Thursday, December 29, 2022

Rumi

I choose to love you in silence…

For in silence I find no rejection,

I choose to love you in loneliness… For in loneliness no one owns you but me, I choose to adore you from a distance… For distance will shield me from pain, I choose to kiss you in the wind… For the wind is gentler than my lips, I choose to hold you in my dreams… For in my dreams, you have no end. Rumi

Tuesday, December 27, 2022

इस घट अंतर बाग़-बग़ीचे -कबीर



इस घट अंतर बाग़-बग़ीचे, इसी में सिरजनहारा।

इस घट अंतर सात समुंदर, इसी में नौ लख तारा।

इस घट अंतर पारस मोती, इसी में परखन हारा।

इस घट अंतर अनहद गरजै, इसी में उठत फुहारा।

कहत कबीर सुनो भाई साधो, इसी में साँई हमारा॥















इसी घट में बाग़-बग़ीचे खिले हैं और इसी में उनका सृजनहार है। इसी घट में सात समुद्र हैं और इसी में नौ लाख तारे। इसी में पारस और मोती हैं और इसी में परखने वाले। इसी घट में अनाहत नाद गूँज रहा है और इसी में फुहारें फूट रही हैं। कबीर कहते हैं, सुनो भाई साधु, इसी घट में हमारा साँई (स्वामी) है।

Monday, December 5, 2022

यार की ख़ुशी में खुद से ही हार जाए

 मन मेरा बेचैन परिंदा

सपने बुनता और उधेड़ता।

कहानियाँ सजाए, घर बनाए। 

सपनों का महल बनाया

आज अकेले समझ आया। 

जैसे मैंने आसमान तक जाने के लिए

ख़याली ज़ीना था बनाया। 

 

अक्सर यही होता है,

दिल टूटकर तार-तार होता है।

सफ़र में पलभर का साथ

 फिर बिछड़ने की बात।   

ज़िन्दगी अपनी ही राह की राहगीर है।

बेबशी के निशान मैने हँस-हँसकर छुपाया। 

 

प्यार जब शह-मात का खेल हो जाए।

अपनी हार पर उसे ख़ुश देखना। 

बाजी हार जाना का गम नहीं ।

अपनी ही हार का जशन मनाए

यार की ख़ुशी में खुद से ही हार जाए।

 

रिंकी

 

ज़ीना -(सीढ़ी)

असली परछाई

 जो मैं आज हूँ, पहले से कहीं बेहतर हूँ। कठिन और कठोर सा लगता हूँ, पर ये सफर आसान न था। पत्थर सी आँखें मेरी, थमा सा चेहरा, वक़्त की धूल ने इस...