Saturday, September 20, 2014

मेरा नाम

बेटी शब्द मेरी पहली पहचान
बहन, कहलाना दूसरी पहचान बनी
पत्नी,बहु,माँ.भाभी अदि कई
नामों से मैं पहचानी जाती हूँ

मेरे अपने नाम का कोई अर्थ
मुझे इस समाज में नज़र नहीं आता
दुनिया मुझे रिश्तो के चश्मा से ही
देखा करती है

 आखरी बार कब सुना था अपना नाम
क्या कभी किसी ने मुझे मेरे नाम से पहचाना
पुकारा था,याद नहीं आता

मैं भी चाहती हूँ
मुझे भी दुनिया पहचाने
मेरे नाम से मुझे जाने
मेरा नाम बने मेरी पहचान

Rinki

3 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 31 जुलाई 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. कभी न कभी प्रत्येक रचनाकार ऐसा सोचता है | यही सृजन की अकुलाहट है | बहुत सुंदर |

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  3. ऐसी चाहत सबकी होती है। भावपूर्ण उद्गार!!

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