राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण- ४ के रिपोर्ट
में दर्ज आंकड़े के अनुसार भारत में शिशु मृत्यु दर प्रति १००० बच्चों में ४१ अंकित की गयी है जो पिछले आंकड़े से कम
है। साल 2018 का ग्लोबल हंगर इंडेक्स (Global
Hunger Index) जारी हो गया है और इस बार भारत की रैंकिंग और
गिरी है । भारत को 119 देशों की सूची में 103वां स्थान मिला
है । पिछले साल भारत ग्लोबल हंगर इंडेक्स (GHI) में
100वें स्थान पर था।
आंकड़े अक्सर विरोधावास की स्तिथि में लाते
है। आंकड़े कुछ भी बयान करे पर मुख्य मुद्दा बच्चो के बेहतर विकास और
स्वास्थ्य जीवन का है , इसलिए सरकार, गैर-सरकारी संस्था और अन्य संस्था मिलकर देश में कुपोषण से ग्रसित बच्चो की स्तिथि में सुधार ला
सकते है। सरकार ने निति ,योजना और सेवाओं को सुनिश्चित कर बाल स्वस्थ्य और पोषण पर कार्य करती
रही है।
बाल स्वस्थ्य और पोषण को बढ़ाने के
उपयोगी और महत्वपूर्ण उपाय
दस वर्षी योजना निति के अंतर्गत शिशुओं एवं
बच्चों हेतु आहार पद्धतियों तथा उनकी देखभाल में सुधार के लिए पोषण एवं स्वास्थ्य
शिक्षा को बढ़ावा देने के कारक ।
1.
तीन वर्ष से कम आयु के अल्पवज़नी
बच्चों की दर को वर्तमान 47% से घटाकर 40% किया जा सके;छ
वर्ष तक की आयु के बच्चों में गम्भीर कुपोषण के मामलों में 50% तक
की कमी की जा सके ।
2. आरम्भ से स्तनपान (माँ का आरम्भिक दूध
पिलाने) के मामलों की दर को वर्तमान 15.8% से बढ़ाकर 50% करना।
3. प्रथम छः माह के दौरान ‘केवल स्तनपान'
के
मामलों को वर्तमान 55.2% (0-3 माह हेतु) से बढ़ाकर 80%
करना; और छः माह की आयु से पूरक आहार देने के मामलों को वर्तमान 33.5% से
बढ़ाकर 75% करना।
गर्भावस्था के दौरान स्तनपान हेतु
परामर्श
स्तनपान की शुरूआत करने व केवल स्तनपान कराने
हेतु प्रेरित तथा तैयार किया जान चाहिए। यह कार्य उन्हें स्तनपान के महत्व तथा
विधियों के विषय में व्यक्तिगत तौर पर जानकारी प्रदान करके किया जा सकता है।
आरम्भ से ही स्तनपान की शुरूआत करने, शिशु को मां क आरम्भिक दूध पिलाने, केवल
स्तनपान की प्रवृत्तियों को बढ़ावा देने और स्तनपान से पहले अन्य कोई आहार देने की
प्रवृत्ति को रोकने के लिए प्रसव-पूर्व जांच तथा माताओं को टिटनेस के टीके लगाने
वाले सम्पर्क बिन्दुओं का प्रयोग किया जाना चाहिए। आहार, आराम
तथा लौह तत्व एवं फोलिक एसिड की गोलियों के विषय में भी सलाह दी जानी चाहिए।
पूरक आहार का महत्व समझाना
छः माह की आयु के बाद से बढ़ते हुए शिशु की
बढ़ती हुई आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु पूरक आहार अत्यन्त आवश्यक है। शिशु बहुत
तीव्र गति से विकसित होते हैं। इस आयु में उनकी विकास दर की तुलना जीवन के अन्य
किसी दौर के विकास दर से नहीं की जा सकती । छः माह में ही जन्म के समय तीन
किलोग्राम वज़न के शिशु का वज़न दोगुना हो जाता है और एक वर्ष पूरा होने तक उसका वज़न
तीन गुना हो जाता है Iतथा उसके शरीर की लम्बाई जन्म के समय
से डेढ़ गुना बढ़ जाती है। जीवन
के शुरूआती वर्षों के दौरान शरीर के सभी अंग संरचनात्मक एवं कार्यात्मक दृष्टि से
बहुत तीव्र गति से विकसित होते हैं। बाद में, यह
विकास दर धीमी हो जाती है। जीवन के पहले दो वर्षों में तंत्रिका प्रणाली और
मस्तिष्क का विकास पूर्ण हो जाता है।
विकास अनुवीक्षण एवं संवर्धन
नियमित रूप से बच्चे का वजन कराना तथा
स्वास्थ्य कार्ड पर वजन को दर्ज करना शिशु के विकास के प्रबोधन के महत्वपूर्ण साधन
हैं। शिशुओं तथा छोटे बच्चो का प्रत्येक माह उनकी मां की उपस्थिति में वजन किया
जाना चाहिए तथा मां को बच्चे के विकास की स्थिति समझाई जानी चाहिए। वृद्धि चार्ट
प्लास्टिक जैकेट में रखकर बच्चे की मां को दिया जाना चाहिए। यदि बच्चे में कुपोषण
की समस्या है, तो प्रति दिन बच्चे को अतिरिक्त आहार
प्रदान करने के लिए माताओं को कहा जाना चाहिए। कुपोषित बच्चों की घर पर निगरानी की
जानी चाहिए तथा माताओं को आने तथा बच्चों के अहार तथा देखभाल से सम्बन्धित प्रश्न
पूछने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। ।
पूरक आहारों की सुरक्षा सुनिश्चित करना
पूरक आहारों को सावधानी-पूर्वक तैयार कर उनका
भण्डारण करना संदूषण से बचाव हेतु महत्वपूर्ण है। व्यक्तिगत साफ-सफाई शिशुओं के
आहार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यदि स्वच्छता नहीं होती है, तो पूरक आहार बच्चे में संक्रमण फैलाकर बच्चे की भलाई के बजाए उसे और
अधिक नुकसान पहुँचा सकता है। अतः, यह महत्वपूर्ण है कि शिशुओं हेतु तैयार
सभी आहार इस तरह रखे जाएं कि वे कीटाणुओं से मुक्त रहें। शिशुओं हेतु आहारों को
तैयार करते समय ध्यान देने योग्य कुछ बातें इस प्रकार हैं –
पोषाहार एवं स्वास्थ्य सेवाओ का उपयोग- आंगनवाड़ी
केंद्र
लगभग सभी स्थानों पर छोटे बच्चों के लिए कई
प्रकार की पोषाहार एवं स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध हैं। समुदाय के लोगों को प्रजनन
एवं स्वास्थ्य कार्यक्रम, समेकित बाल विकास सेवा स्कीम आदि के
अंतर्गत गांवों में, उप-केन्द्रों पर, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर बच्चों के लिए उपलब्ध विभिन्न सेवाओं
के बारे में जानकारी दी जानी चाहिए। सामुदायिक जाना चाहिए, ताकि
बाल स्वास्थ्य को बढ़ावा दिया जा सके।
कुपोषित बच्चो का रेफेरल - जिला स्तरीय
पोषण पुर्नवास केंद्र
कुपोषित शिशु एवं छोटे बच्चे अक्सर उस माहौल
में पाये जाते हैं। जहां पर ग्राह्य भोजन की गुणवत्ता एवं मात्रा बढ़ाना एक समस्या
है। कुपोषण की पुनरावृति को रोकने एवं चिरकालिक कुपोषण के प्रभावों पर काबू पाने
के लिए ऐसे बच्चों पर प्रारम्भिक पुनर्वास चरण में एवं उसके बाद एक लम्बे समय तक
अतिरिक्त ध्यान देने की आवश्यकता होती है।लगातार बार-बार स्तनपान और जब आवश्यकता
हो, पुनः स्तनपान मुख्य निवारक उपाय हैं, क्योंकि कुपोषण की उत्पत्ति अक्सर अपर्याप्त एवं बाधित स्तनपान से
होती है। पर्याप्त पोषणिक एवं सुरक्षित पूरक आहार प्राप्त करनसे कठिन हो सकता है
और ऐसे बच्चों के लिए विशेष रूप आहारीय पूरकों की आवश्यकता हो सकती है। कुपोषित
बच्चों की माताओं को में बुलाया जा सकता है और उन्हें निर्देशों के साथ 21 दिन नियमित निगरानी रखी जाती है।
दायित्व- सरकार,गैर
-सरकारी संस्था और संस्थान
शिशुओं एवं छोटे बच्चों के आहार में सुधार हेतु
केन्द्र एवं राज्य सरकारें राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय संगठन और अन्य सम्बन्धित
पक्ष हिस्सेदारी निभाते हैं ताकि बच्चों में कुपोषण की व्यापकता को कम किया जा सके
और अपेक्षित संसाधनों जैसे मानवीय, वित्तीय एवं संगठनात्मक इत्यादि का
संघटन किया जा सके। सरकारों का प्रथम दायित्व नीति निर्माण के सर्वोच्च स्तर पर
शिशुओं एवं छोटे बच्चों के आहार में सुधार की महत्ता को मान्यता देना तथा मौजूदा
नीतियों एवं कार्यक्रमों में शिशुओं एवं छोटे बच्चों के आहार से सम्बन्धित सभी
समस्याओं को एकीकृत करना है। सभी संबंधित सरकारी अभिकरणों, राष्ट्रीय
एवं अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों तथा अन्य संबंधित पक्षों के बीच पूर्ण सहयोग समन्वय
अपेक्षित है। शिशुओं एवं छोटे बच्चों के आहार पर राष्ट्रीय दिशा-निर्देशों के
क्रियान्वयन में क्षेत्रीय स्थानीय प्रशासन क्षेत्र महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
महिला एवं बाल विकास तथा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण
विभागों की विशेष शिशुओं एवं छोटे बच्चों के आहार में योगदान की जिम्मेवारी है।
शिशुओं एवं छोटे बच्चों के आहार पर राष्ट्रीय दिशा निर्देशों को राष्ट्र-व्यापी
समेकित बाल विकास सेवा तथा प्रजनन एवं बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम का अभिन्न अंग होना
चाहिए। इन दिशा-निर्देशों का जारी परियोजनाओं के कार्यक्रम प्रबंधकों तथा क्षेत्र
कार्यकर्ताओं के माध्यम से प्रभावी परिचालन किया जाना चाहिए I इन कार्यक्रमों के प्रबन्धकों एवं क्षेत्र कार्यकर्ताओं को शिशुओं
एवं छोटे व्यावहारिक जानकारी दी जानी चाहिए। दिशा-निर्देश नर्सिंग एवं गैर-स्नातक
चिकित्सा पाठयक्रम का आवश्यक अंग होने चाहिए।
गैर-सरकारी संगठन
स्थानीय, राष्ट्रीय
एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय अनेक प्रकार के गैर-सरकारी संगठनों के
उद्देश्यों एवं लक्ष्यों में छोटे बच्चों एवं परिवारों की आहार तथा पोषाहार
सम्बन्धी आवश्यकताओं को बढ़ावा देना शामिल है। उदाहरणार्थ, धर्मार्थ
एवं धार्मिक संगठनों, उपभोक्ता संघों, माताओं
के सहायता समूहों, पारिवारिक क्लबों एवं बाल देखभाल
संगठनों के पास शिशुओं एवं छोटे बच्चों के आहार पर राष्ट्रीय दिशा-निर्देशों के
क्रियान्वयन में सहभागिता के बहुत अवसर हैं जैसे -
1. अपने सदस्यों को शिशुओं एवं छोटे
बच्चों के आहार के सम्बन्ध में सही एवं अद्यतन सूचना प्रदान करना I
2. समुदाय आधारित कार्यक्रमों में शिशुओं
एवं छोटे बच्चों के आहार के लिए कुशल सहायता और पोषाहार एवं स्वास्थ्य देखभाल
प्रणाली के साथ प्रभावी संपर्क सुनिश्चित करना I
3. मातृ एवं बल अनुकूल समुदायों एवं कार्य
स्थलों, जो कि शिशुओं एवं छोटे बच्चों के उपयुक्त आहार में नियमित रूप से
सहायता करते हैं के सृजन में सहभगिता निभाना I
समुदाय आधारित सहायता जिसमें अन्य माताओं,
अभिजात स्तनपान सलाहकारों एवं प्रमाणित स्तनपान सलाहकारों की सहायता
शामिल है,महिलाओं को अपने बच्चों को उपयुक्त रूप से
पोषित करने योग्य बना सकती है I अधिकांश समुदायों में स्व सहायता की
परम्परायें हैं जो परिवारों की इस सम्बन्ध में सहायता के लिए उपयुक्त सहायता
प्रणाली के निर्माण अथवा विस्तार के लिए आधार के रूप में काम कर सकती हैं ।
अन्तर्राष्ट्रीय संगठन
अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों तथा सार्वभौम एवं
क्षेत्रीय ऋण संस्थाओं को बच्चों एवं महिलाओं के अधिकारों को साकार करने के लिए
अपनी केन्द्रीय महत्ता को मान्यता प्रदान करते हुए शिशु एवं छोटे बच्चे के आहार को
सार्वभौमिक स्वास्थ्य कार्यसूची में प्रमुख स्थान देना चाहिए; उन्हें इन दिशा निर्देशों के व्यापक क्रियान्वयन के लिए मानव,
आर्थिक एवं संस्थागत संसाधनों में, जहां
तक सम्भव हो, इस उद्देश्य के लिए अतिरिक्त संसाधन मुहैया
कराने चाहिए I सरकार के काम में सहायता देने के लिए
अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के विशिष्ट सहयोग में निम्नलिखित शामिल हैं -
·
मानक और स्तर निर्धारित करना।
·
राष्टीय क्षमता निर्माण में सहायता ।
·
नीति निर्माताओं को जानकारी देना तथा
प्रशिक्षित करना I
·
शिशुओं एवं छोटे बच्चों के आहार में
इष्टतम समर्थन के लिए महिला एवं बाल विकास एवं स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के कौशलों
में सुधार I
·
डाक्टरों, नर्सों, दाइयों,
पोषाहार
विशेषज्ञों, आहार विशेषज्ञों, सहायक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं तथा अन्य
समूहों के लिए सेवा-पूर्व पाठ्यक्रम में आवश्यकतानुसार संशोधन I
·
शिशु अनुकूल अस्पताल प्रयासों की योजना
बनाना एवं प्रबोधन करना तथा इनका मातृत्व देखभाल पर्यावरण से परे विस्तार करना।
·
सामाजिक संघटन, क्रियाकलापों का
संवर्धन, उदाहरणार्थ जन-संचार माध्यमों का शिशु आहार की उपयुक्त पद्धतियों के
संवर्धन के लिए उपयोग तथा जन-संचार माध्यमों के प्रतिनिधियों को शिक्षित करना।
शिशु तथा बाल पोषण पर ये राष्ट्रीय
दिशा-निर्देश सरकार एवं सुरक्षित एवं पर्याप्त आहार के संरक्षण, संवर्धन व समर्थन के प्रति अपने स्तर पर तथा सामुदायिक रूप से स्वयं
को पुनः समर्पित करने का बहुमूल्य व्यावहारिक अवसर प्रदान करेंगे।
देश के सभी विभाग,गैर-सरकारी
संस्था और अन्य संस्था मिलकर देश में
कुपोषण से ग्रसित बच्चो की स्तिथि में सुधार ला सकते है। सतत रूप से निति
और योजनाओ को कार्यवान्वित करने की आवश्यता है।
Rinki
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (16-03-2020) को 'दंभ के आगे कुछ नहीं दंभ के पीछे कुछ नहीं' (चर्चा अंक 3642) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
*****
रवीन्द्र सिंह यादव
Bhaut dhaywad
Deleteज्ञानवर्धक लेख , बच्चों के कुपोषण से निपटने के लिए बहुत ही अच्छी सोच ,सादर नमन आपको
ReplyDeleteKamini Sinha Ji, Bahut dhaynavat
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