कहत कबीर प्रेम जैसे
लम्बा पेड़ खजूर
चढ़े तो प्रेम रस मिले
गिरे तो चकनाचूर
प्रेम जैसे अग्नि
परीक्षा
जो पार न किया तो खाक
पार कर जाने पर भी वनवास
प्रेम धागा कच्चा सा
पिरोए मोती तो टूट जाए
बधे कलाई पर तो
अटूट विश्वास सा बंध जाए
बसे पिया नयन में ऐसे
उसमे कोई कहा समाए
प्रेम जैसे गीत सा,
मन ही मन गुनगुनाऊ