दिल धड़क उठता है ख़ुद अपनी ही हर आहट पर
अब क़दम मंज़िल-ए-जानाँ से बहुत दूर नहीं
दफ़्न कर सकता हूं सीने में तुम्हारे राज़ को
और तुम चाहो तो अफ़्साना बना सकता हूं मैं
वो मुझको चाहती है, और मुझ तक आ नहीं सकती
मैं उसको पूजता हूं, और उसको पा नहीं सकता
अब क़दम मंज़िल-ए-जानाँ से बहुत दूर नहीं
दफ़्न कर सकता हूं सीने में तुम्हारे राज़ को
और तुम चाहो तो अफ़्साना बना सकता हूं मैं
वो मुझको चाहती है, और मुझ तक आ नहीं सकती
मैं उसको पूजता हूं, और उसको पा नहीं सकता
भाव से परिपूर्ण..
ReplyDeleteThanks a lot
Deleteदफ़्न कर सकता हूं सीने में तुम्हारे राज़ को
ReplyDeleteऔर तुम चाहो तो अफ़्साना बना सकता हूं मैं...
बेहतरीन पंक्तियाँ। ।।।
बहुत देर से आपके पटल पर दस्तक देने हेतु क्षमा करेंगी।
मैं बार-बार आने को उत्सुक व विवश हूँ।
हार्दिक शुभकामनाएँ। ।।।
Thanks divya ji
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