किसी भी देश का भविष्य वहाँ के युवाओँ और बच्चो को माना जाता है। भारत दुनियाँ का सबसे युवा देश है, हमारी देश की 0-24 वर्ष की आयु की जनसंख्या भारत की 1,210 मिलियन जनसंख्या का 373 मिलियन (30.9%) है, इसका मतलब हर तीसरे व्यक्ति में एक युवा है। युवा जनसंख्या का अधिक होना, अधिक मानव संसाधन किसी भी देश के विकास में अहम् योगदान देता है। दुनिया में कई देश ऐसे है जिनकी औसत जनसंख्या बुजुर्ग है, लेकिन भारत की स्तिथि बहुत मजबूत है। युवा जनसंख्या होना देश के लिया अच्छा है पर साथ ही युवा जनसंख्या को संभालना एक चुनौती भी है। भारत जैसे देश में जहाँ जनसंख्या अधिक है, जिसके कारण देश की बड़ी आबादी के लिए भोजन, स्वस्थय और रोज़गार जुटाना अर्थव्यवस्था पर भार डालता है।
हमारे
देश के युवाओं पर हद से ज्यादा दबाव है। अधिक आबादी होने के कारण हर चीज़ के लिए
संघर्ष करना पड़ता है । अच्छी
शिक्षा, स्वास्थ , भोजन और रोज़गार
पाना
कठिन होता जा रहा है जिसके परिणामस्वरूप कुछ युवा और बच्चे अधिक मानसिक दबाव के
कारण आत्महत्या कर रहे है। हाल ही में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी)
ने अगस्त, 2022 में भारत में आत्महत्या से होने
वाली मौतों के आंकड़े जारी किए और आंकड़े चौंकाने वाले है । 2021 में देश में कुल
1,64,033 आत्महत्याएं दर्ज की गईं है। आत्महत्या की दर के संदर्भ में, भारत ने 12 (प्रति लाख जनसंख्या) की दर
दर्ज की और यह दर 2020 की तुलना में 2021 के दौरान 6.2% की वृद्धि को दर्शाती है। हाल
के आकड़ो को देखा जाए तो, बच्चो में ख़ासकर आई.आई.टी, मैनेजमेंट और मेडिकल के छात्रों में
आत्महत्या के मामले बढ़ गए है। पढाई के
दबाव,
आर्थिक
तंगी, भेदभाव
और अन्य कई कारण आत्महत्या के है। कोरोनावायरस के बाद से मामलों में वृद्धि दर्ज की
गई है। स्कूल और संस्थान बंद होने के कारण पढ़ाई पर अधिक असर पड़ा है। जिसके
कारण भी युवा परेशान है। देश में आत्महत्याओं की दर में वृद्धि हो गई है युवाओं
में आत्महत्या के मामले अधिक पाए जा रहे हैं, जो किसी भी समाज के लिए उचित नहीं माना
जा सकता।
हमें मिलकर इस गंभीर समस्या पर काम करने की जरूरत है हम अपने भविष्य को इतनी आसानी से खो नहीं सकते है। आज के युवा पर बहुत अधिक दबाव है, हम उनकी मदद कर सकते हैं । हर एक व्यक्ति को चाहिए कि अपने आसपास रह रहे लोगों के लिए संवेदनशील हो। आज के भागदौड़ और एकल जमाने में हम अपने आसपास की लोगों पर ध्यान नहीं देते हैं अधिकतर समय हम अपने मोबाइल की आभासी दुनिया में खोए हुए हैं, सोचिए अगर आपको अचानक कुछ हो जाए तो आपकी सहायता सबसे पहले वहां उपस्थित लोग ही करेंगे ना कि आपका मोबाइल। हमें इस मूलभूत बात को हमेशा याद रखनी चाहिए। हम अपने बच्चों और युवाओं की मदद कर सकते हैं ।
अगर आप माता-पिता है तो बच्चों पर पढ़ाई का और भविष्य में बहुत अच्छे करने का दवाब नहीं डाले। माता-पिता की अपेक्षाएं बच्चों को मानसिक तनाव में डालती हैं जिसके कारण भी बहुत सारे युवा आत्महत्या कर रहे हैं। पढ़ाई में अच्छा प्रदर्शन नहीं करने के वजह से भी मामले बढ़ रहे है। शिक्षा को समाज के विकास के रूप में जाना जाता हैं ना कि जान लेने के अस्त्र के रूप में इसलिए हमें ध्यान रखना होगा हर इंसान की अपनी क्षमता है और हर इंसान अलग काबिलियत के साथ पैदा हुआ है। हम जबरदस्ती किसी को वो नहीं बना सकते हैं जब तक वह उसके अंदर ना हो।
यदि
आप मानसिक अवसाद में है तो दोस्तों से मदद ले, दोस्त हमारी जीवन में आम भूमिका अदा
करते हैं। खासकर युवावस्था में इसलिए यदि हम अपने किसी भी दोस्त को बहुत अधिक
दुखी या मानसिक दबाव में पाए तो उससे
बातें करें और समझने कि कोशिश करे की वह जीवन के दौर से गुजर रहा है। आपकी एक मदद
किसी की भी जिंदगी को बचा सकती है। अक्सर लोगों के पास उनके मन की बात सुनाने वाला
कोई नहीं होता है क्योंकि लोग जब किसी की बातें सुनते हैं
तो
धारणाएं बनाने लगते हैं, दोस्ती में ऐसा ना करें सिर्फ अपने मित्र की मदद करें।
यदि कोई चिकित्सीय सहायता लेना चाहता है तो बहुत सारे विकल्प उपलब्ध हैं आप किसी काउंसलर से बात कर सकते हैं डॉक्टर से मिल सकते हैं या किसी ऐसे से बात करें जिस पर आपको पूरा विश्वास हो। कोशिश करें आत्महत्या जैसे कदम उठाने से पहले अपने-आप को मौका दे जीने का। परिस्थितियां आपके विपरीत हो सकती हैं लोग-समाज आपके खिलाफ हो सकते हैं। कोई आपको छोड़ सकता हैं, लेकिन आप-अपना साथ नहीं छोड़े । हमें अपने युवाओं को पूरा सहयोग देना होगा नहीं तो हम होनहार बच्चों को खो देंगे।
रिंकी
राऊत