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प्रेम शुद्ध
कांच सा निर्मल था
जब पेहली
बार
बचपन और यौवन के बीच
हुआ
धीरे-धीरे,जैसे-जैसे प्रेम को
समझने की कोशिश की
प्रेम में मिलावट
घुलता गया
प्रेम मिलावटी हो गया
दोस्तों ने अपने रंग
भरे
कवि,गायक और फिल्म का
रंग चढ़ता गया
प्रेम में मिलावट
घुलता गया
प्रेम मिलावटी हो गया
होश संभाला तो लगा
प्रेम फैशन जैसा है
सब के पास होने लाज़मी
था
तो मैंने भी
मोबाइल, कार और ज़ेवर
जैसा रख लिया
प्रेम में मिलावट
घुलता गया
प्रेम मिलावटी हो गया
ज़िन्दगी समझ में आई
जब
तब लगा प्रेम को शादी
कहते है
और मैंने भी प्रेम कर
लिया
प्रेम में मिलावट
घुलता गया
प्रेम मिलावटी हो गया
जब ज़िन्दगी कट रही थी
तब लगा इसे ही प्रेम
कहते है
जब दो इन्सान सिर्फ
साथ रहते है
ज़िन्दगी की दौड़ लगभग
खत्म होने को है
लगता है प्रेम को समझ पाना मुश्किल नहीं था
बस करना इतना था की
दुनिया की समझ से
अपने प्रेम को
बचाए रखना था
जिसे मैंने प्रेम
समझा
वो सिर्फ लोगो के
विचार थे
दुनिया ने जिसे प्रेम
माना वो प्रेम नहीं था
अगर होता तो वो
मुझे दायरे में रहा
कर प्रेम करने को नहीं कहते
किसी जात,धर्म और देश
से जोड़ कर प्रेम को नहीं देखते
बंधन को प्रेम नहीं
कहते
दुनिया अपनी स्वर्थ
को
प्रेम कहता रहा
और प्रेम मिलावटी
होता गया
प्रेम को भी बाज़ार
में
उम्र,जात,धर्म, औकाद
के हिसाब से
मिलावट कर बेचा गया
प्रेम में मिलावट घुलता गया
प्रेम मिलावटी हो गया
रिंकी
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