Monday, December 5, 2022

यार की ख़ुशी में खुद से ही हार जाए

 मन मेरा बेचैन परिंदा

सपने बुनता और उधेड़ता।

कहानियाँ सजाए, घर बनाए। 

सपनों का महल बनाया

आज अकेले समझ आया। 

जैसे मैंने आसमान तक जाने के लिए

ख़याली ज़ीना था बनाया। 

 

अक्सर यही होता है,

दिल टूटकर तार-तार होता है।

सफ़र में पलभर का साथ

 फिर बिछड़ने की बात।   

ज़िन्दगी अपनी ही राह की राहगीर है।

बेबशी के निशान मैने हँस-हँसकर छुपाया। 

 

प्यार जब शह-मात का खेल हो जाए।

अपनी हार पर उसे ख़ुश देखना। 

बाजी हार जाना का गम नहीं ।

अपनी ही हार का जशन मनाए

यार की ख़ुशी में खुद से ही हार जाए।

 

रिंकी

 

ज़ीना -(सीढ़ी)

No comments:

Post a Comment

Thanks for visiting My Blog. Do Share your view and idea.

असली परछाई

 जो मैं आज हूँ, पहले से कहीं बेहतर हूँ। कठिन और कठोर सा लगता हूँ, पर ये सफर आसान न था। पत्थर सी आँखें मेरी, थमा सा चेहरा, वक़्त की धूल ने इस...