बादल के परछाई के पीछे चल दिए
नंगे पैर,
टूटी,बिखरी उम्मीद लिए
चल पड़ी बेखबर सी
झूठे सपनो को लिए
बादल जिसका पीछा किया
खेलता आंख मिचोली
जा छुपता धूप के आट में
कभी
तो कभी असमान में हो
जाता गुम
हम बस पीछे रहे बादल के
मन में लिए एक धुन
धुंध सी जो आँखों पर छाई
है
हटती ही नहीं
बादल जिसकी परछाई है,
बरसती ही नहीं
थक गया मन
बादल के पीछे-पीछे
बस बरसे वो बदल बन अमृत
मुझपे
आंख मूंद होजाऊ
उस बादल की परछाई में
गुम
रिंकी
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