Sunday, September 23, 2018

ज़िन्दगी और नजरिया


बात–बात पर परेशान होना आज का फैशन है I हम सब अपनी-अपनी परेशानियों से परेशान है I  एक अजीब कहावत है, “ जिंदा है तो परेशान है”  इसका मतलब समझे तो परेशान या टेंशन में रहना ज़िन्दगी के लिए बहुत जरूरी चीज़ है, इसी लत की मैं भी मारी हूँ हर बात पर  परेशान होना मिज़ाज बन गया है I  उस दिन हरे-हरे खेतो,तालाब और नहर देखकर  मन के भीतर तक शकुन मिल रहा था, इसलिए भी की गाँव जिससे मेरा बचपन जूडी था फिर से मेरे नजर के सामने था I बात सिर्फ आँखों तक ही नहीं रह गई थी, मिट्टी,पानी.फसल, जानवर और इन्सान की खुशबू सब अपने से लग रहे थेI

इलेक्ट्रिक रिक्शा  यानी हवा-हवाई अपने ही रफ्तार से चली जा रही हैI मैं अपने आँखों में, फेफड़ों में और दिमाग में सब कुछ कैद करने की कोशिश में थी I  दूर से रेल की आवाज़ सुनाई देती है, जल्दी चलो भाई ये ट्रेन नहीं छूटनी चाहिए ये सुनते ही मेरी परेशानी अचानक मुझ पर हावी हो गई  ड्राइवर ने कहा- सर नहीं छुटेगी में हूँ न, ट्रेन नजदीक आती दिखाई दे रही थी I मैं बाहर से शांत पर अन्दर से परेशान सब सुन और देख रही थी

ड्राइवर ने  कहा - ये भाभी तुम क्यूँ बाज़ार आई, लड़का कहा है?  अब कौन सा पैदल चल कर बाज़ार जाना है, गाड़ी पकड़ो और चले आओ- महिला ने  जवाब में कहा I

 ट्रेन कुछ धीमे रफ्तार से आगे बढ़ रही है पर मैं अभी भी स्टेशन से कुछ दूर थी , परेशानी अब घबराहट में बदलती जा रही थी I रोक न जरा महिला ने कहा, बहुत आगे आ गए हम  और ड्राइवर ये कहते हुए हवा –हवाई को पीछे करने लगा I अब मुझे गुस्सा आने लगा, यहाँ ट्रेन छुटने वाली है और ये भाभी से रिश्तेदारी निभा रहा है लगभग १०० मीटर पीछे जा कर गाड़ी रुकी I महिला ने कहा दीदी जरा पैर हटाई, मुझे लगा कोई समान होगा मेरे पैर के पीछे मैंने पैर एक तरफ किया,

वो सीट से उतर कर पैर रखने वाले जगह पर बैठ गई, नीचे उतारते ही अपने हाथ के सहारे अपने शरीर को आगे की तरफ घसीटने लगी, उसके लिए ये चलना था I अपने कमर से नीचे बेजान हिस्से से चले हुए वो अपनी मंजिल पर पहुँच गई

 ट्रेन की आवाज़ और सामने का दृश्य मेरे अन्दर बहुत देर तक ठहरा रहा I



रिंकी


Saturday, September 15, 2018

अपनी भाषा

हिन्दी भाषा को
बोलने में लज्जाते
शर्म करते

विदेशी बोली
की गुलामी बजाते
शरमाते वो

तिरस्कार
मिले उसे जो बोले
हिंदी भाषा को

गुलामी  शौक
अंग्रेजी बतियाते
नाज़ करते

सम्मान करो
देश महान करो
भाषा अपनी

हिंदी महान
हिन्दुतान की शान
हिंदी महान



रिंकी


Sunday, September 2, 2018

‘आज्ञाकारिता’

आज्ञाकारिता जड़ों को काटना और फिर पेड़ के बढ़ने की उम्मीद करने जैसा है.
जापान में चार- पांच सौ साल पुराने पेड़ होते हैं मगर केवल छह इंच उंचे. इस प्रकार के पेड़ तैय्यार करना भी एक तरह की कला मानी गई है. पर मेरे लिए सीधे तौर पर यह एक हत्या है. माली के कई पीढ़ियां उन पेड़ो को इस अवस्था में रखती आ रही है. अब भले ही यह पेड़ पांच सौ साल पुराना है मगर आप उनकी टहनियों को देख सकते हैं भले ही वह छोटा है. यह एक प्रकार का छोटा बूढ़ा आदमी है जिसके उपर पत्तियां लगी है, जिसकी टहनियां है और शाखाएं है. इसमें जो प्रक्रिया इस्तेमाल हुई है उसके अनुसार वो बिना पेंदी के मिट्टी के बर्तन में पेड़ लगाते हैं और उसके बाद वो उसके जड़ को लगातार काटते रहते हैं. जब भी जड़ बाहर निकलता है और जमीन की ओर बढ़ने की कोशिश करता है, वे उसे काट देते हैं. वो पेड़ों के साथ कुछ भी नहीं करेंगे, बस उनकी ज़ड़ों को काटते रहेंगे.
अब पांच सौ सालों तक एक परिवार इसकी जड़ों को काटता रहेगा. यह पेड़ हजारों साल तक जिंदा रह सकता है पर इसपर कभी फूल या फल नहीं लगेंगे. यही सब पूरी दुनिया में सभी लोगों के साथ हो रहा है. हर चीज के लिए उनकी जड़ शुरूआत में ही काट दी जाती है. जैसे हर बच्चे को आज्ञाकारी होना चाहिए. यह तय कर आप उसकी जड़ को काट रहे हैं. आप उसे सोचने का एक मौका नहीं दे रहे हैं कि वह आपको हां कहे या ना कहे. आप उसे सोचने की इजाजत नहीं दे रहे. आप उसे खुद के बारे में फैसला लेने की इजाजत नहीं दे रहे.
आप उसे जिम्मेदारी नहीं दे रहे बल्कि खुबसूरत शब्द ‘आज्ञाकारिता’ का प्रयोग कर उससे जिम्मेदारी छीन रहे हैं. आप एक सरल रणनीति के तहत यह जोर डालकर कि वह बच्चा है और कुछ नहीं जानता, उसकी स्वतंत्रता, उसका व्यक्तित्व उससे दूर कर रहे हैं. माता-पिता यह तय कर लेते हैं कि बच्चे को पूरी तरह आज्ञाकारी बनना है. उनके अनुसार आज्ञाकारी बच्चा ही सम्मान पाता है. लेकिन इतना निहित है कि आप उसे पूरी तरह से नष्ट कर रहे हैं. उसकी उम्र बढ़ती जायेगी मगर उसका विकास नहीं होगा. वह बड़ा होगा पर उसमें फूल नहीं लगेंगे, फल नहीं होगा. वह जीवित रहेगा लेकिन उसके जीवन में थिरकना नहीं होगा, गीत नहीं होगा, हर्सौल्लास नहीं होगा. आपने वो सभी आधारभूत संभावनाएं नष्ट कर दी हैं जो एक आदमी को व्यक्तिगत, सच्चा, ईमानदार बनाता है और उसे एक निश्चित पूर्णता देता है. और यही सब वह है जो एक आज्ञाकारी व्यक्ति करता है. यह अपंगता है कि आप ना नहीं कह सकते और आपको सिर्फ हां कहना है. पर एक आदमी जब ना कहने में असमर्थ हो जाता है तो उसका हां कहना अर्थहीन हो जाता है. वह एक मशीन की तरह काम कर रहा है. आपने एक इंसान को रोबोट में बदल दिया है.
इस दुनिया में आजाद रहना, खुद के बारे में सोचना, अपनी चेतना से निर्णय लेना, अपने विवेक से काम करना इन सब को लगभग असंभव बना दिया गया है. चर्च, मंदिर, मस्जिद, स्कूल, विश्वविद्यालय, हर जगह आपसे आज्ञाकारी होने की उम्मीद की जाती है. अब तक अपनाए नियम नें लोगों को इस तरह से बर्बाद किया है कि वह पूरा जीवन हर तरह के अधिकार की गुलामी कर दासों जैसा रहता है. उसके जड़ों को काट दिया गया है ताकि उसके पास लड़ने के लिए प्रर्याप्त ऊर्जा ना हो और वह आजादी, व्यक्तित्व या किसी भी प्रकार का अधिकार पा ना सके. तब उसके पास जीवन का एक छोटा हिस्सा होगा जो कि उसे तब तक जीवित रखेगा जब तक मौत उसे इस दासता से मुक्त नहीं कर देती जिसे उसने जीवन समझ कर अपनाया था. बच्चे माता- पिता के गुलाम होते हैं, पत्नियां गुलाम होती हैं, पति गुलाम होते हैं, बूढ़े लोग जवान लोगों के गुलाम होते हैं क्योंकि उनके पास सारी ताकतें होती है.
अगर आप अपने चारो ओर देखें तो पता चलता है की हर व्यक्ति दासता में जीवन व्यतीत कर रहा है. अपने जख्मों को सुदंर शब्दों में छिपा रहा है. जड़े तभी मजबूत होंगी जब हम जो हम करते आ रहें हैं, अगर उसे करना बंद कर दें. अब तक जो करते आ रहे हैं, केवल उसका उल्टा करें. हर बच्चे को सोचने का मौका दिया जाना चाहिए. हमें उसे उसकी बौद्धिकता को तेज करने में मदद करनी चाहिए. हमें उसे परिस्थिति और अवसर देने में मदद करनी चाहिए जहां वह खुद के बारे में स्वंय निर्णय ले सके. हमें इसे एक बिंदु बनाना चाहिए कि किसी को भी आज्ञाकारी बनने के लिए जोर ना डाला जाए और हर किसी को आजादी की बागवानी और खुबसूरती सिखाई जाए. तभी जड़ मजबूत होगी.
ओशो

ज़िद करो और बढ़ो

ज़िद करो अपने आप से
इस जहान से
ज़िद करो बदलाव की
ज़िद करो उठान की

ज़िद करो आगे बढ़ने की
हर परिस्थिति से लड़ने की
ज़िद करो बदलाव की
प्रगति की राह की



अज्ञत

Saturday, September 1, 2018

जैसे मैं हूँ वैसे तुम कौन हो?


जैसे मैं हूँ वैसे तुम कौन हो?
सवाल था कुछ ऐसा
मिला जिसका जवाब 
किसी को नहीं यहाँ

सवाल भी पूछा किसने
जिसके उम्र और  सवाल में है
सदियों का फासला
तीन साल का बालक
जो जानना चाहता हो ब्रह्म
का सत्य यहाँ

सवाल उलझाने वाला था
क्या ये था उपहास
या जीवन का सार
इस सवाल के पीछे है
हर कोई यहाँ

जैसे मैं हूँ वैसे तुम कौन हो?
इस का जवाब
कोई खोज नहीं
पाया है यहाँ



रिंकी




असली परछाई

 जो मैं आज हूँ, पहले से कहीं बेहतर हूँ। कठिन और कठोर सा लगता हूँ, पर ये सफर आसान न था। पत्थर सी आँखें मेरी, थमा सा चेहरा, वक़्त की धूल ने इस...