जैसे सोच की कंघी में से
एक दंदा टूट गयाजैसे समझ के कुर्ते का
एक चीथड़ा उड़ गया
जैसे आस्था की आँखों में
एक तिनका चुभ गया
नींद ने जैसे अपने हाथों में
सपने का जलता कोयला पकड़ लिया
नया साल कुझ ऐसे आया...
जैसे दिल के फ़िक़रे से
एक अक्षर बुझ गया
जैसे विश्वास के काग़ज़ पर
सियाही गिर गयी
जैसे समय के होंटो से
एक गहरी साँस निकल गयी
और आदमज़ात की आँखों में
जैसे एक आँसू भर आया
नया साल कुछ ऐसे आया...
जैसे इश्क़ की ज़बान पर
एक छाला उठ आया
सभ्यता की बाँहों में से
एक चूड़ी टूट गयी
इतिहास की अंगूठी में से
एक नीलम गिर गया
और जैसे धरती ने आसमान का
एक बड़ा उदास-सा ख़त पढ़ा
नया साल कुछ ऐसे आया...
सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteThanks a lot, Sushil Ji
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 29 दिसम्बर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (29-12-20) को "नया साल मंगलमय होवे" (चर्चा अंक 3930) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
कामिनी सिन्हा
Kamini Ji, Dhanywad
Deleteऔर जैसे धरती ने आसमान का
ReplyDeleteएक बड़ा उदास-सा ख़त पढ़ा
नया साल कुछ ऐसे आया...
–सच्चाई
Thanks a lot
Deleteबहुत सुन्दर । नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं ।
ReplyDeleteThanks a lot
Deleteबहुत बढ़िया। आपको नववर्ष 2021 की ढेरों शुभकामनाएं और बधाई।
ReplyDeleteThanks a lot
Deleteअमृता प्रीतम जी की बेहतरीन रचना को साँझा करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद ।
ReplyDeleteAmrita Pritam is legend
Deleteबहुत सुन्दर सृजन....
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