जब ख़ुदा से लो लगाई जाएगी
फिर दुआ कब कोई ख़ाली जाएगी
ताकते हैं दिल वो मेरा बार बार
क्या कोई हसरत निकाली जाएगी
आँख मिलते ही किसी मा'शूक़ से
फिर तबीअ'त क्या सँभाली जाएगी
गर कभी चमकेगी वो बर्क़-ए-जमाल
आँख फिर कब उस पे डाली जाएगी
हाय कब होगा उन्हें मेरा ख़याल
आह बेकस की न ख़ाली जाएगी
छोड़िए अब शर्म ये फ़रमाइए
हसरत दिल की कब निकाली जाएगी
सोंंच कर ये उन को छेड़ा हम ने आज
मुँह से उन के कुछ दुआ ली जाएगी
कम-सिनी की ज़िद जवानी में भी है
इन की कब ये ख़ुर्द-साली जाएगी
सख़्त-जाँ 'संजर' हुआ है इश्क़ में
तेग़ अब क़ातिल की ख़ाली जाएगी
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कलमंगलवार (6-7-21) को "जब ख़ुदा से लो लगाई जाएगी "(चर्चा अंक- 4117) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
Thanks a lot for your appriciation.
Deleteबहुत सुन्दर रचना रिंका जी…एक प्रश्न है मन में कि लो या लौ या लव तीनों में सही क्या है ?
ReplyDeleteउषा जी , ये नज़म मशहूर शायर संजर गाजीपुरी जी का है, मेरे पास आपके सवाल का कोई जवाब नहीं है। माफ़ कीजिए।
Deleteवाह! बहुत सुंदर।
ReplyDeleteविश्वमोहन जी,आपका बहुत धन्यवाद
Deleteबहुत सुंदर सृजन।
ReplyDeleteसादर
अनीता जी,आपका बहुत धन्यवाद
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