Friday, April 12, 2024

मेहरम

चुप ने ऐसी बात कही

खामोशी में सुन  बैठे

 साथ जो न बीत सके

हम वो अँधेरे चुन बैठे

कितनी करूं मैं इल्तिजा

साथ क्या चाँद से

दिल भर कर आँखे थक गया

फिर भी ना रो पाये हम


जुड़  ना पाये बाद तेरे

टुकड़े दिल के रखूँ क्या

याद तेरी कोई बात नहीं

लफ्ज़ों में मैं लिखूं क्या?

छाँव थी तेरे साथ की

बेरहम धुप ने 

राख किया। 


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 याद करो, वह साल का समय, जब भविष्य दिखाई देता है एक खाली कागज़ की तरह, एक साफ़ कैलेंडर, एक नया मौका। गहरी सफेद बर्फ पर, तुम वादा करते हो नए ...