Saturday, February 19, 2022

कभी सोचा है

 क्यों आग से खेलते है?

जब हाँथ को जलना ही है

क्यों हम किसी के आगे -पीछे घूमते है?

जब अकेले ही सफर में है

क्यों हम दर्द को सहते हुए भी किसी

के साथ रहने चाहे

जब पता है की दुसरो में ख़ुशी देखना

बेमानी ही है।

 

दिन में परछाई क्यों ढूँढ़ते हो ?

जब रात में साया भी घूम है

पुराने रास्तो के साथ -साथ

चलना ही क्यों है ?

जब पता है की वो, पुराने

मंज़िल तक ही लेकर जाते है।

 

कभी सोचा है क्या ?

तुम्हारी सोच भी अपनी है क्या?

जो तुम देख रहो हो खुली आँखों से

हकीकत और धोके में फर्क

देखते हो क्या ?

क्यों सब जैसा बनाना है

अपने जैसा बनाना बुरा है क्या ?

 

पिंजरा उम्मीदों का है

सपनो को खोना का है

अकेले होने का  है।

सोचा कभी है क्या ,

यही सच है क्या?

 

क्या कभी अपने पंख देखा है?

उड़ते हुए महसूस किया है

कभी खुद को भी तलाशा है?

अपने भीतर भी कभी झाँका है क्या?

सोचा कभी है क्या ,

यही सच है क्या?

 

 

रिंकी

13 comments:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर रविवार 20 फ़रवरी 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  2. अहोभाव, अपने पंख, अपनी तलाश, आत्म स्वाभिमान की प्रखर कविता

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  3. क्या कभी अपने पंख देखा है?

    उड़ते हुए महसूस किया है

    कभी खुद को भी तलाशा है?

    अपने भीतर भी कभी झाँका है क्या?

    सोचा कभी है क्या ,

    यही सच है क्या?
    बहुत ही बेहतरीन रचना

    ReplyDelete
  4. बहुत अच्छी रचना! सुंदर शब्द विन्यास! अर्थों के नए आयाम तलाशती रचना!
    क्या कभी अपने पंख देखा है?
    उड़ते हुए महसूस किया है
    कभी खुद को भी तलाशा है?
    अपने भीतर भी कभी झाँका है क्या?
    सोचा कभी है क्या ,
    यही सच है क्या?
    साधुवाद!--ब्रजेंद्रनाथ

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  5. आत्मविश्वास से लबरेज सराहनीय रचना ।

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  6. मन को मथती और आत्मविश्वास से परिचित कराती सुंदर रचना
    बधाई

    ReplyDelete

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