उदासी के दरख़्तों पर हवा पत्तों पे ठहरी थी
मगर इक रोशनी बच्चों की मुस्कानों पे ठहरी थीहमें मझधार में फिर से बहा कर ले गया दरिया
हमारे घर की पुख़्ता नींव सैलाबों पे ठहरी थी
ज़रा से ज़लज़ले से टिक नहीं पाये ज़मीं पर हम
हमारी शख़्सियत कमज़़ोर दीवारों पे ठहरी थी
यहाँ ख़ामोशियों ने शोर को बहरा बना डाला
हमारी ज़िन्दगी किन तल्ख़ आवाज़ों पे ठहरी थी
छलक कर चंद बूँदें आ गिरीं ख़्वाबों के दरिया से
कोई तस्वीर भीगी-सी मेरी पलकों पे ठहरी थी
Unknown