Wednesday, March 31, 2021

ख़ुद अपनी ही हर आहट पर- मजाज़ लखनवी

 

ख़ुद अपनी ही हर आहट पर

दिल धड़क उठता है ख़ुद अपनी ही हर आहट पर
अब क़दम मंज़िल-ए-जानाँ से बहुत दूर नहीं

दफ़्न कर सकता हूं सीने में तुम्हारे राज़ को
और तुम चाहो तो अफ़्साना बना सकता हूं मैं

वो मुझको चाहती है, और मुझ तक आ नहीं सकती
मैं उसको पूजता हूं, और उसको पा नहीं सकता

नए साल की दस्तक

 याद करो, वह साल का समय, जब भविष्य दिखाई देता है एक खाली कागज़ की तरह, एक साफ़ कैलेंडर, एक नया मौका। गहरी सफेद बर्फ पर, तुम वादा करते हो नए ...