Wednesday, March 31, 2021

ख़ुद अपनी ही हर आहट पर- मजाज़ लखनवी

 

ख़ुद अपनी ही हर आहट पर

दिल धड़क उठता है ख़ुद अपनी ही हर आहट पर
अब क़दम मंज़िल-ए-जानाँ से बहुत दूर नहीं

दफ़्न कर सकता हूं सीने में तुम्हारे राज़ को
और तुम चाहो तो अफ़्साना बना सकता हूं मैं

वो मुझको चाहती है, और मुझ तक आ नहीं सकती
मैं उसको पूजता हूं, और उसको पा नहीं सकता

4 comments:

  1. दफ़्न कर सकता हूं सीने में तुम्हारे राज़ को
    और तुम चाहो तो अफ़्साना बना सकता हूं मैं...
    बेहतरीन पंक्तियाँ। ।।।
    बहुत देर से आपके पटल पर दस्तक देने हेतु क्षमा करेंगी।
    मैं बार-बार आने को उत्सुक व विवश हूँ।
    हार्दिक शुभकामनाएँ। ।।।

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