इस वर्ष २०१९ में माहत्मा गांधी जी का १५०वा
जन्मदिवस है। भारत या दुनियाँ में
माहत्मा गांधी किसी परिचय के मोहताज़ नहीं उनके विचार और आदर्श आज भी उतने
ही प्रासंगिक है जितना १०० वर्ष
पहले थे । गाँधी जी के अहिंसा के विचार के बारे में सभी को ज्ञात है पर पर्यावरण संरक्षण और जलवायु
परिवर्तन जैसे गंभीर मुद्दे पर गाँधी जी
क्या विचार थे। ये उनके द्वारा लिखे गए किताब और लेख से पता चलता है। आज दुनिया जलवायु
परिवर्तन जैसी गंभीर समस्या से जूझ रही है, ये
कोई काल्पनिक समस्या नहीं है, अगर इस साल २०१९ की बात करे तो अब तक सरकारी आकड़ो के अनुसार १२०० लोगो की जान बाढ़ या अन्य आपदा
के कारण पुरे भारत में गई है।
विज्ञानिको की माने तो पुरे विश्व में समय
से पहले या बाद में वर्षा, थोड़े समय में अधिक वर्षा, आंधी-
तूफान, जंगल की आग , भूस्खलन और धुर्वीय बर्फ का तेज़ी से पिघलना का
मुख्या कारण पृथ्वी के जलवावु में तेजी से आ रहे परिवर्तन के कारण हो रहा है।
गाँधी जी
ने १९०९ में " हिन्द स्वराज" नाम की किताब लिखी थी जिसमे उन्होंने मानव
के द्वारा तेजी से औधोगिक विकास के कारण भविष्य में होने वाले नुकसान के बारे
में अपना विचार व्यक्त किया है। गाँधी जी आज से सौ साल पहले से ही जानते थे
की पर्यावरण का नुकसान मानव जीवन को विनाश के करीब पहुंचा देगा।
अपनी
पुस्तक ‘द हिंद स्वराज’ में उन्होंने लगातार हो रही खोजों के कारण पैदा हो रहे उत्पादों
और सेवाओं को मानवता के लिये खतरा बताया था। उन्होंने वर्तमान सभ्यता को अन्तहीन
इच्छाओं और शैतानिक सोच से प्रेरित बताया। उनके अनुसार, असली
सभ्यता अपने कर्तव्यों का पालन करना और नैतिक और संयमित आचरण करना है।
अपने एक
लेख ‘की टु हेल्थ’ (स्वास्थ्य कुंजी) में उन्होंने साफ हवा की जरूरत पर रोशनी
डाली। वह कहते हैं कि प्रकृति ने हमारी जरूरत के हिसाब से पर्याप्त हवा फ्री में
दी है लेकिन आधुनिक सभ्यता ने इसकी भी कीमत तय कर दी है। वह कहते हैं कि किसी
व्यक्ति को कहीं दूर जाना पड़ता है तो उसे साफ हवा के लिये पैसा खर्च करना पड़ता
है। आज से करीब 100 साल पहले 01 जनवरी, 1918 को अहमदाबाद में एक बैठक को सम्बोधित
करते हुए उन्होंने भारत की आजादी को तीन मुख्य तत्वों वायु, जल और अनाज की आजादी के रूप में
परिभाषित किया था।
मशीनीकरण पर विचार
मशीन इंसान को बेकार बना रही है, उस समय भारत के बॉम्बे
में कपडा बनाने की बहुत कल -कारखाने थे जो
सारे देश को कपडा निर्यात करते थे उन
कारखाने मे काम करने वाले मज़दूरों की दशा बहुत दयनीय थी। गाँधी जी
देश को आत्मनिर्भर बनता देखना चाहते थे, उनका
सपना मज़दूर बनाना नहीं स्वाबलम्बी देश बनाना था। अठारहवीं सदी के औधोगिक क्रांति
को वो संसाधनों के दोहन की तरह देखते थे और अंग्रेज़ो को व्यापारी शासक की तरह देखते थे। जो भारत के संसाधन का
दोहन राज्य कर रहे थे।
शुद्ध जल, वायु
और अनाज पर विचार
गाँधी जी कल कारखानों से निकलते धूए के
नुकसान से बहुत अच्छी तरह से वाकिफ़ थे।
गांधीजी जी के अनुसार पर्यावरण मशीनों
का अधिक इस्तेमाल मानव के जीवन में नकारात्मक प्रभाव लेकर आएगा इसलिए उन्होंने रेल, ट्राम गाड़िओ का विरोध किया था उन्हें पता था कि कल
-कारखानों से निकलने वाला धुआं और दूषित जल मानव के जीवन पर असर डालेगा कारखानों
से निकला हुआ कचरा भारत की नदियों को दूषित करेगा। जिसके कारण लोगों के स्वास्थ्य पर असर होगा
उनका विचार था इंसान को मेहनत करना चाहिए क्योंकि बिना यंत्र की सहायता से किए गए
काम पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचाते हैं।
उन्होंने हमेशा स्वराज का सपना देखा था।
वो चाहते थे की भारत का हर गांव स्वावलंबी बने हर गांव अपना भोजन खुद उगाए
कपड़ा खुद बनाएं लोगों का इलाज आयुर्वेदिक पद्धति से हो और बच्चे शिक्षित हो। हम सब जानते हैं की वे छुआछूत की भावना को भी खत्म करना चाहते
हैं। वे यह समझते थे कि भविष्य में
संसाधनों का बंटवारा लोगों में बराबर नहीं होगा यदि देश बहुत अधिक उद्योग पर
निर्भर हो जाए तो उद्योगपति धन कमाएंगे और गरीब उनके कल कारखानों में मजदूरी करेंगे। गरीब और अधिक गरीब हो जाएंगे
इसलिए वो स्वदेशी अपनाने को कहा करते थे।
पाश्चात्य रोजगार पर विचार
गांधी जी डॉक्टरों और वकीलों को समाज के
लुटेरे की तरह समझते थे उनका मानना था कि डॉक्टर अपनी सुविधा के अनुसार रोगियों का
इस्तेमाल करते हैं वे उनका इलाज नहीं करते बस पैसे कमाने की मशीन की तरह समझते हैं
ठीक वकील भी लोगों से केवल पैसा लेते हैं
और उन्हें गुमराह करते हैं।
आज से 100 वर्ष पूर जलवयू
परिवर्तन जैसी कोई चीज नहीं थी या कोई सोच भी नहीं सकता था कि अट्ठारह सौ
शताब्दी में हुए औद्योगिक क्रांति के कारण 100 साल के भीतर ही पृथ्वी में पर जलवायु परिवर्तन का असर दिखने
लगेगा क्योंकि हम आज जीतनी भी आपदा हम झेल
रहे है सभी जलवायु परिवर्तन के कारण से ही है।
पिछले 100
साल से की जा रही संसाधनों का दोहन का ही परिणाम है, गांधीजी इस बात को उस
समय भी बेहतर तरीके से समझते थे उन्होंने अपनी किताब हिंद स्वराज और कई लेखों में
इस समस्या के बारे में विस्तार से लिखा है।
23 अक्टूबर को परिवर्तन पर विश्व
स्तरीय बैठक का आयोजन किया गया है जिसमें
साफ तौर से यह कह गया है की यदि हमने अभी इस समस्या पर ध्यान नहीं दिया तो भविष्य
में रोजगार ,भोजन, शुद्ध जल, शुद्ध वायु जैसी बुनियादी चीजों पर गहरा
असर पड़ेगा ध्रुव की बर्फ पिघलने के कारण
समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है। समुंद्र में प्लास्टिक का कचरा समुंद्र के जैविक
प्रणाली को नुकसान पहुंचा रहा है, हाल मे
की गई अनुसंसाधन के अनुसार कई समुद्री मछलियों के पेट में प्लास्टिक के अंश पाए गए हैं जो
मानव जीवन के लिए बहुत हानिकारक है।
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