उत्तर प्रदेश के नीब करौली गाँव (कुमाऊँ क्षेत्र, नैनीताल के पास) में कुछ समय के लिए रुके। यहीं से उनका आध्यात्मिक प्रभाव फैलने लगा और लोग उन्हें संत मानकर पूजने लगे।

बाबा और हनुमान जी की भक्ति

बाबा नीम करौली को हनुमान जी का अवतार भी माना जाता है। उन्होंने कई स्थानों पर हनुमान मंदिर की स्थापना की। उनका मानना था कि हनुमान जी की भक्ति से ही भगवान राम की कृपा प्राप्त होती है। वे कहते थे:

"हनुमान जी की सेवा करो, सब कष्ट दूर होंगे। सेवा, भक्ति और समर्पण – यही सच्चा धर्म है।"

बाबा के अनेक भक्त कहते हैं कि उन्होंने उनके जीवन में चमत्कार देखे – असाध्य रोग ठीक हो जाना, असंभव कार्य हो जाना, मानसिक शांति प्राप्त होना – ये सब बाबा के आशीर्वाद से संभव हुआ।

शिक्षाएं

बाबा नीम करौली महाराज की शिक्षाएं सरल, सीधी और अत्यंत प्रभावशाली थीं। वे कहते थे:

  • "प्रेम ही भगवान है। सभी से प्रेम करो, यही भक्ति है।"

  • "सेवा करो, बदले में कुछ मत चाहो।"

  • "ईश्वर सबमें है। किसी से नफरत मत करो।"

  • "मन को शांत रखो, हर परिस्थिति में ईश्वर का स्मरण करो।"

बाबा का जीवन अहंकारहीनता, त्याग और आत्मज्ञान का प्रतीक था। वे कभी किसी पर क्रोध नहीं करते थे, और सदा मुस्कराते रहते थे।

विदेशी भक्त

बाबा नीम करौली का प्रभाव न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी फैला। उनके सबसे प्रसिद्ध विदेशी भक्तों में राम दास (Dr. Richard Alpert), कृष्ण दास (प्रसिद्ध कीर्तन गायक), लैरी ब्रिलियंट और स्टीव जॉब्स जैसे लोग शामिल थे।

राम दास ने बाबा के साथ बिताए अनुभव को अपनी किताब “Be Here Now” में वर्णित किया, जिसने पश्चिमी दुनिया में बाबा की भक्ति और शिक्षाओं को लोकप्रिय बना दिया।

स्टीव जॉब्स जब जीवन में एक कठिन समय से गुजर रहे थे, तब वे बाबा नीम करौली महाराज के दर्शन करने भारत आए, लेकिन दुर्भाग्यवश बाबा का शरीर त्याग हो चुका था। फिर भी वे उनके आश्रम गए और वहाँ की शांति से प्रभावित हुए।

आश्रम और विरासत

बाबा नीम करौली महाराज ने भारत भर में कई हनुमान मंदिर और आश्रम स्थापित किए। उनके प्रमुख आश्रम उत्तराखंड के कैंची धाम (नैनीताल), वृंदावन, लखनऊ, हनुमानगढ़ी और अमेरिका के न्यू मैक्सिको व कैलिफोर्निया में हैं।

कैंची धाम आश्रम हर साल हजारों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। हर वर्ष 15 जून को वहाँ बड़ा मेला और भंडारा आयोजित होता है, जिसमें देश-विदेश से लोग भाग लेते हैं।

समाधि

बाबा नीम करौली महाराज ने 11 सितंबर 1973 को वृंदावन में ब्रह्मलीन होकर अपना नश्वर शरीर त्याग दिया। उनके शरीर त्यागने के बाद भी उनके आश्रमों में आज भी भक्त उनकी उपस्थिति अनुभव करते हैं। उनके नाम पर भजन, कीर्तन और सेवा कार्य लगातार होते रहते हैं।

निष्कर्ष

बाबा नीम करौली महाराज कोई साधारण संत नहीं थे। वे प्रेम, करुणा और भक्ति की मूर्ति थे। उन्होंने कभी अपने को ईश्वर नहीं कहा, लेकिन उनके भक्त उन्हें भगवान का साक्षात रूप मानते हैं।

उनका संदेश आज के युग में और भी प्रासंगिक है – "प्रेम करो, सेवा करो, भक्ति में लीन रहो और सबमें भगवान को देखो।"

उनकी अमर वाणी:
"सब कुछ भगवान का है। चिंता मत करो, प्रेम से जियो।"

देवराहा बाबा: रहस्यमय योगी की कथा, उपदेश और आराध्य

 देवराहा बाबा: रहस्यमय योगी की कथा, उपदेश और आराध्य

भारत की आध्यात्मिक भूमि ने अनेक संतों और योगियों को जन्म दिया है, परंतु देवराहा बाबा का स्थान उनमें अद्वितीय है। उन्हें लोग “अजर-अमर बाबा” कहते थे क्योंकि उनकी उम्र को लेकर कई किंवदंतियाँ प्रचलित थीं—कुछ मानते हैं वे 250 वर्षों से भी अधिक जीवित रहे। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के देवराहा गांव में हुआ और वे यमुना नदी के तट पर एक लकड़ी के चबूतरे पर तपस्या करते थे।

बाबा ने अपना पूरा जीवन संयम, ब्रह्मचर्य और ध्यान में बिताया। वे किसी आश्रम में नहीं, बल्कि खुले आकाश के नीचे रहते थे। उनका शरीर सदा नंगा रहता था, जिसे वे “प्रकृति के निकट” रहने का साधन मानते थे। उन्होंने कभी किसी को अपने खाने, सोने या व्यक्तिगत जीवन की झलक नहीं दी, जिससे उनका व्यक्तित्व और भी रहस्यमय हो गया।

उनकी आराधना – श्रीराम और श्रीकृष्ण

देवराहा बाबा के आराध्य भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण थे। वे दोनों को विष्णु के अवतार मानते हुए उनकी आराधना करते थे। वे कहते थे:
"राम में मर्यादा है और कृष्ण में लीला – दोनों मिलकर जीवन को पूर्ण बनाते हैं।"
उन्होंने वैष्णव परंपरा का पालन किया और सच्चे भक्ति मार्ग को आत्मसात किया।

उनकी भक्ति बाहरी आडंबर से रहित थी। वे घंटी-शंख या मूर्ति पूजा के बजाय ध्यान और जप को अधिक महत्व देते थे। उनका मानना था कि भगवान हृदय में वास करते हैं, और वहाँ पहुँचने का मार्ग आत्मसाक्षात्कार है।

शिक्षाएं – सादा जीवन, सेवा और शुद्ध आचरण

देवराहा बाबा की शिक्षाएं सरल लेकिन गहरी थीं। वे कहते थे:
"जिसने सेवा सीखी, उसने ईश्वर को पा लिया।"
उनका सबसे बड़ा संदेश था:
"ईश्वर को पाने के लिए पहले मन को जीतो। काम, क्रोध, लोभ, मोह को त्यागो – बस वही सच्चा साधक है।"

वे धर्म की एकता में विश्वास रखते थे। उनके पास हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई – सभी धर्मों के लोग आते थे और बाबा उन्हें एक ही बात कहते:
"धर्म रास्ता है, मंज़िल नहीं। मंज़िल है आत्मा का परमात्मा से मिलन।"

उनका आशीर्वाद और चमत्कार

कहा जाता है कि देवराहा बाबा के आशीर्वाद से कई असंभव कार्य संभव हुए। उन्होंने कभी चमत्कार का दिखावा नहीं किया, लेकिन उनके मौन, उनकी दृष्टि और उनकी उपस्थिति ही लोगों के दुख दूर कर देती थी।

देश के कई बड़े नेता, जैसे इंदिरा गांधी और राजीव गांधी भी उनके भक्त रहे। लेकिन बाबा ने कभी किसी को विशेष स्थान नहीं दिया – उनके लिए सब समान थे।

निष्कर्ष

देवराहा बाबा ने 19 जून 1990 को ब्रह्मलीन होकर यह लोक त्यागा। उनका जीवन एक जीता-जागता उदाहरण है कि साधना, सेवा और समर्पण से मनुष्य ईश्वर से एकाकार हो सकता है।

उनकी वाणी:
"ईश्वर को बाहर मत ढूंढो, अपने भीतर झाँको – वही तुम्हारा राम है, वही कृष्ण है।"

बाबा नीम करोली की कहानी – उनके चमत्कार

 बाबा नीम करोली की कहानी 1. बचपन और संन्यास बाबा का जन्म लक्ष्मी नारायण शर्मा के नाम से लगभग 1900 में उत्तर प्रदेश के अकबरपुर में एक ब्राह्म...