जैसे हर जादूगर का
अपना
खास जादू होता है
वैसा उसमे भी
मोजूद था |
अलमारी में छिपे
बक्से का जादू
जब भी बक्सा खुलता
उस पारी का जादू
हर बार मुझे मोहित
कर जाता
मिठाई,बिस्कुट,
दाल –मोट और बतासे की खुश्बू
उस बक्से के
तिलिस्म को और बढ़ा देता
में दादी के
पीछे-पीछे
मडराता फिरता
वो अपने-आप को
चोदह पोते-पोतियों में
बराबर बंटती फिरती
कभी डराती,कभी
चुपके से किसी को
बक्सा खोलकर मिठाई
देती|
उस बक्से की
जादूगरनी थी वो
आज चाची ने बक्सा
खोला
आशचर्य की बात है
जादू नहीं हुआ
मरी दादी का जादू
खत्म था
कोई पारी नहीं
दिखी
दादी के जाने के
बाद
उस बक्से का
तिलिस्म हवा हो गया
बक्सा टीना सा
मालूम होता है|
bahut khub likhti hai aap.............likhti rahiye
ReplyDeleteManinder Ji, Dhanyavad
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